राकेश दुबे@प्रतिदिन। त्त्यौहार देश में सांझी विरासत है, तो अपने-अपने हिस्से की अमनपसंदगी त्त्यौहार पर दिखना चाहिए। अफ़सोस ऐसा नहीं हो रहा है। रामनवमी का त्यौहार इस बार कई राज्यों में जिस तरह का सांप्रदायिक तनाव अपने साथ ले आया, उसे स्वाभाविक नहीं माना जा सकता। पहली नजर में इसका सीधा रिश्ता राजनीति से लगता है। जैसे पश्चिम बंगाल में वाम दलों का कब्जा तोड़ने के बाद तृणमूल कांग्रेस को अपनी बढ़त बनाए रखनी है। उसका मुकाबला कांग्रेस से तो है ही, पर इस बार भाजपा भी अपनी तरफ से पूरा जोर लगाए हुए है। पारंपरिक तौर पर पश्चिम बंगाल में देवी दुर्गा और श्रीकृष्ण के पूजन का ही चलन ज्यादा रहा है, मगर इस बार राम के नाम पर चली राजनीति का प्रभाव कहिए या कुछ और, बंगाल के मुर्शिदाबाद और बर्धमान जिलों में रामनवमी का त्योहार इस बार पूजा-पाठ के बजाय मार-पीट, दंगे -फसाद बदल गया।
अब बिहार की बात करें तो, बिहार में इस उपद्रव से सबसे ज्यादा प्रभावित औरंगाबाद रहा, लेकिन छिटपुट हिंसक घटनाएं राज्य के विभिन्न हिस्सों में हुईं। एक हफ्ता पहले ही वहां भागलपुर में दंगा हुआ था, जिसे भड़काने का आरोप केंद्रीय मंत्री अश्विनी चौबे के बेटे अर्जित शाश्वत पर है। बिहार में इसका प्रकार अलग है। भाजपा यहां पिछले विधानसभा चुनावों में अपमानजनक पराजय झेलने के बावजूद सत्ता में भागीदार है। उस पराजय का दाग उसे अगले आम चुनाव में धोना है, पर लगता नहीं कि पार्टी में इसके सबसे प्रभावी तरीके को लेकर कोई आम राय बन पाई है। एक धड़ा कथित जंगल राज के मुकाबले विकास और सुशासन के फॉर्म्युले को असरदार मानता है तो दूसरा आक्रामक हिंदुत्व को हर मर्ज का इलाज बताता है। मौजूदा घटनाओं के पीछे कुछ जानकार प्रदेश बीजेपी में इन दोनों धड़ों के बीच चल रही वर्चस्व की लड़ाई की भूमिका देखते हैं।
अब राजस्थान, रामनवमी को शक्ति प्रदर्शन का मौका बनाने की कोशिश राजस्थान में भी हुई, जहां इस पवित्र अवसर का उपयोग विश्व हिंदू परिषद की स्थानीय इकाई ने घृणित हत्या के आरोप में जेल में बंद एक शख्स की देवी-देवताओं जैसी झांकी निकालने में किया। इन तमाम मामलों में प्राथमिक जिम्मेदारी निश्चित रूप से राज्य सरकारों की ही है, मगर केंद्र में सत्तारूढ़ पार्टी और उसके नजदीकी संगठनों का संबंध इन घटनाओं से जुड़ा देखा जा रहा है, लिहाजा केंद्र सरकार भी इनसे पल्ला नहीं झाड़ सकती। राज्य हो या केंद्र बड़े राजनीतिक दलों की भूमिका और हिस्सेदारी देश में अमन और शांति स्थापना में अहम है राज्य सरकारों की भूमिका भी कमतर नहीं है | सारे राजनीतिक दल और शासन कर रही सरकारें अमन का माहौल सुनिश्चित करने में अपने-अपने हिस्से के अमन का दायित्व पूरा करें।
श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।