कोलारस में कुछ भी हो, जीत यशोधरा राजे की ही होगी | MP NEWS

भोपाल। भाजपा की संस्थापक राजमाता विजयाराजे सिंधिया की बेटी एवं स्व. माधवराव सिंधिया की लाड़ली बहन यशोधरा राजे राजनीति में तो 1998 में ही आ गईं थीं लेकिन करीब 20 सालों में उन्होंने राजनीति कभी नहीं की। उनकी पहचान एक एक तुनकमिजाज हार्डवर्कर के रूप में ही होती रही है, जो अफवाहों या झूठी सूचनाओं का परीक्षण नहीं कर पातीं और उसमें उलझ जातीं हैं लेकिन पहली बार यशोधरा राजे सिंधिया का नया अवतार सामने आ रहा है। कहा जा रहा है कि उन्होंने एक ऐसी चाल चली है जिसमें कई शिकार होंगे और नतीजा कुछ भी हो, जीत यशोधरा राजे की ही होगी। 

किस तरह की चाल है यह
स्नूकर खेल तो याद ही होगा आपको। आपके पास एक छड़ी होती है और आपको स्वतंत्रता दी जाती है कि आप इससे सफेद रंग बॉल को हिट करें। आपकी बॉल किसी दूसरी रंगीन बॉल को जाकर हिट करती है और टेबल पर मौजूद 6 में से किसी एक गोल में आपको टारगेट करना होता है। अच्छा खिलाड़ी वह माना जाता है जो एक हिट में कई बॉलों को अलग अलग गोल में टारगेट कर दे। यह चाल बिल्कुल ऐसी ही है। इस बार कुछ इस तरह से हिट किया गया है कि या तो वीरेन्द्र रघुवंशी की राजनीति खत्म हो जाएगी या फिर देवेन्द्र जैन की। इसके अलावा या तो शिवराज सिंह के दामन पर बड़ा दाग लगेगा या फिर परिवार में रुतबा बढ़ जाएगा। 

रघुवंशी की राजनीति का खात्मा क्यों
कोलारस में प्रत्याशी चयन की प्रक्रिया के दौरान सभी भाजपा नेता जिनमें यशोधरा राजे समर्थकों की संख्या ज्यादा है, ने रायशुमारी में स्वतंत्र मत दिया है कि भाजपा के कार्यकर्ता वीरेन्द्र रघुवंशी के साथ काम करने को तैयार नहीं है। उन्हे छोड़कर किसी को भी प्रत्याशी घोषित कर दें, जीत सुनिश्चित होगी। कम से कम भाजपा एकजुट होकर काम करेगी। इस रायशुमारी ने भाजपा की कोर कमेटी को तनाव में ला दिया है क्योंकि अब उनके सामने एक ही विकल्प रह गया है 'देवेन्द्र जैन'। चौंकाने वाली बात तो यह है कि सिंधिया खेमे से टिकट की दावेदारी करने वालों ने भी वीरेन्द्र के नाम पर आपत्ति जताई है लेकिन सिंधिया विरोधी माने जाने वाले देवेन्द्र जैन के नाम पर वो चुप हैं। इस तरह वीरेन्द्र रघुवंशी को भाजपा में अछूत घोषित करवा दिया गया है। बता दें कि वीरेन्द्र ज्योतिरादित्य सिंधिया के नजदीकी नेता थे। सिंधिया से बगावत करके भाजपा में आए थे। 

फिर तो देवेन्द्र जैन का टिकट पक्का
हां हो सकता है, अब तक की स्थिति तो यही है। सुना है देवेन्द्र जैन चुपके से दिल्ली भी हो आए हैं। यशोधरा राजे सिंधिया के साथ उनके पुराने रिश्ते फिर से जीवित हो सकते हैं। टिकट मिलने की सर्वाधिक संभावनाए हैं परंतु यहां भी बड़ा खेल है। यदि देवेन्द्र जैन चुनाव जीत गए तो यशोधरा राजे के खाते से बनने वाले विधायक होंगे और यदि हार गए तो राजनीति खत्म। बता दें कि एक जमाने में देवेन्द्र जैन सिंधिया विरोध के कारण भाजपा के सबसे ताकतवर नेता बन गए थे लेकिन अब हालात कुछ और हैं। वापस सत्ता में आने के लिए वो छटपटा रहे हैं। 

सीएम शिवराज सिंह को क्या नुक्सान होगा
देवेन्द्र जैन को टिकट दिलाने के लिए यशोधरा राजे फ्रंटफुट पर नहीं हैं। उन्होंने शतरंज ऐसी बिछा दी कि टिकट देवेन्द्र की झोली में जाकर गिरे। कोलारस सीट ज्योतिरादित्य सिंधिया के प्रभाव वाली सीट मानी जाती है। यहां टक्कर कांटे की होगी। देवेन्द्र जैन के साथ पूरी भाजपा तो एकजुट हो जाएगी परंतु आम मतदाताओं के मन में क्या है, क्या वो पुराने मामलों को याद रखकर वोट करेंगे, ये बड़ा सवाल है। यदि यहां से देवेन्द्र जैन हार गए तो दाग सीधे सीएम शिवराज सिंह के दामन पर लगेगा। ज्योतिरादित्य सिंधिया का कांग्रेस में कद बढ़ेगा। याद दिला दें कि ग्वालियर शिवपुरी की राजनीति में जब 'महल' शब्द का उपयोग हुआ करता था। तब महल समर्थकों की एक ही मांग थी कि कम से कम एक बार मप्र में सीएम की कुर्सी पर महल का व्यक्ति पहुंचे। ज्योतिरादित्य सिंधिया को इस बार कांग्रेस के चुनावी चेहरा माना जा रहा है। 

परिवार में रुतबा क्यों बढ़ेगा
ज्योतिरादित्य सिंधिया का अपनी बुआओं से विवाद दुनिया जानती है परंतु पिछले दिनों यह काफी कम हुआ है। परिवार में मधुर संबंध बनने लगे हैं। यशोधरा ने ज्योतिरादित्य की तुलना में काफी पहले राजनीति शुरू कर दी थी परंतु वो कभी सीएम सीट के दावेदारों की सूची में शुमार नहीं हो पाईं। यदि देवेन्द्र जैन जीत जाते हैं तो यह ज्योतिरादित्य सिंधिया के लिए नुक्सानदायक होगा। 'महल' में फिर से एकजुट हो रहा है। ऐसे में यशोधरा का परिवार में कद बढ़ जाएगा और ज्योतिरादित्य सिंधिया के व्यक्तिगत संसाधन भी यशोधरा राजे के लिए काम करने लगेंगे। वसुंधरा राजे का साथ पहले से ही है। दिल्ली में बात जम गई तो यशोधरा राजे मध्यप्रदेश में भाजपा का बड़ा चेहरा बन सकतीं हैं। 

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