कर्मचारी को जबरन अनिवार्य सेवानिवृत्ति नहीं दे सकती सरकार: हाईकोर्ट

श्रीनगर। जम्मू-कश्मीर उच्च न्यायालय ने एक कर्मचारी को दंडात्मक उपाय के रूप में समय से पहले रिटायर करने के सरकार के आदेश की कड़ी आलोचना की। कोर्ट ने सरकार के आदेश को रद्द कर दिया और अधिकारियों को निर्देश दिया कि वह एक माह के भीतर याचिकाकर्ता को बहाल करे और उसे सभी लाभ दे। न्यायमूर्ति आलोक अराधे की पीठ मुहम्मद बशीर राठर की याचिका पर सुनवाई कर रही थी। 

उन्हें 30 जून 2015 को तहसीलदार (उत्तर) श्रीनगर के इंचार्ज के पद से रिटायर कर दिया गया था। न्यायमूर्ति ने कहा था कि सरकार एक विभागीय जांच से बचने के लिए दंडात्मक उपाय के रूप में अपने अधिकारी के खिलाफ अनिवार्य सेवानिवृत्ति आदेश नहीं दे सकती है। कोर्ट ने पाया कि आधिकारिक के खिलाफ विभागीय नियमित जांच शुरू की गई थी और उन्हें निलंबित कर दिया गया था। हालांकि, निलंबन के उनके आदेश को रद्द कर दिया गया था और सरकार ने कोई कारण नहीं बताया कि उनके खिलाफ विभागीय जांच क्यों नहीं की गई थी।

अदालत ने कहा कि बशीर को कथित वित्तीय अनियमितताओं के आरोप में 2015 में सरकार ने समय से पहले रिटायर कर दिया था। यह कार्रवाई उनके निलंबन के आदेश को हटाए जाने के महज चार दिनों के बाद की गई थी। कोर्ट ने कहा कि यह एक दंडात्मक उपाय था, जिसकी कानून के तहत इजाजत नहीं है।

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