RTI आवेदकों को तंग करने का नया तरीका: 1 सवाल के 360 जवाब

भोपाल। सूचना का अधिकार अधिनियम के तहत जानकारियां मांगने वाले आवेदकों को हतोत्साहित करने की साजिश पूरे देश में चल रही है। एक नया नमूना मध्य प्रदेश के नीमच में सामने आया है। यहां भारतीय डाक विभाग के चीफ पोस्ट मास्टर ने एक आरटीआई आवेदन का जवाब देने के लिए सभी डाक अधीक्षक को नियुक्त कर दिया। नतीजा यह कि एक सवाल का प्रतिदिन 20 से 22 जवाब आ रहे हैं, अब तक 360 जवाब आ चुके हैं और यह सिलसिला लगातार जारी है। यह सब कुछ केवल इसलिए ताकि आवेदक हतोत्साहित हो जाए और वह जो जानकारी प्राप्त करना चाहता है उसे पाने की जिद ही छोड़ दें।

विभागी अचल संपत्तियों की जानकारी मांगी थी

मध्यप्रदेश के नीमच जिले के सामाजिक कार्यकर्ता और पत्रकार जिनेंद्र सुराना ने डाक विभाग के डाकघर, परिसर, कार्यालय और आवासीय परिसर की जानकारी मांगी थी। सुराना ने बताया कि उन्होंने ऑनलाइन आवेदन भेजकर डाक विभाग की संपत्ति के बारे में जानकारी चाही थी। उन्होंने पूछा था कि विभाग की अचल संपत्तियोें की बाजार कीमत और बुक वैल्यू कितनी है?

चीफ पोस्ट मास्टर सबको आदेशित किया अपनी अपनी जानकारी सीधे भेज दें

इस सवाल का जवाब देने की जिम्मेदारी विभाग ने चीफ पोस्ट मास्टर और सभी पोस्ट मास्टर जनरलों को सौंप दी। सुराना के मुताबिक, जानकारी भेजने की जिम्मेदारी विभाग के बड़े अधिकारियों से होते हुए सभी डाक अधीक्षकों पर आ गई। उन्हें निर्देश दिया गया कि वे अपने कार्यालय की जानकारी सीधे आवेदनकर्ता को उपलब्ध कराएं। उनकी ओर से जानकारी भेजने का सिलसिला शुरू हुआ तो इतने जवाब आए कि पूछने वाला परेशान हो गया।

हर दिन 10 से ज्यादा डाक आ रही हैं

सुराना ने बताया कि उनके यहां कई दिनों से औसतन लगातार 10 से ज्यादा डाक आ रही हैं। उनकी ओर से ऑनलाइन आवेदन 7 अगस्त को किया गया था और डाक के जरिए जवाब आने का सिलसिला 13 अगस्त से शुरू हुआ। एक दिन में अधिकतम 22 और न्यूनतम पांच डाक आई है। इस तरह अब तक कुल 360 जवाबी डाक उनके पास आ चुकी है।

आरटीआई याचिकाकर्ता को तंग करने का नया तरीका

सूचना के अधिकार के तहत जवाब देने की प्रक्रिया पर सुराना ने सवाल उठाए हैं। उनका कहना है कि आवेदन ऑनलाइन किया गया था, मगर जवाब डाक के जरिए आ रहे है और जो जवाब आ रहे हैं, उनमें से अधिकांश संतोषजनक नहीं हैं। अब तक 25 से 30 जिलों व मंडल ने ही अपनी अचल संपत्ति की जानकारी दी है। दक्षिण के एक मंडल ने तो वर्ष 1870 की बुक वैल्यू की जानकारी उपलब्ध कराई है।

सुराना का कहना है कि सूचना का अधिकार जिन उद्देश्यों को लेकर अमल में लाया गया, उसे अब तक कई विभाग समझ ही नहीं पाए हैं, यह दुर्भाग्यपूर्ण है। इसका ताजा उदाहरण डाक विभाग है। डाक विभाग को आवेदन का जवाब ऑनलाइन देना चाहिए था, मगर वह डाक के जरिए भेजे जा रहे हैं। विभाग के मुखिया को अपने स्तर पर संयोजित करके ब्यौरा देना चाहिए था लेकिन उन्होंने इस काम में डाक अधीक्षकों को उलझा दिया।

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