भोपाल। प्रमोशन में आरक्षण के खिलाफ संगठित हुए सामान्य एवं पिछड़ावर्ग कर्मचारी अधिकारियों के संगठन को सपाक्स नाम दिया गया। यह विशुद्ध रूप से कर्मचारियों का संगठन था जो अजाक्स के खिलाफ तैयार किया गया था। इसका उद्देश्य मात्र सुप्रीम कोर्ट में शिवराज सिंह सरकार की याचिका का सामना करना था। ज्यादा आगे बढ़ें तो अनारक्षित वर्ग के कर्मचारियों के हितों का संरक्षण करना परंतु पता नहीं कब सपाक्स की मजबूत दीवारों में सेंधमारी हुई और वो सबकुछ होता चला गया जिसकी उम्मीद तक नहीं थी। बीते रोज ऐलान कर दिया गया कि सपाक्स एक राजनीतिक संगठन है और यह 230 सीटों पर चुनाव लड़ेगा। सीएम शिवराज सिंह, कर्मचारी संगठनों में फूट डालने में माहिर हैं। पिछले कुछ उपचुनाव और नगरीय निकाय चुनावों में सपाक्स के कारण नुकसान हुआ है। सवाल यह है कि कहीं यह सपाक्स के भीतर शिवराज सिंह का सर्जिकल स्ट्राइक तो नहीं।
मायावती की तरह आया हीरालाल त्रिवेदी का बयान
रविवार को आयोजित हुए प्रांतीय अधिवेशन में सपाक्स के सामान्य, ओबीसी व अल्पसंख्यक वर्ग के सामाजिक विंग के संरक्षक हीरालाल त्रिवेदी ने कहा है कि हमारा संगठन आज से राजनीतिक संगठन हो गया है और चुनाव में हम हर ऐसे संगठन से तालमेल करेंगे जो हमारी विचारधारा और उद्देश्यों से सहमत होंगे। उन्होंने कहा कि जहां आरक्षित समाज के सांसद, विधायक और जनप्रतिनिधि अपने समाज के हितों के लिए किसी भी हद तक जाते है, वहीं हमारे समाज के जनप्रतिनिधि दब्बू और डरपोक बने हुए है। ऐसे जनप्रतिनिधियों को जाग्रत करने के उन्हें सबक सिखाने की भी जरूरत है। इसके लिए सड़क पर उतरकर आंदोलन करना होगा। त्रिवेदी ने यह भी कहा कि वर्ष 2030 तक आरक्षण मुक्त भारत बनेगा। इसकी नींव हमने आज रख दी है। यह बयान बिल्कुल वैसा ही है जैसा कि बसपा की नेता मायावती देतीं हैं। जो सुप्रीम कोर्ट में याचिका को फैसले तक नहीं ला पाए और अब आरक्षण मुक्त भारत की बात कर रहे हैं।
संगठित होते सवर्ण समाज को तोड़ने की साजिश
सवाल यह है कि क्या यह तेजी से संगठित हाते सवर्ण समाज को तोड़ने की साजिश है। यदि 2013 की चुनावी तैयारियों से अब तक के घटनाक्रम को याद किया जाए तो शिवराज सिंह सरकार ने ऐसे अनेक कारनामे किए हैं। जहां जहां संगठन मजबूत हुआ, गुटबाजी डाल दी गई। एक कर्मचारी नेता को तो विधानसभा का टिकट देकर पूरा संगठन ही तबाह कर दिया था। कोई बड़ी बात नहीं कि सपाक्स में शिवराज सिंह या भाजपा के प्रायोजित लोग घुस आए हों और उन्होंने ऐसा माहौल बना दिया।
तो क्या सवर्ण समाज बिखर जाएगा
कुछ कर्मचारियों के एकजुट हो जाने को यदि कुछ लोग अपनी व्यक्तिगत सफलता मान रहे हैं तो यह उनकी गलतफहमी ही है जो इसी साल दूर भी हो जाएगी। उन्हे समझ आ जाएगा कि कर्मचारी प्रमोशन में आरक्षण के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट की लड़ाई जीतने के लिए एकजुट हुए थे। वो 10 दिन में फिर से नया संगठन भी बना सकते हैं। रही बात सपाक्स समाज की तो यह कुछ लोगों की कोरी कल्पना मात्र है। कुछ कर्मचारियों के बच्चों को समाज नहीं कहते। दूसरे समाजों की तरह सवर्ण समाज कभी किसी एक संगठन के नीचे आया ही नहीं और आएगा भी नहीं। वो केवल इस मुद्दे पर एकमत है कि जाति के आधार पर आरक्षण खत्म होना चाहिए और यह आर्थिक आधार पर दिया जाना चाहिए।
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