दागियों से मुक्ति मिल सकती है, बशर्ते ! | EDITORIAL by Rakesh Dubey

Bhopal Samachar
कल अर्थात बीते कल का “प्रतिदिन” दागियों के सन्दर्भ में चुनाव आयोग के निर्देश पर था। इसकी व्यापक प्रतिक्रिया हुई। बहुत कुछ छोड़ सिर्फ रचनात्मक सुझाव को स्थान दे रहा हूँ। चुनाव आयोग और सर्वोच्च न्यायालय द्वारा इस दिशा में उठाये गये कदमों की सर्वत्र सराहना हुई, राजनीतिक दलों की मजबूरी का बखान हुआ, “नोटा” [इनमें से कोई नहीं] की बात हुई, सबसे रोचक और सटीक टिप्पणी मालवा के एक छोटे से गाँव से मिली। यह टिप्पणी एक प्रश्न था “क्या ये लजाऊ ठीकरे चौके से बाहर नहीं हो सकते ?” तीखा व्यंग था राजनीतिक मजबूरी पर।

मालवा में इस शब्द का प्रयोग अक्सर उनके लिए होता है जो परिवार कुल और देश के लिए कलंक समझे जाते हैं। गरीबी ऐसे ठीकरों [बर्तनों] को रसोई से बाहर नहीं होने देती। संसद और विधानसभा में सच में ऐसे व्यक्ति चुन कर आते हैं, जो अपने पूर्व कृत्य के कारण समाज में बैठने के लायक नहीं होते पर राजनीतिक कृपा के कारण इन पवित्र सदनों में शान से बैठते ही नही हैं अपने कुकृत्यों को वहीँ से अंजाम भी देते हैं।

अब प्रश्न क्या टिकट देने से पहले राजनीतिक दल को इनका इतिहास पता नहीं होता ? क्या नेशनल क्राईम ब्यूरो में इनके अपराध दर्ज नहीं होते ? क्या ख़ुफ़िया विभाग बड़े राजनीतिक दलों के बड़े कानों  में इनके कारनामे फुसफुसाता नहीं ? शपथ पत्र के बाद निर्वाचन अधिकारी ऐसे आवेदन स्वीकार क्यों करता है ? क्या निर्वाचन आयोग इस मामले में सीधा निर्देश जारी कर ऐसे लोगों के नामांकन पत्र स्वीकार ही न करें का आदेश नहीं दे सकता ? सब संभव है पर अनदेखी होती है। समाज के “लजाऊ ठीकरे” “माननीय” बन जाते हैं।

निर्वाचन आयोग की मज़बूरी है बी फार्म प्राप्त व्यक्ति को उस पार्टी का उम्मीदवार मानना, जिसका बी फार्म उस व्यक्ति ने साम दाम से हासिल कर लिया है। ऐसे कई उदाहरण हैं कि पार्टी ने इस फार्म का सौदा भी किया हैं। यही ग्रीन चैनल है जो समाज के त्याज्य व्यक्ति के लिए लाल कालीन बिछा देता है। पार्टी को सब मालूम होता है बी फार्म देने के पहले। माननीय निर्वाचन आयोग और उसके मातहतों के पास नामांकन पत्र की जाँच का पर्याप्त समय होता है। एक किल्क में नेशनल क्राईम ब्यूरो से लेकर देश के किसी भी पुलिस थाने का रिकार्ड उपलब्ध हो जाता है। फिर चूक गए और कोई धनबल, बाहुबल से माननीय हो भी गया तो प्रमाण पत्र जारी करने से पहले विचार किया जा सकता है। यहाँ से निकल गये तो माननीय न्यायालय में आये ऐसे मुकदमों को फौरन सुनने से कौन रोकता है ? सब हो सकता है, पर करे कौन ?

सिर्फ आप कर सकते हैं, क्योंकि आप मतदाता हैं और मतदान के पश्चात 5 साल आपको ही ऐसे “माननीय” को झेलना है। टिकट की सिफारिश के लिए लोग हुजूम बनाकर पार्टी के दफ्तरों में ले जाते हैं। ऐसे ही हुजूम अपराधी और नाकारा लोगों के विरुद्ध निकलना चाहिये। यदि इतनी हिम्मत  नहीं है, तो नोटा कीजिये और वह भी नहीं कर  सकते तो भुगतिए।
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श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।
संपर्क  9425022703        
rakeshdubeyrsa@gmail.com
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