युवा को दलित-गैर दलित में न बांटे, देश टूटेगा | EDITORIAL

राकेश दुबे@प्रतिदिन। सरकार ने गुजरात के वडगाम से निर्वाचित विधायक और दलित नेता जिग्नेश मेवाणी को नई दिल्ली में युवा हुंकार रैली को इजाजत नहीं दी। इसके बावजूद उन्होंने जन्तर मन्तर पर रैली की। यह अलग बात है कि राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली मे इस रैली को कुछ खास प्रतिक्रिया नहीं मिली। लेकिन ऐसी रैलियां 2019 के लिए खतरे की घंटी है। चुनाव से ज्यादा इसका अर्थ समाज के ताने-बाने के टूटने से है। कहने को इस रैली का उद्देश्य दलितों को सामाजिक न्याय दिलाने के अलावा भीम आर्मी के संस्थापक चंद्रशेखर को रिहा करने के लिये दबाव बनाना था। दलित नेता चन्द्र शेखर उत्तर प्रदेश के सहारनपुर जिले मे पिछले साल ठाकुर-दलित टकराव से जुड़े मामले मे जेल में हैं। मेवाणी की रैली भले ही उम्मीदों पर खरी नहीं उतरी हो लेकिन वह इसको दर्शाती है कि युवा दलित समाज में काफी मंथन चल रहा है। इस मंथन का राजनीतिक अर्थ भले ही कुछ हो सामाजिक स्तर पर निकलता संदेश ठीक नहीं है।

जनवरी 2016 मे दलित छात्र रोहित वेमुला की आत्महत्या के बाद, जुलाई मे गुजरात के ऊना मे मरी गाय की खाल उधेड़ने के लिये दलितों की बर्बर पिटाई से लेकर भीमा-कोरेगांव तक, सारी घटनाओं में एक कड़ी नजर आती है। सरकार चाहे जो भी हो, उसके खिलाफ एक अंतर्प्रवाह चल रहा है, जिसके बारे में राजनीतिक दल अनभिज्ञ हैं। मेवाणी भी इसी मंथन की उपज हैं, जहां युवा दलित अपनी अकांक्षा पूरी करने के लिए मौजूदा तंत्र से लोहा लेने के लिये तैयार है।दुर्भाग्य है युवा को दलित और गैर दलित के खांचों में बांटा जा रहा है।

गुजरात विधानसभा चुनाव के नतीजों पर नजर डालें तो दलित राजनीति के बदलते स्वरूप का एक दिलचस्प तथ्य उभर कर आता है। कुल 13 सीटें अनुसूचित जातियों के लिये आरक्षित हैं। इन सीटों पर केवल तीन प्रत्याशी ऐसे हैं जिनकी उम्र 50 साल से अधिक है, बाकी पर युवा उम्मीदवार ही जीते हैं। उत्तर प्रदेश में जब दलितों और ठाकुरों के बीच सहारनपुर मे विवाद चल रहा था, तब सूबे की पूर्व मुख्यमंत्री और बसपा नेता मायावती को खबर तक नहीं थी। वहां पर दलितों की कमान एक अनजान संगठन– भीम आर्मी ने संभाली थी जिसमें मुख्यतः युवा लोग ही सदस्य हैं। ठीक उसी तरह पिछले हफ्ते मुंबई मे हुए दलित विरोध के बाद पुलिस द्वारा गिरफ्तार लोगों मे कुछ युवा ऐसे भी हैं जो एमबीए, ईंजिनियरिंग और आईटी छात्र हैं, जिनका राजनीति से कोई लेना-देना नहीं है।

बदलते परिवेश मे पहले की तरह अब युवा चुप बैठने को तैयार नहीं है, उनके बीच दलित और गैर दलित होने का भाव बोया जा रहा है। वैसे तो युवाओं के मुद्दों के सभी को खुल कर समर्थन  देना चाहिए जो युवाओ और देश हित में हो। सोशल मीडिया ने उन्हें आपस मे सामंजस्य बैठाने का एक नया मंच दिया है। अगले लोकसभा चुनाव मे करीब 40 प्रतिशत वोटर की उम्र 35 साल के अंदर होगी। युवाओं को दलित और गैर दलित खांचों में बांटना सिर्फ राजनीति से ज्यादा कुछ नहीं है। युवा शक्ति को राष्ट्र हित एक जुट होना होगा। सरकार को भी अपने  सोच की दिशा को और विवेक सम्मत करना होगा तो प्रतिपक्ष को एक साफ़ नजरिये की जरूरत है।
श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।
संपर्क  9425022703        
rakeshdubeyrsa@gmail.com
पूर्व में प्रकाशित लेख पढ़ने के लिए यहां क्लिक कीजिए
आप हमें ट्विटर और फ़ेसबुक पर फ़ॉलो भी कर सकते हैं।

#buttons=(Accept !) #days=(20)

Our website uses cookies to enhance your experience. Check Now
Accept !