निकलते प्राणों को प्राणवायु [आक्सीजन ] की दरकार - Pratidin

भारत देश और उसका मध्यप्रदेश विश्व में जंगल के लिए जाने जाते हैं, कुछ बरस पहले ये जंगल प्राणवायु अर्थात आक्सीजन के लिए जाने जाते थे | अब तो यहाँ  कारखाने से उत्पादित आक्सीजन के सहारे कोविड- १९ के मरीज जिन्दा है और आक्सीजन की उपलब्धता के लाले पड़े हुए हैं | वास्तव में कोविड संकट ने ऐसे वक्त पर चोट दी कि देश इस चुनौती के मुकाबले के लिए चिकित्सा संसाधनों और मानसिक रूप से तैयार न था। लॉकडाउन के दौरान चिकित्सा सुविधाओं की उपलब्धता और जरूरत के बीच तालमेल बनाने की कोशिश जरूर की गई। इतने बड़े देश में जिसका चिकित्सा तंत्र बाज़ार वाद के कारण पहले से चरमराया हो, वहां पर्याप्त चिकित्सा सुविधाएं उपलब्ध कराना ज्यादा बड़ी चुनौती थी और अब भी है।

खासकर वेंटिलेटर और चिकित्सा ऑक्सीजन की आपूर्ति को लेकर, जा रही जानों को लेकर | अब  जब कोरोना मरीजों के लिये अतिरिक्त बेड उपलब्ध कराने का प्रश्न देश के सामने खड़ा है तब सबसे बड़ी चुनौती ऑक्सीजन की आपूर्ति की है ।  पाइप लाइन से ऑक्सीजन की आपूर्ति संभव न होने पर ऑक्सीजन सिलेंडरों से मरीजों की जान बचाने की कोशिश जारी है । दरअसल, कोरोना संक्रमण से सबसे ज्यादा असर शरीर में ऑक्सीजन के स्तर पर होता है। मरीजों को जिंदा रखने के लिये ऑक्सीजन की आपूर्ति सबसे ज्यादा जरूरी है।

विश्व स्वास्थ्य संगठन की एक रिपोर्ट के अनुसार १५ प्रतिशत कोरोना मरीजों में फेफड़े काम नहीं करते और उन्हें सांस लेने के लिये मदद की जरूरत होती है। कुछ मरीज ऐसे भी होते हैं जिन्हें सांस लेने में दिक्कत नहीं होती, मगर उनके शरीर में ऑक्सीजन की कमी चिंताजनक स्तर तक होती है। हमारे देश में गांव-देहात में ऑक्सीजन की आपूर्ति बड़ी चुनौती है। ऐसे में सभी रोगियों के लिये ऑक्सीजन की आपूर्ति सुनिश्चित करना  सरकार की पहली प्राथमिकता होनी चाहिए। केंद्रीय स्वास्थ्य सचिव, उद्योग व आंतरिक व्यापार विभाग के सचिव, फॉर्मास्यूटिकल्स और राज्यों के स्वास्थ्य सचिवों की बैठक में ऑक्सीजन की आपूर्ति सुनिश्चित करने हेतु रणनीति बनी। सभी राज्यों को निर्देश दिये गये कि ऑक्सीजन आपूर्ति सुनिश्चित करने के लिये ऑक्सीजन टैंकरों के निर्बाध आवागमन के लिये ग्रीन कॉरिडोर बनाये जायें।

कोरोना वायरस के प्रसार से उपजे वैश्विक संकट के मुकाबले के लिये एकीकृत रणनीतियों की सख्त जरूरत है। भारत में लॉकडाउन के दौरान बाहरी राज्यों से वाहनों के आवागमन पर प्रतिबंध लगने के चलते कई तरह के अवरोध ऑक्सीजन आपूर्ति में भी बाधा बने । हालांकि, इस दौरान चिकित्सा आपूर्ति में किसी तरह की रोक नहीं लगी थी। अनलॉक- चार प्रभावी होने के बाद अधिकांश सेवाओं को खोल दिया गया है, लेकिन कुछ राज्यों में चिकित्सा ऑक्सीजन की आपूर्ति बाधित हो रही थी, जो कि कोविड-१९ के रोगियों के लिये बेहद जरूरी है। विडंबना यह भी है कि देश में चिकित्सा ऑक्सीजन की उपलब्धता बढ़ाना उतना सहज भी नहीं है। सामान्य दिनों में महज १५ प्रतिशत ऑक्सीजन का उत्पादन चिकित्सा क्षेत्र के लिये हो रहा था, बाकी स्टील व ऑटोमोबाइल के क्षेत्र में हो रहा था।

 संकट यह भी है कि कारखानों द्वारा अधिकांश ऑक्सीजन की सप्लाई सरकारी अस्पतालों को की जाती है, मगर उन्हें समय से इसका भुगतान नहीं किया जाता। जबकि चिकित्सा ऑक्सीजन के उत्पादन में पर्याप्त पूंजी और उन्नत तकनीक की जरूरत होती है। यही वजह है की हैंड सैनिटाइजर व मॉस्क उत्पादन के क्षेत्र में तो नये उद्यमी उतरे हैं, वैसे ऑक्सीजन उत्पादन का क्षेत्र इतना सरल भी नहीं है।

आज जब देश में लाखों लोग कोरोना संक्रमित हो चुके हैं और मौत का आंकड़ा भी लाख के करीब पहुंचने वाला है, ऑक्सीजन उपलब्धता सुनिश्चित करने की सख्त जरूरत है। राज्यों के स्वास्थ्य विभागों को इस चुनौती से निपटने के लिये एकजुटता दिखानी चाहिए। कमोबेश ऐसी ही एकजुटता की कोशिश विश्व स्तर पर भी की जा रही है। संयुक्त राष्ट्र महासभा में भारत समेत १६९  देशों ने कोरोना महामारी से जूझने, उपचार, चिकित्सा सुविधाओं तथा वैक्सीन उपलब्धता में व्यापक सहयोग को लेकर प्रतिबद्धता जाहिर की। इसके परिणाम शुभ हो, यही कामना है |
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श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।
संपर्क  9425022703        
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