स्वागत योग्य फैसला पर इसमें कुछ और भी जरूरी

राकेश दुबे@प्रतिदिन। निश्चित ही इस फैसले की गिनती एक बड़े सुधर के रूप में की जाना चाहिए। सर्वोच्च अदालत ने 18 साल से कम उम्र की पत्नी से दैहिक संबंध बनाने के मामले में जो फैसला दिया है, उसकी भारतीय समाज में काफी समय से जरूरत महसूस हो रही थी। सर्वोच्च न्यायालय का हर फैसला कानून होता है। इस फैसले के बाद नाबालिग पत्नी चाहे तो दैहिक संबंध बनाने के खिलाफ अपने पति के विरुद्ध शिकायत दर्ज करा सकती है, इसको रेप माना जाएगा।  पत्नी यह शिकायत एक साल के भीतर कभी भी कराने को स्वतंत्र होगी। कोर्ट ने आईपीसी की धारा 375 के उस अपवाद को मानने से इनकार कर दिया, जिसके तहत 15 वर्ष से ज्यादा उम्र वाली बीवी से संबंध बनाने को रेप नहीं माना गया है। कोर्ट ने माना कि बलात्कार संबंधी कानूनों में अपवाद अन्य अधिनियमों के सिद्धांतों के प्रति विरोधाभासी है। यह बच्ची के अपनी देह पर संपूर्ण अधिकार व स्वनिर्णय के अधिकारों का उल्लंघन है।

हालांकि नाबालिग पत्नी के अभिभावक के रूप में पति को ही कानूनी अधिकार प्राप्त है। अब तक यह सब अस्पष्ट है, जिसे कानूनों में संशोधनों द्वारा सरकार को स्पष्ट करने की जरूरत है। विशेषज्ञों को लग रहा है कि यह फैसला बाल विवाह पर सीधा असर डालने वाला साबित होगा। कानूनन लड़की के लिए 18 और लड़के के लिए 21 साल की उम्र विवाह के लिए निर्धारित है। वहीं, परिवार कल्याण विभाग के सर्वेक्षण से उजागर होता है कि कानूनी पाबंदियों के बावजूद अभी भी 27 प्रतिशत नाबालिग बच्चियों के विवाह हो रहे हैं। हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने इस दलील को ठुकरा दिया, जिसमें कहा गया था कि इस फैसले से सामाजिक समस्याएं पैदा हो सकती हैं। वैसे इस दलील में कोई दम भी नहीं था।

अभी कुछ ही समय पहले केंद्र ने वैवाहिक बलात्कार पर दलील दी थी कि इससे विवाह संस्था को खतरा हो सकता है। कोर्ट के इस फैसले के बाद 18 साल तक की ब्याहता को इस बात का हक मिल गया कि वह अपने पति के खिलाफ जबरन दैहिक संबंध बनाने पर शिकायत दर्ज करा सके लेकिन अब भी यह विरोधाभास जस का तस है, जिसके अनुसार 18 साल से कम उम्र में लड़की की शादी करना गैर कानूनी है। नाबालिग पत्नियों को मिले इस अधिकार के बावजूद यह अधूरा ही कहा जाएगा। वैवाहिक संबंधों की जटिलताओं को लेकर हम अब भी बहुत संकीर्ण सोच रखते हैं। अपने साथ होने वाले किसी भी तरह के अन्याय के खिलाफ औरतों को कानून से ही उम्मीदें हैं। इसलिए कि अदालती आदेशों पर ही सरकारें स्त्री के पक्ष में कानून बनाने पर विवश होती हैं। 
श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।
संपर्क  9425022703        
rakeshdubeyrsa@gmail.com
पूर्व में प्रकाशित लेख पढ़ने के लिए यहां क्लिक कीजिए
आप हमें ट्विटर और फ़ेसबुक पर फ़ॉलो भी कर सकते हैं।

#buttons=(Accept !) #days=(20)

Our website uses cookies to enhance your experience. Check Now
Accept !