भोपाल। यूं तो केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार ने देश में वीआईपी कल्चर खत्म कर दिया है परंतु मप्र में वीआईपी गिरी जारी है। अजीब बात तो यह है कि धर्मिक आयोजन और धार्मिक यात्राओं के लिए भी वीआईपी सरकारी खजाने का पैसा लुटा रहे हैं। श्रावण के पवित्र मास में 168 वीआईपी ने उज्जैन में महाकाल के विशेष दर्शन किए। मामला भ्रष्टाचार का है या नहीं यह तो दूसरी बात है, पहले सवाल यह है कि इस तरह की धार्मिक यात्राओं से क्या संबंधित वीआईपी व्यक्तियों को पुण्यलाभ मिलेगा। भगवान के सामने वीआईपी गिरी कहां तक उचित है।
उज्जैन से खबर आ रही है कि प्रदेश के नौकरशाह और वीआईपी उज्जैन निरीक्षण के लिए आते हैं। इस दौरान वे सरकारी काम करें या न करे लेकिन महाकालेश्वर दर्शन करने जरूर जाते हैं। उनकी व्यवस्था पर विभिन्न विभागों सहित प्रोटोकॉल विभाग के 13 लाख रुपए से अधिक खर्च हो गए। इस तरह से पुण्य वीआईपी कमाते हैं, लेकिन खर्च सरकार को भुगतना पड़ता है।
सावन भादौ मास के 45 दिनों में रजिस्टर्ड प्रोटोकॉल में शासन की तरफ से 168 सरकारी मेहमान आए। इनके लिए सर्किट हॉउस में तीन से चार हजार स्र्पए किराए का एसी रूम, ढाई हजार स्र्पए वाहन खर्च के अलावा खाने की व्यवस्था शासन की ओर से की गई थी।
सबसे मजेदार बात तो यह है कि सभी वीआईपी किसी भी सरकारी काम से आए हो पर इन सभी ने महाकाल के दर्शन अभिषेक के पुण्य का लाभ लिया। कई तो ऐसे थे, जिनके लिए पुलिस बल का एस्कॉर्ट भी दिया गया। बाजार मूल्य पर एक वीआईपी पर एक दिन का औसत खर्च लगभग 8000 रुपए से अधिक आता है। इस तरह 168 वीआईपी पर कुल 13 लाख रु. से अधिक का खर्च हुआ।
तो मंदिर समिति को होती ढाई लाख की आय
महाकाल मंदिर में प्रोटोकॉल व्यवस्था के तहत आधिकारिक तौर पर यहां श्रावण मास में 968 वीआईपी दर्शन करने पहुंचे। विशेष दर्शन के लिए 251 रुपए निर्धारित हैं। यदि उनकी रसीद काटी जाती तो मंदिर समिति को करीब ढाई लाख रुपए की आय होती, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। इन वीआईपी ने मुफ्त में ही दर्शन किए और पुण्य लाभ लिया।