
27 फरवरी 2002 को साबरमती एक्सप्रेस के एस-6 कोच को गोधरा स्टेशन पर आग के हवाले कर दिया गया था। इसके बाद पूरे गुजरात में दंगे भड़क गए थे। इस डिब्बे में ज्यादातर लोग अयोध्या से लौट रहे 'कार सेवक' थे। इसमें 59 लोगों की मौत गई थी। डिब्बे में कितने लोग थे, इसका पता नहीं चल पाया था।
गोधरा ट्रेन कांड में एसआईटी के स्पेशल कोर्ट ने 1 मार्च 2011 को 31 लोगों को दोषी ठहराया था, इनमें से 11 को मौत की सजा सुनाई थी। 20 लोगों को उम्रकैद दी गई। 63 लोगों को बरी कर दिया था। जिन लोगों को बरी किया गया था उनमें मुख्य आरोपी मौलाना उमरजी, गोधरा नगरपालिका के तत्कालीन प्रेसिडेंट मोहम्मद हुसैन कलोटा, मोहम्मद अंसारी और उत्तर प्रदेश के गंगापुर के नानूमियां चौधरी शामिल थे। पुलिस ने कुल 130 से ज्यादा लोगोंं को आरोपी बनाया गया था। एएसआईटी कोर्ट ने 94 के खिलाफ सुनवाई शुरू की थी।
हाईकोर्ट की बेंच ने सोमवार (9 अक्टूबर, 2017) को 11 दोषियों की फांसी की सजा को उम्रकैद में बदल दिया। अब इस मामले में किसी को भी फांसी की सजा नहीं होगी। इस बेंच में जस्टिस एएस दवे और जस्टिस जीआर उधवानी शामिल थे। उस वक्त मुख्यमंत्री रहे नरेंद्र मोदी ने मार्च 2002 में नानावटी कमीशन का गठन किया था। वहीं, उस वक्त के रेल मंत्री लालू प्रसाद यादव ने सितंबर 2004 में यूसी बनर्जी कमीशन को जांच का जिम्मा दिया था।