
जस्टिस रविंद्र भट्ट व जस्टिस सुनील गौड़ की खंडपीठ के समक्ष अधिवक्ता विवेक तन्खा ने कहा कि न्यूज प्रकाशित होने का समय, उनकी भाषा, तारीख, हेडलाइन से साबित होता है कि वे पेड न्यूज थीं। मामले की जाच कर रही समिति ने मंत्री को रिपोर्ट समेत कारण बताओ नोटिस भेजा, लेकिन उन्होंने जवाब नहीं दिया। जिन दो पत्रकारों ने मंत्री के हक में बयान दिए, वे उनके दोस्त थे। वे समाचार प्रशासन द्वारा उनका पक्ष रखने के लिए अधिकृत नहीं थे, उन्होंने खुद यह बात कुबूल की है। उन्होंने कहा कि यह चुनाव आयोग का काम है कि वह प्रत्याशियों के चुनाव खर्च पर नजर रखे।
इससे पहले मंत्री के वकील ने कोर्ट में कहा था कि अखबारों में प्रकाशित खबरें पेड न्यूज नहीं थीं। समाचार पत्रों ने खुद माना है कि उन्होंने अपनी मर्जी से ये खबरें प्रकाशित की हैं। ऐसे में मंत्री के खिलाफ मामला नहीं बनता है। वर्ष 2013 में नरोत्तम मिश्रा को पहली बार कारण बताओ नोटिस भेजा गया। चार साल बाद चुनाव आयोग ने 26 अगस्त 2017 को उनके खिलाफ कार्रवाई की। कार्रवाई देर से की गई। मामले में शिकायतकर्ता को लाभ दिया गया है। चुनाव आयोग ने अपने आप ही मान लिया कि यह पेड न्यूज है। पहले शिकायतकर्ता को यह साबित करना होगा कि समाचार पत्रों में पेड न्यूज प्रकाशित हुई। पेड न्यूज के लिए पैसे कोई भी दे सकता है, चाहे राजनीतिक दल हो या फिर उम्मीदवार का समर्थक।
इससे पहले नरोत्तम मिश्रा की याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने निर्वाचन आयोग के फैसले पर रोक लगा दी थी। आयोग ने नरोत्तम मिश्रा को 2008 के विधानसभा चुनाव में पेड न्यूज के मामले में अयोग्य घोषित किया था, जिससे वह राष्ट्रपति चुनाव में वोट नहीं डाल पाए थे। सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग के फैसले पर रोक लगाने के साथ ही दिल्ली हाई कोर्ट को मामले की जल्द सुनवाई के निर्देश दिए थे।