EVM से प्रत्याशियों ने जाना, उन्हें किस-किस ने दिया वोट | MP NEWS

भोपाल। ईवीएम की सुरक्षा को लेकर कांग्रेस, आम आदमी पार्टी सहित कई अन्य दल लगातार सवाल उठाते रहे हैं। लेकिन इसकी सुरक्षा के साथ ही एक बड़ा मसला वोट की गोपनीयता का बनकर उभरा है। मंगलवार को मतगणना के दौरान जैसे-जैसे इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन खुल रही थीं, दल हर मोहल्ले के हिसाब से पहले से जोड़-घटाव कर रहे थे कि उन्हें कहां के मतदाताओं ने वोट दिए और किस मोहल्ले के मतदाताओं ने उनका साथ छोड़ दिया।

ऐसा इसलिए संभव है क्योंकि मतदान के दौरान हर बूथ की ईवीएम को एक नंबर दिया जाता है, जो दलों को पता रहता है। ईवीएम से वोटों की गिनती के दौरान प्रत्याशी का एजेंट नोट करता है कि किस केंद्र की यह मशीन है और यहां से किस प्रत्याशी को कितने वोट मिले हैं। इससे हर केंद्र का हिसाब प्रत्याशी को लग जाता है कि उसे कितने वोट मिले। 

शहरी सीमा में एक बूथ पर अधिकतम 1400 और ग्रामीण क्षेत्र में 1200 मतदाता होते हैं। यदि इंदौर की बात करें तो यहां हुई वोटिंग प्रतिशत के हिसाब से एक मतदान केंद्र पर अधिकतम 570 वोटों की गिनती हुई है। राजनीतिक दल इन वोटों के गणित से पता कर लेते हैं कि किसने उन्हें वोट दिया या नहीं दिया। इसका नुकसान-फायदा कोई भी जनप्रतिनिधि भविष्य में अपने लोगों को लाभ देने और वोट नहीं देने वालों के काम नहीं करके कर सकता है। 

विधानसभा पांच में 30 राउंड के बाद भाजपा प्रत्याशी महेंद्र हार्डिया 11 हजार वोटों की लीड लिए हुए थे, लेकिन इसके बाद भी चिंता में थे। अंतिम दो राउंड में कांग्रेस प्रत्याशी सत्यनारायण पटेल के बेल्ट की ईवीएम खुलनी थी। यही हुआ और एकदम से लीड घटकर 800 वोट की रह गई। मुश्किल से 1133 वोटों से जीते। लेकिन उन्हें पता है कि किसने उन्हें वोट नहीं दिया।

विधानसभा तीन में पहले दो राउंड के बाद कांग्रेस के अश्विन जोशी डेढ़ हजार वोटों से आगे थे, लेकिन उन्हें फिर भी चिंता थी, क्योंकि यह उनके बेल्ट थे और कम लीड थी, आगे भाजपा के बेल्ट थे, उनकी लीड घटेगी। भाजपा के लोग खुश थे, उनके कमेंट थे कि यह तो उनके वार्ड थे, अभी हमारे लोगों की ईवीएम खुलनी है। हुआ भी यही। भाजपा ने लीड बनाई। 

निर्वाचन आयोग की यह चिंता काफी पहले से रही है, इसके लिए 2008 मेंं एक मशीन टोटलाइजर बनाई गई, जो सभी टेबल की ईवीएम को जोड़कर वोट बताने के लिए थी। इससे एरिया के हिसाब से वोटिंग पता नहीं चलती। इसके उपयोग के लिए कानून में संशोधन जरूरी है, मगर दल सहमत नहीं हैं।  आयुक्त आयोग कई बार राजनीतिक दलों को पत्र लिख चुका है, लेकिन कई दल इसके लिए सहमत नहीं हैं। यह मशीन लगे तो काफी बेहतर होगा।

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