सिवनी मालवा से वीरेन्द्र तिवारी। यूँ तो मध्य प्रदेश में अनेक ऐसे सुंदर स्थल देखने को मिलते हैं जहां की कल्पना लोग सपने में ही कर पाते हैं। इन सब में होशंगाबाद जिला भी पौराणिक एवं सुन्दरता में पीछे नहीं हैं। यहाँ अनेक दर्शनीय स्थल हैं। जिले का सबसे प्रसिद्ध एवं सुंदर स्थल नर्मदा का तट है। यह तट चाहे होशंगाबाद का हो या नेमावर या फिर आवंलीघाट का। हर जगह इसकी सुंदरता और प्रसिद्धता अपने आप में संपूर्ण है।
ऐसा ही ऐतिहासिक धर्मिक स्थल जो होशंगाबाद हरदा सड़क मार्ग पर उत्तर दिशा में स्थित हैं। यहां प्रति माह अमावस्या एवं पूर्णिमा पर हजारों की तादात में दूर-दूर के लोग नर्मदा में डुबकी लगाकर आत्म शान्ति पाते हैं। ऐसा कहा जाता हैं कि नर्मदा के किसी भी घाट से दर्शन मात्र से पुण्य लाभ प्राप्त हो जाता हैं। नर्मदा के निर्मल जल में स्नान करने मात्र से दुष्प्रवृत्तियों का नाश होकर प्राणी मात्र में सत्कर्मो के प्रति प्रवृत्ति होने की प्रेरणा प्राप्त होती हैं। नर्मदा का महत्व तो यहां तक है कि इसमें पड़ा एक-एक कंकर भी साक्षात भगवान शंकर के बराबर हैं जिसकी स्थापना में किसी भी कर्मकाण्ड अथवा शुद्वता की आवश्यकता नहीं होती। सिवनी मालवा तहसील में नर्मदा के भव्य मंदिर व घाट हैं जैसे आंवली, बावरी, भिलाडिया परन्तु आंवली घाट का विशेष महत्व है। यहां पर हथेडनदी ओर नर्मदा का संगम स्थल हैं। आंवली घाट का प्राकृतिक सौंदर्य देखते ही बनता हैं।
रुकमणी जी नर्मदा मैया से मिलने आईं थीं
घाट पर लक्ष्मीकुंड, बृ्रम्हपास भावनाथ बाबा की टेकरी आदि दर्शनीय स्थल और पौराणिक महत्व के स्थान हैं। महाभारत युग में पांडवों की तपस्या स्थली तथा वनवास के समय उनका यहां निवास स्थान था। यहॉ से एक किलोमीटर पूर्व में कुंतीपुर नगर एवं हस्तिनापुर नगर जो कि वर्तमान में कुंतिपुर कूल्हड़ा ओर हस्तिनापुर हथनापुर के नाम से प्रसिद्व हैं। यहां के बारे में अनेक किवदन्तियां हैं। लक्ष्मी कुण्ड पर रूख्मणीजी नर्मदाजी से मिलने गई थी।
यहीं पर भीम ने नदी की धारा रोकने की कोशिश की थी
आंवली घाट पर भीम द्वारा नर्मदा नदी का जल प्रवाह रोकने के लिए जो पत्थरों की चट्टने नर्मदा में डाली गई थीं, वह चट्टानें आज भी वहीं जमीं है। ऐसी किवदंती है कि महाभारत युग में नर्मदा से भीम ने कहा था तुमसे ही शादी करूंगा। नर्मदा जी ने कहा कि यदि सुबह तक जलधारा को रोक दो, इतना सुनते ही भीम ने जल प्रवाह रोकने के लिए पर्वतों की श्रृंखलाओं को जमा जमा कर कावड़ में पत्थर लाकर डाले। इस कार्य में भीम की माता कुंती ने भी भीम की सहायता की। उस समय नर्मदा ने विचार किया कि कहीं सुबह होने से पहले जलधारा रूक न जाए। तभी उन्होंने मुर्गा बनकर बांग दे दी। आवाज सुनते ही भीम और माता कुंती ने कावड़ पटक दी ओर वह पराजित हो गए। आंवली घाट में आज भी वह पत्थरों की चट्टानें वहीं जमी हुई हैं।
कुंति से मिलने लक्ष्मीजी यहीं पर आईं थीं
यह तट आंवली घाट के नाम से जाना जाता हैं। घाट पर लक्ष्मीजी के रथ के निशान भी हैं। किवदंती के अनुसार लक्ष्मीजी रथ पर सवार होकर कुंति से मिलनें आई थी। उस समय कुंति तपस्या में लीन थी। लक्ष्मीजी ने आवाज लगाई जिस पर कोई उत्तर नहीं मिला, इससे लक्ष्मीजी रूष्ट होकर रथ सहित कूल्हडा कुण्ड में समा गई। उस रथ के चाक के निशान आज भी पत्थरों पर समान दूरी पर हैं।
रेत में भीम के विशाल पैरों के निशान दिखाई देते हैं
आंवली घाट का, धार्मिक पर्वों पर और अधिक महत्व बढ़ जाता हैं। यहां पर हत्याहरणी हथेड नदी एवं नर्मदा का संगम स्थल हैं, इस कारण इसका महत्व अधिक हैं। ऐसी मान्यता है कि यहां वर्ष में दो बार प्रथम गंगा दशमी एवं आंवला नवमीं पर प्रति वर्ष भीम नर्मदा नदी में स्नान करने आते हैं। इन दो तिथियों में भीम प्रात: चार बजे स्नान कर वापस चले जाते हैं। यहां नदी के पास रज रेत में भीम के पैरों के निशान जो कि करीब 20 इंच लंबे होते हैं, जो इन तिथियों के आसपास ही देखने को मिलते हैं। कुछ भक्त इन पैरों के निशान की पूजा भी करते हैं। कुछ समय पश्चात इन पैरों के निशानों का रेत मे पता ही नहीं चलता।
और क्या क्या महत्वपूर्ण है आंवली घाट पर
यहां नर्मदा तट पर अनेक ऋषि, मुनि, संत, तपस्वी आते जाते थे, पुराणों में भी इनका उल्लेख मिलता है। आंवलीघांट पर उत्तर की ओर ब्रम्हयोनी हैं। इसमे से होकर निकलने पर मन की सभी मुरादें पूरी होती हैं। कुछ लोग इसे इंद्रजोन भी कहते हैं। उत्तर तट पर माँ नर्मदा के प्राचीन मंदिर हैं। वहीं दक्षिण तट पर प्राचीन नर्मदा मंदिर, श्री 1008 श्री दुर्गानन्दजी महाराज धुनीवाले खंडवा की समाधी स्थल, भगवान शंकर का मंदिर, हनुमान मंदिर एवं अनेक धर्मशालाएँ हैं। यहां सबसे प्राचीन नर्मदा मंदिर है। मंदिर में परिक्रमावासियों को ठहराने के लिए धर्मशाला हैं। यहां कूल्हडा से लेकर नावघाट तक शक्तिक्षेत्र है।
पांडव स्नान, दर्शन कर दोषमुक्त हुए थे
सोमवती अमावस्याम पर आंवली घाट पर पांडवों ने स्नान, दर्शन कर दोषमुक्त हुए थे। इसे नर्मदाकुम्भ कहते हैं। आंवली घाट से दो किलोमीटर दूर पश्चिम दिशा में ग्राम ग्वाडी हैं। यहां भावनाथ बाबा की पहाडी हैं। यहां सैंकड़ों वर्ष पुराना श्री नागेश्वर मंदिर के पाषाण शिलाखंड मौजूद हैं। आंवली घाट पर श्री धुनीवाले दरबार के पास एक भव्य शंकर मंदिर में भगवान शंकर एवं शिवलिंग प्रतिमा स्थापित हैं। यहां धर्मशाला भी बनवाई गई हैं। आंवली घाट का दक्षिण तट होशंगावाद एवं उत्तर तट सीहोर जिले में आता हैं। दोनों तटों पर नर्मदा जयंति, सोमवती अमावस्या एवं अन्य तीज त्योहारों पर भक्तों की भीड़ लगती हैं। इस स्थान पर अथाह पानी होने के कारण यहां बड़ी नॉव, स्टीमर, डोंगे पर्यटकों का मनोरंजन कराते हैं।
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