GANGAUR 2025 Muhurt Time Puja Vidhi Katha - गणगौर की पूजा विधि, शुभ मुहूर्त एवं कथा - VIDEO

GANGAUR - गणगौर का अर्थ है 'गण' और 'गौर'। 'गण' का तात्पर्य है "शिव" और 'गौर' का अर्थ है "पार्वती"। वास्तव में गणगौर पूजन माँ पार्वती और भगवान शिव की पूजा का दिन है। शिव-पार्वती की पूजा का यह पावन पर्व आपसी स्नेह और साथ की कामना से जुड़ा हुआ है। इसे शिव और गौरी की आराधना का मंगल उत्सव भी कहा जाता है। प्रत्येक वर्ष चैत्र माह में शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को गणगौर तीज मनाई जाती है। इस दिन सुहागिन महिलाएँ सौभाग्यवती की कामना के लिए गणगौर माता यानी माता गौरा की पूजा करती हैं।

गणगौर पूजा 2025 शुभ मुहूर्त - GANGAUR POOJAN 2025 Muhurat Time

पंचांग के अनुसार, रवि योग दोपहर 01 बजकर 45 मिनट से 02 बजकर 08 मिनट तक रहेगा। अभिजीत मुहूर्त दोपहर 12 बजकर 00 मिनट से 12 बजकर 50 मिनट तक रहेगा। इसके साथ ही विजय मुहूर्त दोपहर 02 बजकर 30 मिनट से 03 बजकर 19 मिनट तक रहेगा। गोधूलि मुहूर्त शाम 06 बजकर 37 मिनट से 07 बजकर 00 मिनट तक रहेगा। इस दौरान आप किसी भी तरह के शुभ काम और पूजा-अर्चना कर सकते हैं। 

गणगौर पूजन विधि - GANGAUR POOJA VIDHI

वसंत और फाल्गुन की ऋतु में श्रृंगारित धरती और माटी की गणगौर का पूजन प्रकृति और स्त्री के उस मेल को बताता है, जो जीवन को सृजन और उत्सव की उमंगों से जोड़ता है। गणगौर पूजन के लिए कुंवारी कन्याएँ व विवाहित स्त्रियाँ ताज़ा जल लोटों में भरकर उसमें हरी-हरी दूब और फूल सजाकर सिर पर रखकर गणगौर के गीत गाती हुई घर आती हैं। इसके बाद शुद्ध मिट्टी के शिव स्वरूप ईसर और पार्वती स्वरूप गौर की प्रतिमा बनाकर चौकी पर स्थापित करती हैं।  

शिव-गौरी को सुंदर वस्त्र पहनाकर सम्पूर्ण सुहाग की वस्तुएँ अर्पित करके चंदन, अक्षत, धूप, दीप, दूब व पुष्प से उनकी पूजा-अर्चना की जाती है। सौभाग्य की कामना के लिए दीवार पर सोलह-सोलह बिंदियाँ रोली, मेहंदी व काजल की लगाई जाती हैं। एक बड़ी थाली में चाँदी का छल्ला और सुपारी रखकर उसमें जल, दूध-दही, हल्दी, कुमकुम घोलकर सुहागजल तैयार किया जाता है। दोनों हाथों में दूब लेकर इस जल से पहले गणगौर को छींटे लगाकर, फिर महिलाएँ अपने ऊपर सुहाग के प्रतीक के तौर पर इस जल को छिड़कती हैं। अंत में मीठे गुने या चूरमे का भोग लगाकर गणगौर माता की कहानी सुनी जाती है।  

गणगौर पूजा का महत्व - GANGAUR POOJAN KI IMPORTANCE

नवरात्रि के तीसरे दिन यानी चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया को मनाया जाने वाला गणगौर का त्योहार स्त्रियों के लिए अखंड सौभाग्य प्राप्ति का पर्व है। विवाहित स्त्रियाँ इसे अपने पति की मंगल कामना और अखंड सौभाग्य का वरदान पाने के लिए मनाती हैं। अविवाहित कन्याएँ गौर माता से मनचाहा वर पाने की मनोकामना के लिए सोलह दिन गणगौर की पूजा करती हैं। शास्त्रों के अनुसार, माँ पार्वती ने भी अखंड सौभाग्य की कामना से कठोर तपस्या की थी और उसी तप के प्रताप से भगवान शिव को पाया था। इस दिन भगवान शिव ने माता पार्वती को तथा पार्वती जी ने समस्त स्त्री जाति को सौभाग्य का वरदान दिया था। माना जाता है कि तभी से इस व्रत को करने की प्रथा आरंभ हुई।  

GANGAUR VRAT KI KATHA BEHIND STORY - गणगौर की व्रत कथा के पीछे की कहानी

गणगौर का त्योहार चैत्र महीने की शुक्ल पक्ष की तीज को मनाया जाता है। यह त्योहार होली के दूसरे दिन से ही शुरू हो जाता है, जो 16 दिनों तक मनाया जाता है। माना जाता है कि गणगौर अपने पीहर आती हैं और फिर पीछे-पीछे ईश्वर उन्हें लेने आते हैं, और आखिर में चैत्र शुक्ल द्वितीया व तृतीया को गणगौर को अपने ससुराल के लिए विदा किया जाता है।  

GANGAUR VRAT KI STORY - गणगौर की व्रत कथा

गणगौर व्रत का संबंध भगवान शिव और माता से है। शास्त्रों में वर्णित कथा के अनुसार, एक बार भगवान शिव, माता पार्वती और नारद मुनि भ्रमण पर निकले। सभी एक गाँव में पहुँचे। जब इस बात की जानकारी गाँववालों को लगी, तो गाँव की संपन्न और समृद्ध महिलाएँ तरह-तरह के स्वादिष्ट पकवान बनाने की तैयारी में जुट गईं, ताकि प्रभु अच्छा भोजन ग्रहण कर सकें। वहीं गरीब परिवारों की महिलाएँ पहले से ही उनके पास जो भी साधन थे, उसे अर्पित करने के लिए पहुँच गईं। ऐसे में उनकी भक्ति भाव से प्रसन्न होकर माता पार्वती ने उन सभी महिलाओं पर सुहाग रस छिड़क दिया। फिर थोड़ी देर बाद संपन्न परिवार की महिलाएँ तरह-तरह के मिष्ठान और पकवान लेकर वहाँ पहुँचीं, लेकिन माता के पास उन्हें देने के लिए कुछ नहीं बचा।  

इस पर भगवान शिव ने माता पार्वती से कहा कि अब आपके पास इन्हें देने के लिए कुछ नहीं बचा, क्योंकि आपने सारा आशीर्वाद गरीब महिलाओं को दे दिया। ऐसे में अब आप क्या करेंगी? तब माता पार्वती ने अपने खून के छींटों से उन पर अपने आशीर्वाद बाँटे। इसी दिन चैत्र मास की शुक्ल तृतीया का दिन था। इसके बाद सभी महिलाएँ घरों को लौट गईं। इसके बाद माता पार्वती ने नदी के तट पर स्नान कर बालू से महादेव की मूर्ति बनाकर उनका पूजन किया। फिर बालू के पकवान बनाकर ही भगवान शिव को भोग लगाया और बालू के दो कणों को प्रसाद रूप में ग्रहण कर भगवान शिव के पास वापस लौट आईं।  

यह सभी बातें भगवान शिव जानते थे, फिर भी माता पार्वती को छेड़ने के लिए पूछा कि स्नान करने में बहुत देर लगा दी। तब माता ने कहा कि मायके वाले मिल गए थे, जिसके कारण इतनी देर हो गई। फिर भगवान शिव ने माता पार्वती से पूछा कि आपके पास तो कुछ था भी नहीं, स्नान के बाद प्रसाद में क्या लिया? इसके जवाब में माता ने कहा कि भाई और भाभी ने दूध-भात बना रखा था, उसी को ग्रहण कर सीधे आपके पास आई हूँ।  

फिर भगवान शिव ने भाई-भाभी के यहाँ चलने को कहा, ताकि उनके यहाँ बने दूध-भात का स्वाद चख सकें। तब माता ने अपने को संकट में फँसे देख मन ही मन भगवान शिव को याद कर अपनी लाज रखने की प्रार्थना की। इसके बाद नारद मुनि को साथ लेते हुए तीनों लोग नदी तट की तरफ चल दिए। वहाँ पहुँचकर देखा कि एक महल बना हुआ है। वहाँ पर खूब आवभगत हुई। इसके बाद जब वहाँ से तीनों लोग चलने लगे, तो कुछ दूर चलकर भगवान शिव माता से बोले कि मैं अपनी माला आपके मायके में भूल आया हूँ।  

माता पार्वती के कहने पर नारद जी वहाँ से माला लेने के लिए उस जगह दोबारा गए, तो वहाँ पहुँचकर हैरान रह गए, क्योंकि उस जगह चारों तरफ सन्नाटे के अलावा कुछ भी नहीं था। तभी एक पेड़ पर उन्हें भगवान शिव की रुद्राक्ष की माला दिखाई दी। उसे लेकर वे लौट आए और भगवान शिव को सारी बातें बताईं। तब भगवान शिव ने कहा कि यह सारी माया देवी पार्वती की थी। वे अपने पूजन को गुप्त रखना चाहती थीं, इसलिए उन्होंने झूठ बोला और अपने सत के बल पर यह माया रच दी।  

तब नारद जी ने देवी माता से कहा कि माँ, आप सौभाग्यवती और आदिशक्ति हैं। ऐसे में गुप्त रूप से की गई पूजा ही अधिक शक्तिशाली एवं सार्थक होती है। तभी से जो स्त्रियाँ इसी तरह गुप्त रूप से पूजन कर मंगल कामना करेंगी, महादेव की कृपा से उनकी मनोकामनाएँ जरूर पूरी होंगी। इसी कथा के चलते तभी से गणगौर उपवास को महिलाएँ अपने पति से छिपाते हुए करती हैं। तभी से लेकर गणगौर के इस गोपनीय पूजन की परंपरा चली आ रही है।  

गणगौर महिलाओं का त्योहार है, इसलिए गणगौर पर चढ़ाया हुआ प्रसाद पुरुषों को नहीं दिया जाता है। गणगौर के पूजन में प्रावधान है कि जो सिंदूर माता पार्वती को चढ़ाया जाता है, महिलाएँ उसे अपनी माँग में सजाती हैं। शाम को शुभ मुहूर्त में गणगौर को पानी पिलाकर किसी पवित्र सरोवर या कुंड आदि में इनका विसर्जन किया जाता है।  

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