
दक्षिण भारत और उत्तर भारत में इस त्योहार को अलग-अलग दिन और तरीके से मनाया जाता है। दक्षिण भारत में दिवाली के 1 दिन पहले यानी नरक चतुर्दशी का विशेष महत्व है। इस दिन मनाया जाने वाला उत्सव दक्षिण भारत के दिवाली उत्सव का सबसे प्रमुख दिन होता है नरक चतुर्दशी पर सुबह तेल लगाकर चिचड़ी की पत्तियां पानी में डालकर स्नान करने से नरक से मुक्ति मिलती है. इस मौके पर 'दरिद्रता जा लक्ष्मी आ' कह घर की महिलाएं घर से गंदगी को घर से बाहर निकालती हैं.
इस दिन सुबह उठकर सबसे पहले नहा धोकर सूर्य भगवान को अर्घ्य दें और संभव हो तो तिल का तेल लगाने के बाद नहाएं. इस दिन शरीर पर चंदन का लेप लगाकर नहाने और भगवान कृष्ण की उपासना करने का भी विधान है. शाम के समय घर की दहलीज पर दीप जलाएं और यम देव की पूजा करें. नरक चौदस के दिन भगवान हनुमान की पूजा भी की जाती है. दीवाली के एक दिन पहले आने वाले इस त्योहार के दिन दीप दान किए जाते हैं. इस दिन घर के द्वार पर दीपक जलाए जाते हैं. इसलिए इसे छोटी दीवाली कहा जाता है.