ये रहा 'हरा भाेपाल' का तमाशा, सरकारी खर्च पर ड्रामा जारी | GREEN BHOPAL COOL BHOPAL

Bhopal Samachar
भोपाल। 'हरा भाेपाल शीतल भाेपाल' के नाम पर काम कर तमाशा ज्यादा हो रहा है। पहले सरकारी अधिकारियों ने रिश्वत लेकर बिल्डर्स को पेड़ काटने धड़ाधड़ अनुमतियां दीं। जब पता चला कि यह तो घातक हो गया है और जिम्मेदार अधिकारियों के खिलाफ आवाज उठ सकती है तो 'हरा भाेपाल शीतल भाेपाल' अभियान शुरू कर दिया। देखिए किस तरह 2 फीट कांक्रीट पर जमीन पर 6 इंच का गढ्डा खोदकर 'हरा भाेपाल शीतल भाेपाल' के लिए पौधा रोपण किया जा रहा है। 

पर्यावरण संरक्षण के नाम पर भाेपाल संभागायुक्त ने हरा भाेपाल शीतल भाेपाल अभियान शुरू किया था परंतु इसकी हालत भी शिवराज सिंह के नर्मदा प्लांटेशन जैसी हो गई है। खबरें तो आ रहीं हैं परंतु पौधे नजर नहीं आ रहे। अधिकारियों को फोटो खिंचवाने के लिए कुछ कार्यक्रम आयोजित किए जा रहे हैं वो भी कैसे कैसे। बरकतुल्लाह विश्वविद्यालय के सामने बने फुटपाथ पर ही पौधे रोप दिए गए। इनकी संख्या 1000 है। यह काम नगर निगम के सरकारी खर्चे पर किया गया है। पौधे छायादार और फलदार वृक्षों की प्रजाति है लेकिन ये पौधे फुटपाथ पर लगी टाइल्स काे उखाड़कर लगा दिए गए हैं। नीचे 2 फीट कांक्रीट है। पौधे कितने दिन जिंदा रहेंगे।

कुछ सरल से सवाल

फुटपाथ पर पौधे लगा दिए तो अब निय​मानुसार पैदल जनता कहां चलेगी।
जब ये पौधे पेड़ बन जाएंगे तो क्या इनके किनारे से निकलने की जगह भी बचेगी। 
40 साल बाद जब सड़क का चौड़ीकरण होगा तब क्या पेड़ काटने नहीं पड़ेंगे। 

आवेदन करने के 22 दिन बाद भी नहीं पहुंचे पौधे 

मोबाइल एप पर ऑनलाइन आवेदन करने वाले आवेदकों के घर पौधे पहुंचे ही नहीं हैं। तकरीबन 10 हजार लाेगों ने आवेदन किया था। इसमें से कई लोगों के घर पौधे नहीं पहुंचे हैं। बागसेवनियां निवासी तूलिका दुबे ने बताया कि उन्हाेंने दाे पौधे की डिमांड ऑनलाइन की थी, लेकिन अभी पौधे नहीं पहुंचे। एक अन्य आवेदक सांध्यदीप काशिव ने 22 दिन पहले 7 पाैधाें की डिमांड की है, लेकिन अब तक उन्हें भी पौधे नहीं मिले हैं।। 

एसडीओ तरुण काैरव का बहाना

अनुसंधान विस्तार एवं लोक वानिकी भाेपाल के एसडीओ तरुण काैरव कहते हैं कि अभियान अभी खत्म नहीं हुआ है। पौधे घर-घर पहुंचाए जा रहे हैं। पौधे पहुंचाने के लिए पहले विभाग काे 10 वाहन मिले थे। अब केवल चार वाहन है, जिसमें दाे वाहन वन विभाग और दाे नगर निगम के हैं। यही वजह है कि पौधे पहुंचाने में समय लग रहा है। सवाल यह है कि वाहन कम हैं, ठीक है क्या एक फोन कॉल करके आवेदक को संतोषभरी जानकारी भी नहीं दी सकती। क्या उन्हे बताया नहीं जा सकता कि किस संभावित तारीख तक उन्हे पौधे मिल जाएंगे ​या फिर ऑनलाइन आवेदन तो केवल रिकॉर्ड में दर्ज करने के लिए मंगवाए थे ताकि दस्तावेज पक्के हो जाएं। 
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