अध्यापकों को मुख्यमंत्री ने मिठाई-मिठाई बोलकर करेला थमा दिया | Kula Khat @ Adhyapak

Bhopal Samachar
रमेश पाटिल। मुख्यमंत्री ने सहानुभूति बटोरने के लिए लीलावती अस्पताल मुंबई से अध्यापकों के लिए राज्य के अन्य कर्मचारियों की तरह सातवां वेतनमान देने की घोषणा की थी। मुख्यमंत्री ने 21 जनवरी 2018 को अध्यापकों का शिक्षा विभाग में संविलियन एवं एक ही पदनाम होगा शिक्षक संवर्ग की घोषणा अध्यापकों की उपस्थिति में अपने आवास पर की थी तथा इसकी पुनरावृत्ति 14 मई को की थी। भूतकाल बताता है कि मुख्यमंत्री घोषणा तो बहुत कर देते हैं लेकिन उसका क्रियान्वन करने में हमेशा चूक जाते हैं। आज अगर अध्यापकों में आक्रोश है तो उसके लिए पूरी तरह मुख्यमंत्री जिम्मेदार है क्योंकि उन्होंने अध्यापकों में शोषण से मुक्ति की उम्मीद तो जगाई थी लेकिन उस पर खरा नहीं उतर पाए। दूसरी ओर मुख्यमंत्री हमेशा उन अध्यापक नेतृत्व से घिरे रहे जिनके प्रति अध्यापकों के मन में अविश्वास एवं आक्रोश का भाव लम्बे समय से बना हुआ है। ये वही अध्यापक नेता है जिन्हें अध्यापक हितों की थोड़ी सी भी चिंता नहीं है। ये आकंठ अपने स्वार्थ सिद्धि में डूबे हुए हैं। 

आज पूरे मध्यप्रदेश का अध्यापक जिसने मजबूरी में भयग्रस्त होकर, दबाव या लालच में आकर नियमित कैडर का चयन किया हो या जिसने साहस का परिचय देते हुए अध्यापक संवर्ग और विकल्प ना चुनने का असहमति पत्र दिया हो, बेहद आक्रोशित है। मध्यप्रदेश का अध्यापक आक्रोश की आग में जल रहा है। इसके दूरगामी परिणाम निकट भविष्य में दिखाई देंगे। अध्यापक महसूस कर रहा है कि मुख्यमंत्री ने मिठाई दूंगा, मिठाई दूंगा बोलकर अध्यापकों को करेला थमा दिया है। जिसकी कड़वाहट अध्यापकों के जेहन में गहरी उतर गई है।

समझने का प्रयास करते हैं की मध्यप्रदेश का अध्यापक आक्रोशित क्यों है-
1) शिक्षा विभाग में संविलियन और समान पदनाम के स्थान पर मध्यप्रदेश राज्य स्कूल शिक्षा सेवा में नियुक्ति नए पदनाम के साथ दी जा रही है। मध्यप्रदेश राज्य स्कूल शिक्षा सेवा, शिक्षा विभाग के अधीन होगा।
2) नवीन कैडर में सेवाशर्तों का खुलासा ना होना।
3) नवीन कैडर में मूलवेतन निर्धारण का स्पष्ट ना होना।
4) स्वघोषणा पत्र अध्यापको से भरवाया जाना जिसमें बगैर सेवाशर्तें बताएं अध्यापकों से यह लिखकर लिया जाना कि मुझे राज्य स्कूल शिक्षा सेवा की संपूर्ण सेवा शर्तें मान्य होगी एवं अध्यापक संवर्ग के रूप में की गई सेवा के पुराने वेतन-भत्तों की मांग नहीं करूंगा। 
5) अध्यापक संवर्ग में रहते हुए भी विकल्प के प्रारूप के माध्यम से अध्यापक संवर्ग में रहने का विकल्प भरवाना जाना। 
6) राजपत्र, निर्देशिका, प्रेस विज्ञप्ति से यह तो बताना कि क्रमोन्नति-पदोन्नति मे अध्यापक नियुक्ति दिनांक से वरिष्ठता दी जाएगी लेकिन इस पर मौन साधना की सेवा अवधि की गणना कब से की जाएगी? 
7) यदि मान भी लिया जाए की सेवा अवधि की गणना अध्यापक नियुक्ति दिनांक से हो तो 1 अप्रैल 2007 के पूर्व नियुक्त,शिक्षाकर्मी, संविदा शाला शिक्षक की सेवा अवधि का क्या होगा यह स्पष्ट ना किया? जाना ज्ञात हो कि अध्यापक संवर्ग में नियुक्ति या संविलियन के समय प्रथम नियुक्ति दिनांक से सेवा की गणना निरंतरता में मान्य की गई थी।
8) राजपत्र के माध्यम से यह संकेत दिया जाना की राज्य स्कूल शिक्षा सेवा में वर्तमान अध्यापक संवर्ग की प्रथम नियुक्ति की जाएगी एवं उन्हें घोषित वेतनमान के न्यूनतम वेतन पर फिक्स किया जाएगा। 
9) राजपत्र के माध्यम से यह संकेत मिलना कि अध्यापकों को पुरानी पेंशन बहाली से बाहर करने का पुख्ता इंतजाम किया जा रहा है। 
10) उपादान (ग्रेच्युटी) की गणना कब से होगी यह स्पष्ट ना किया जाना।

11) सातवें वेतनमान का स्पष्ट उल्लेख ना होना। सातवा वेतनमान का निर्धारण छटवे वेतनमान के अनुसार होना लेकिन अभी तक छटवे वेतनमान का सही निर्धारित न होना। 
12) राज्य स्कूल शिक्षा सेवा में नियुक्ति की जटिल ऑनलाइन प्रक्रिया जिस की भाग दौड़ में कुछ अध्यापक साथियों का देहांत होना और तनावग्रस्त होना।
13) अधिकतर संकुल प्राचार्यो (सत्यापन अधिकारियों) द्वारा अध्यापकों पर स्वघोषणा पत्र और विकल्प का प्रारूप भरने के लिए दबाव डालना।
14) अपने सेवाकाल मे अध्यापको को बार-बार सत्यापन प्रक्रिया से गुजरने के लिए बाध्य किया जाना।
15) शिक्षाकर्मी, संविदा शाला शिक्षक आंदोलनों के समय वर्तमान सत्ताधारी दल #भाजपा के नेताओं द्वारा आंदोलनों के मंच पर आकर कहना और लिखित मे देना कि सत्ता में आते ही हम एक माह के अंदर शिक्षा विभाग में समान सेवाशर्तों और पदनाम के साथ संविलियन कर देंगे लेकिन 15 वर्षों के शासन के बावजूद भी उस वादे को पूरा ना कर शोषण के नए नए तरीके ईजाद करना।
16) कुछ स्वार्थी अध्यापक नेतृत्व जो शासन के समक्ष अध्यापकों का पक्ष न रखते हुए स्वयं शासन के प्रवक्ता बन गए और निरंतर अध्यापकों को भ्रमित करते रहे।
यह तो तय है कि किसी भी संवर्ग या वर्ग का आक्रोश हमेशा उथल-पुथल मचाता है।आने समय का इंतजार करते है कि ऊँट किस करवट बैठता है।
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