सावन के महीने के प्रारंभ से लेकर अब तक आपने सोमवार के व्रत के विषय में काफी कुछ पढ़ा और सुना होगा, लेकिन उसमें से ज्यादातर लोक प्रचलित कथाओं, लोक परंपराओं और भावना के आधार पर होता है। आज हम आपको शिव पुराण में रुद्र संहिता द्वितीय खंड के अंतर्गत सोमवार के व्रत का महत्व और विधान बता रहे हैं। यहां हमने किसी भी प्रकार का संशोधन अथवा संपादन नहीं किया है, केवल संकलन किया है। शिव पुराण – रुद्र संहिता (खंड: द्वितीय अध्याय) में जैसा लिखा है वैसा प्रस्तुत किया जा रहा है:-
श्रावणस्य दिने प्रोक्तं यद् व्रतं परमं शुभम्।
सर्वपापविनाशाय शिवलोकप्रदायकम्॥
अर्थात: श्रावण मास के दिनों में किया गया व्रत परम शुभ होता है, यह सभी पापों का नाश करता है और शिवलोक की प्राप्ति कराता है।
सोमवारे विशेषेण कृत्वा पूजनमीडयम्।
शिवं प्राप्नोति भक्तात्मा नात्र कार्या विचारणा॥
अर्थात: विशेषकर सोमवार के दिन जो श्रद्धापूर्वक भगवान शिव की पूजा करता है, वह निश्चित रूप से शिव की कृपा प्राप्त करता है। इसमें कोई संदेह नहीं है।
पुष्पैः पत्रैः फलैर्नित्यं पूजयित्वा महेश्वरम्।
भवबन्धविनिर्मुक्तो भवेत् स भवतः प्रियः॥
अर्थात: जो व्यक्ति प्रतिदिन फूल, पत्र और फल आदि से भगवान महेश्वर (शिव) की पूजा करता है, वह संसार बंधनों से मुक्त हो जाता है और भगवान का प्रिय बनता है।
बिल्वपत्रं च यो दत्ते शुद्धभावसमन्वितः।
सर्वपापविनिर्मुक्तो शिवलोकं स गच्छति॥
अर्थात: जो व्यक्ति शुद्ध भाव से बिल्वपत्र अर्पण करता है, वह सभी पापों से मुक्त होकर शिवलोक को प्राप्त करता है।
नक्तं च गोपनं कुर्यात् पूजां च विधिवत्तदा।
सोमवारे विशेषेण श्रावणस्य महीपते॥