
कांग्रेस वैकल्पिक विकास के विचार की पैरवी कर रही है। कुछ सर्वेक्षण इस लड़ाई को भाजपा के पक्ष एकतरफा कह रहे हैं, लेकिन कुछ को चुनाव में कांटे की टक्कर भी दिखाई दे रही है| सट्टा बाज़ार जो पहले भाजपा के पक्ष में था,अब कांग्रेस की तरफ इशारे कर रहा है। दोनों पक्ष एक दूसरे से तीखे सवाल भी कर रहे हैं।
वैसे गुजरात में भाजपा सरकार के खिलाफ पाटीदार, पिछड़े, दलित, किसान और व्यापारी सड़क पर उतरकर अपना असंतोष जाहिर कर चुके हैं, गुजरात के विकास मॉडल के साथ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की प्रतिष्ठा भी दांव पर लगी हुई है। केंद्र सरकार की जीएसटी और नोटबंदी जैसी नीतियों की यह परीक्षा भी है है। भाजपा ने यहाँ विकास का ही दिया नारा है, साथ ही सामाजिक समीकरण साधने में वह पीछे नहीं है। उसके पास बहुत पहले से हर जाति और वर्ग के संगठन हैं, जिनका इस्तेमाल वह अपने खिलाफ संभावित गोलबंदी में कर रही है। कांग्रेस ने भी पिछली गलतियों से सबक लेकर अपनी रणनीति बदली है। उसकी कोशिश भाजपा के ही अस्त्रों ही से उसे परास्त करने की है।
अब कांग्रेस सोशल मीडिया पर आक्रामक होने से लेकर सॉफ्ट हिंदुत्व पर उतर आई है। राहुल गांधी ने चुनाव प्रचार की शुरूआत मंदिरों में पूजा-अर्चना के साथ की और यह सिलसिला जारी है। दंगों को लेकर अब तक भाजपा को हमेशा कठघरे में खड़ी करने वाली कांग्रेस इस मुद्दे का जिक्र तक नहीं कर रही। उसका सबसे ज्यादा जोर मुसलमानों के साथ दलित, ओबीसी और पाटीदार के साथ डील करने पर है। पाटीदार नेता हार्दिक पटेल और दलित नेता जिग्नेश मेवानी का समर्थन मतदान के दिन तक यथावत रहे इस पर उसका पूरा जोर है। अल्पेश ठाकौर को पार्टी में शामिल करना और आदिवासी समुदाय से आने वाले जेडीयू के बागी नेता छोटूभाई वसवा के साथ कांग्रेस की डील से सट्टाबाज़ार के अनुमान उछले हैं। सट्टेबाज़ार के अनुमान और मतदान तक की मेहनत एक दूसरे के विपरीत भी होते हैं। ऐसा अनुभव भी पिछले कुछ चुनावों के हैं। इन दिनों चुनावी मशीनरी को बूथ तक दुरुस्त रखने में भी पक्ष प्रतिपक्ष जुटे हैं, ये मेहनत सट्टा बाज़ार के अनुमान को पलट सकती है।
श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।