ऐसे कैसे सुधरेगा, देश का स्वास्थ्य - Pratidin

Bhopal Samachar
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पुख्ता खबर है कि केंद्र सरकार अगले वित्त वर्ष के बजट में स्वास्थ्य के मद में आवंटन बढ़ाने पर विचार कर रही है| पिछले बजट में इस क्षेत्र के लिए ६७,१११ करोड़ रुपये निर्धारित थे, इस बार इसमें ५० प्रतिशत की वृद्धि संभावित है| उल्लेखनीय है कि कुछ दिन पहले कोरोना महामारी की रोकथाम के उपायों की समीक्षा करते हुए संसद की स्थायी समिति ने रेखांकित किया था कि देश की बड़ी जनसंख्या को देखते हुए स्वास्थ्य सेवाओं पर सार्वजनिक खर्च बहुत ही कम है, जिसे बढ़ाया जाना चाहिए| उस रिपोर्ट में यह भी कहा गया था कि स्वास्थ्य केंद्रों और सरकारी अस्पतालों में संसाधनों की कमी के कारण संक्रमितों का ठीक से उपचार नहीं हो पा रहा है|

आंकड़े बताते हैं अन्य विकासशील देशों की तुलना में भारत स्वास्थ्य पर सबसे कम खर्च करता है, जो सकल घरेलू उत्पादन (जीडीपी) का लगभग सवा फीसदी है| यह केंद्र व राज्य सरकारों का कुल खर्च है, जो लगभग २.६ लाख करोड़ रुपये है| चीन में यह खर्च पांच प्रतिशत और ब्राजील में नौ प्रतिशत है| सार्वजनिक चिकित्सा की समुचित उपलब्धता नहीं होने के कारण लोगों को निजी क्लिनिकों व अस्पतालों में जाना पड़ता है, जहां उन्हें बहुत अधिक खर्च करना पड़ता है| ग्रामीण क्षेत्रों एवं दूरस्थ स्थानों में तो यह समस्या और भी गंभीर है| इस स्थिति में बजट में आवंटन बढ़ाना एक सराहनीय कदम है|

वैसे सरकार ने राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति के तहत पहले से ही २०२५  तक इस मद में सार्वजनिक खर्च को बढ़ा कर जीडीपी का ढाई फीसदी करने का संकल्प लिया है| इस लक्ष्य को पाने के लिए आवंटन में निरंतर बढ़ोतरी की जरूरत होगी| ये राशि कहाँ से आयेगी इसकी कोई आयोजना अभी तक स्पष्ट नहीं है | इसके विपरीत  राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति, प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना, बीमा कार्यक्रमों, टीकाकरण, स्वच्छता अभियान आदि के लिए व्यापक आयोजना जरूरी है, इससे भविष्य में व्यापक सुधार की आशा है| सरकार मेडिकल और नर्सिंग के शिक्षण-प्रशिक्षण के विस्तार के लिए प्रयासरत है| इन कार्यों के लिए धन की आवश्यकता है, यह आएगा कहाँ से इसके लिए अभी से प्रयास और स्पष्टता की जरूरत है |

पूरा देश आज जिस कोरोना दुष्काल से गुजर रहा है |उस कोरोना दुष्काल का सबसे बड़ा सबक यही है कि हमें स्वास्थ्य सेवाओं को जनसुलभ बनाने को प्राथमिकता देनी होगी तथा इसमें केंद्र के साथ राज्य सरकारों को भी बढ़-चढ़ कर योगदान करना होगा| सरकार को और खास तौर पर कार्यपालिका द्वारा संसदीय समिति के इस उल्लेख का भी संज्ञान लिया जाना चाहिए कि यदि निजी अस्पताल कोरोना के जांच व उपचार के लिए ने मनमाने ढंग से पैसा नहीं लेते, तो महामारी से होनेवाली मौतों की संख्या कम हो सकती थी. अन्य गंभीर बीमारियों के इलाज के साथ भी यही बात लागू होती है|  दुष्काल के दौरान और उसके बाद भी अस्पतालों के इस रवैये में सुधार जरूरी है |

यह हमारे देश का दुर्भाग्य है कि आम आदमी अपनी आमदनी का बड़ा हिस्सा उपचार पर खर्च कर देने की वजह से बड़ी संख्या में परिवार गरीबी का शिकार हो रहे हैं| स्वास्थ्य केंद्रों और चिकित्सकों के अभाव के कारण मामूली बीमारियां भी समय से उपचार न होने से गंभीर हो जाती हैं| कोरोना दुष्काल में जो  बात उभर कर सामने आई है कि इस आपदा से जूझने का सारा बोझ सरकारी स्वास्थ्य तंत्र पर आ गया | इस यकायक आपदा के आने के अनुभव से यही सीख मिलती है कि यदि देश स्वाथ्य की नीति और विभाग सक्षम एवं साधन-संपन्न बनाया जाए, तो भविष्य में किसी महामारी से लड़ना आसान हो जायेगा| सरकार, नौकरशाही, और नागरिकों का सहयोग इसमें जरुरी है | सबको सबके लिए सोचना होगा |
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श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।
संपर्क  9425022703        
rakeshdubeyrsa@gmail.com
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