हम पृथ्वी के इंसान, पर्यावरण को अपनी नहीं बल्कि भगवान की जिम्मेदारी मानते हैं इसलिए, यह कहना उचित होगा कि पर्यावरण के स्वामी इंद्रदेव की 5 क्लाइमेट स्ट्राइक से पृथ्वी के केवल एशिया महाद्वीप में साल 2024 में 2915 से अधिक लोगों की मृत्यु हुई और 950000 से अधिक लोगों की संपत्ति का नुकसान हुआ। यह स्थिति अंत नहीं बल्कि इंद्र के हमलों की शुरुआत है। वर्ल्ड मेट्रोलॉजिकल ऑर्गनाइज़ेशन (WMO) की ताज़ा रिपोर्ट State of the Climate in Asia 2024 बताती है कि, एशिया महाद्वीप में समुद्र उबल रहा है और ग्लेशियर पिघल रहे हैं। यह प्रक्रिया दुनिया के दूसरे क्षेत्रों की तुलना में एशिया में ज्यादा तेज हो रही है।
इंद्रदेव की 5 क्लाइमेट स्ट्राइक
पृथ्वी पर दो देश जब एक दूसरे पर हवाई हमला करते हैं तो उनके पास हमले से बचने के लिए डिफेंस सिस्टम भी होता है परंतु जब पर्यावरण का हमला होता है तो उससे बचने के लिए हम लोगों के पास कोई डिफेंस सिस्टम नहीं है। 2024 में पर्यावरण के स्वामी इंद्रदेव ने एशिया महाद्वीप में कुल पांच सर्जिकल स्ट्राइक किए वर्ल्ड मेट्रोलॉजिकल ऑर्गनाइज़ेशन (WMO) की State of the Climate in Asia 2024 रिपोर्ट के अनुसार, 2024 में एशिया में जलवायु और मौसम संबंधी आपदाओं के कारण हुई मृत्यु और प्रभावित लोगों की संख्या के कुछ विशिष्ट आंकड़े इस प्रकार हैं:
- नेपाल में सितंबर 2024 की बाढ़ में 246 लोगों की मौत हुई।
- भारत के केरल में 30 जुलाई 2024 को भारी बारिश और भूस्खलन से 350 से अधिक लोगों की मृत्यु हुई।
- श्रीलंका में भारी बारिश, तूफान, बाढ़ और भूस्खलन से 18 लोगों की जान गई।
- सऊदी अरब में जून 2024 में हज यात्रा के दौरान भीषण गर्मी से 1,301 तीर्थयात्रियों की मृत्यु हुई।
- टाइफून यागी (2024 में दुनिया के सबसे शक्तिशाली तूफानों में से एक) के कारण फिलीपींस, चीन, वियतनाम, लाओस, थाईलैंड, म्यांमार में 1,000 से अधिक लोगों की मौत हुई।
कुल मृत्यु: इन 5 विशिष्ट घटनाओं में 2,915 से अधिक लोगों की मृत्यु दर्ज की गई। यहां नोट करना जरूरी है कि यह केवल पांच घटनाओं की मृत्यु का आंकड़ा है और वह भी सिर्फ उतना जितना सरकारी रिकॉर्ड में दर्ज हुआ। मौसम से मुठभेड़ में मारे गए लोगों की गिनती के लिए दुनिया में कोई सिस्टम ही नहीं है।
इंद्रदेव की क्लाइमेट स्ट्राइक से प्रभावित लोगों की संख्या
- श्रीलंका में बाढ़ और भूस्खलन से 4,50,000 से अधिक लोग प्रभावित हुए।
- चीन में सूखे से 4.8 मिलियन लोग प्रभावित हुए।
- कजाकिस्तान और रूस में बाढ़ से 1,18,000 लोग बेघर हुए।
- टाइफून यागी से सैकड़ों हजारों इमारतें नष्ट हुईं, जिससे लाखों लोग प्रभावित हुए (सटीक संख्या निर्दिष्ट नहीं)।
- नेपाल में बाढ़ के कारण 1,30,000 से अधिक लोग प्रभावित हुए।
केवल पांच घटनाओं में कम से कम 9.5 मिलियन से अधिक लोग प्रभावित हुए। यह सभी लोग जीवित तो हैं परंतु इनकी संपत्ति और रोजगार का नुकसान हुआ। इनके जीवन में सुख और समृद्धि की जगह स्ट्रगल आ गया है। किसी करोड़पति व्यापारी के बच्चे सरकारी स्कूल में पढ़ रहे हैं और कोई बड़ा दुकानदार मजदूरी करके अपने परिवार का पालन पोषण कर रहा है।
एशिया, पूरी दुनिया से लगभग दोगुनी रफ्तार से गरम हो रहा है
वर्ल्ड मेट्रोलॉजिकल ऑर्गनाइज़ेशन (WMO) की ताज़ा रिपोर्ट State of the Climate in Asia 2024 बताती है कि एशिया अब पूरी दुनिया से लगभग दोगुनी रफ्तार से गरम हो रहा है, और इसका असर एशिया में रहने वाले प्रत्येक व्यक्ति के जीवन पर पड़ रहा है। उस व्यक्ति का जीवन भी प्रभावित हो रहा है जिसने पर्यावरण के प्रति कभी कोई अपराध नहीं किया, क्योंकि सामाजिक अपराध का दंड भी सामाजिक होता है।
तापमान ने तोड़े रिकॉर्ड, एशिया अब Heat Zone
2024 में एशिया का औसत तापमान 1991–2020 की तुलना में 1.04°C ज़्यादा रहा। याद रखिए यह वृद्धि औसत तापमान में हुई है। औसत तापमान में 0.02°C की वृद्धि, अधिकतम और न्यूनतम तापमान को काफी प्रभावित कर देती है। चीन, जापान, कोरिया, म्यांमार जैसे देशों में महीनों तक लगातार हीटवेव्स चलीं। म्यांमार में 48.2°C का नया रिकॉर्ड दर्ज किया गया। म्यांमार में लंबे समय तक इतनी अधिक गर्मी पड़ी कि, इंसानों के शरीर में पानी की मात्रा कम होती चली गई और जीवन के लिए संकट उपस्थित हो गया। अप्रैल से लेकर नवंबर तक लगातार गर्मी ने बड़े पैमाने पर मौसम से मौत की स्थिति बना दी थी।
भीषण गर्मी के कारण समंदर उबल रहा है
एशिया का पूरा समुद्री इलाका अब तेज़ी से गर्म हो रहा है। WMO की रिपोर्ट कहती है कि समुद्री सतह का तापमान अब हर दशक में 0.24°C बढ़ रहा है, ये ग्लोबल औसत (0.13°C) से लगभग दोगुना है।
2024 में रिकॉर्डतोड़ "मरीन हीटवेव्स" आईं। अगस्त-सितंबर के दौरान, करीब 15 मिलियन वर्ग किलोमीटर समुद्र इस हीटवेव से प्रभावित हुआ, यानी पूरी धरती के महासागरीय क्षेत्र का 10% हिस्सा।
इससे मछलियों की ब्रीडिंग, समुद्री जीव-जंतु और तटीय आजीविकाओं पर सीधा असर पड़ा। छोटे द्वीपीय देशों और भारत के तटीय क्षेत्रों के लिए ये एक नया खतरा बन चुका है।
हिमालय पर 24 में से 23 ग्लेशियरों का द्रव्यमान घटा
"तीसरा ध्रुव" कहे जाने वाले हाई माउंटेन एशिया (HMA) जो तिब्बती पठार और हिमालय क्षेत्र में फैला है, अब तेज़ी से अपनी बर्फ खो रहा है। 2023–24 के आंकड़ों में, 24 में से 23 ग्लेशियरों का द्रव्यमान घटा। मध्य हिमालय और तियन शान की चोटियों पर कम बर्फबारी और अत्यधिक गर्मी ने ग्लेशियरों को खोखला बना दिया है।
उरुमची ग्लेशियर नंबर 1, जो 1959 से मॉनिटर किया जा रहा है, उसने अब तक की सबसे बड़ी बर्फीली गिरावट दर्ज की।
ग्लेशियरों के पिघलने से ग्लेशियल लेक आउटबर्स्ट फ्लड्स (GLOFs) और भूस्खलन की घटनाएं बढ़ रही हैं। इसका सीधा असर पानी की सुरक्षा और लाखों लोगों की ज़िंदगी पर पड़ता है जो इन नदियों पर निर्भर हैं।
समाधान क्या है?
समाधान तक पहुंचाने के लिए समस्या पर चर्चा करना जरूरी है। कृपया इस जानकारी को उन बुद्धिजीवी नागरिकों तक शेयर करें जिनको पर्यावरण और सामाजिक जीवन एवं जिम्मेदारी समझ में आती है। बुद्धिमान नागरिकों का संगठन ही सरकार को समाधान के लिए मजबूर कर सकता है। जागरूकता से कभी कुछ नहीं होता, अब कड़े कानून की जरूरत है, क्योंकि दुनिया का कोई भी वैज्ञानिक ऐसा कोई डिफेंस सिस्टम बना ही नहीं सकता जो हम इंसानों को तूफान, बाढ़ और सूखे की स्थिति से बचा सके।