
एमपीसीसी की ओर से जारी हुए प्रेस रिलीज में मिश्रा ने लिखा है कि महामहिम राष्ट्रपति महोदय की सभा में जो हंगामा हुआ वो प्रायोजित था। सीएम शिवराज सिंह को इस तरह के विरोध प्रदर्शन को रोकना चाहिए था परंतु उन्होंने प्रदर्शनकारियों का सहयोग किया और अपना भाषण बीच में ही रोककर उनका ज्ञापन अपने हाथ से राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद को सौंपा। कांग्रेस का आरोप है कि शिवराज सिंह ने यह सबकुछ केवल संत रामपाल के समर्थकों के वोट हासिल करने के लिए यिका।
कांग्रेस ने इस घटना को प्रत्यक्ष रूप से संविधान और कानून की अवमानना बताया है। कांग्रेस ने कहा कि गंभीर आरोपों में गिरफ्तार किए गए गुरमीत राम रहीम, आसाराम, साक्षी महाराज, जगतगुरू रामानुजाचार्य कौशलेन्द्र प्रपन्नाचारी फलहारी बाबा के साथ हत्या और राष्ट्रद्रोह के आरोप में बंद संत रामपाल से भारतीय जनता पार्टी ने समय-समय पर वोट के लिए सार्वजनिक तौर पर राजनैतिक समझौते भी किये हैं। इन सभी कथित संतो के साथ संघ प्रमुख श्री मोहन भागवत के अलावा, भाजपा के वरिष्ठ नेता एवं प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी, श्री लालकृष्ण आडवाणी, गृहमंत्री श्री राजनाथसिंह, राजस्थान की मुख्यमंत्री सुश्री वसुंधरा राजे, उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री श्री योगी आदित्य नाथ, मप्र के मुख्यमंत्री श्री शिवराजसिंह चौहान सहित कई केंद्रीय मंत्रियों के उनसे आशीर्वाद लेते/ चर्चा करते हुए वीडियो और छायाचित्र सार्वजनिक होने के बाद उनकी निकटता सामने आई है।
श्री मिश्रा ने हत्या-राष्ट्रद्रोह के आरोप में बंद रामपाल को दिये गये सहयोग के बाद अब मुख्यमंत्री से यह भी पूछा है कि क्या वे देश में हुईं विभिन्न हत्याओं, बम विस्फोटों और राष्ट्रद्रोह के अन्य आरोपियों के रूप में दाऊद इब्राहिम, छोटा शकील और अबू सलेम को लेकर भी यही रूख अख्तियार करेंगे? ऐसी परिस्थितियों में एक ओर जहां वे मप्र में बलात्कारियों को फासी दिये जाने को लेकर विधेयक लाने की दुहाईयां दे रहे हैं, वहीं गंभीर आरोपियों के प्रति महामहिम राष्ट्रपति के समक्ष सदाशयता दिखा रहे हैं। क्या गंभीर किस्म के अपराधियों/ अपराधों को लेकर ऐसे आचरण संविधान और कानून की मंशाओं के प्रति दोहरे आचरण का प्रतीक नहीं हैं?