दतिया। पीताम्बरा पीठ मंदिर मां बगलामुखी देवी के मंदिर के चलते पूरे देश में विख्यात है लेकिन यहां अत्यंत प्राचीन शिव मंदिर है जिसके बारे में बहुत कम लोग जानते हैं। मां पीतांबरा के मंदिर से कोई पुकार कभी अनसुनी नहीं जाती। राजा हो या रंक, मां के नेत्र सभी पर एक समान कृपा बरसाते हैं। इस सिद्धपीठ की स्थापना 1935 में परम तेजस्वी स्वामी जी के द्वारा की गई। मां पीतांबरा का जन्म स्थान, नाम और कुल आज तक रहस्य बना हुआ है। लेकिन यहां का शिवमंदिर पहले से ही स्थापित था। बहुत कम लोग यह जानते हैं कि यह शिव मंदिर महाभारतकालीन है।
मान्यता है कि इस शिव मंदिर की स्थापना महाभारत काल में अश्वथामा ने करवाई थी। यह भी मान्यता है कि अश्वथामा आज भी अलसुबह भगवान शिव की पूजा करने आते है। इसलिए इस मंदिर पर स्थानीय लोगों की अटूट श्रध्दा है।
माना जाता है कि मां बगुलामुखी ही पीतांबरा देवी हैं इसलिए उन्हें पीली वस्तुएं चढ़ाई जाती हैं. लेकिन मां को प्रसन्न करना इतना आसान भी नहीं है। इसके लिए करना होता है विशेष अनुष्ठान, जिसमें भक्त को पीले कपड़े पहनने होते हैं, मां को पीली वस्तुएं चढ़ाई जाती हैं और फिर मांगी जाती है मुराद।
खंडेश्वर महादेव, धूमावती के दर्शनों का मिलता है सौभाग्य
कहते हैं विधि विधान से अगर अनुष्ठान कर लिया जाए तो मां जल्द ही पूरी कर देती हैं भक्तों की मनोकामना। मां पीतांबरा को राजसत्ता की देवी माना जाता है और इसी रुप में भक्त उनकी आराधना करते हैं। मंदिर में मां पीतांबरा के साथ ही खंडेश्वर महादेव और धूमावती के दर्शनों का भी सौभाग्य मिलता है। मंदिर के दायीं ओर विराजते हैं खंडेश्वर महादेव, जिनकी तांत्रिक रुप में पूजा होती है।