SP-DSP हटो-बचो में लगे रहते हैं, थानेदार द्रोपदी बन गया: कार्यशाला

भोपाल। पुलिस एवं मानव अधिकारों की कार्यशाला में मानवाधिकार आयोग अध्यक्ष डॉ वीएम कंवर ने पुलिस की कार्यशैली में सुधार की जरूरत बताई। कहा- हाथी से बड़ी तो पूंछ हो रही है। सवाल-जवाब सत्र में कमांडेंट अखिलेश झा ने जमीनी हकीकत का खुलासा कर दिया। वह बोले कि थानेदार की स्थिति द्रोपदी की तरह है। उसके पांच पति हैं दबाव झेलने पड़ते हैं। एसपी-डीएसपी में दम नहीं हटो-बचो के सिद्धांत में लगे रहते हैं।

कार्यशाला के उद्घाटन सत्र को संबोधित करते हुए आयोग अध्यक्ष डॉ कंवर ने कई घटनाओं के उदाहरण देते हुए पुलिस की कार्यप्रणाली में सुधार की जरूरत बताई। उन्होंने यह भी सवाल उठाया कि सात स्तर पर अधिकारी निगरानी करते हैं फिर भी व्यवस्था नहीं सुधरी। 80-90 फीसदी काम थाने करते हैं लेकिन वहां 37 फीसदी फोर्स है। बाकी 20 फीसदी काम के लिए 63 प्रतिशत स्टाफ। हाथी से बड़ी पूंछ हो रही है, हमें इसे सुधारना होगा। पुलिस के भी मानवाधिकार हैं कई बार उनकी रक्षा नहीं हो पाती। थाना स्तर पर ही शिकायतों पर अफसर ठीक से जांच कर लें तो न्याय मिल जाएगा। थाने की स्थिति भी सुधारें, पब्लिक की पीड़ा समझें। हमारा इंस्पेक्शन नहीं सुधरेगा तक थाने ठीक नहीं होंगे। नियम भी बदलने होंगे।

थानेदार की बेचारगी...
पहले सत्र में प्रो.अरविंद तिवारी के संबोधन के बाद जब सवाल-जवाब हुए तो कमांडेंट अखिलेश झा सहित कई अफसरों ने सवाल पूछे। लेकिन झा ने थाने की मैदानी हकीकत बयान कर दी। वह बोले कि हमारे यहां क्राइम के अनुपात में स्टाफ कम है, असली भार पुलिस पर पड़ता है। थाना और थानेदार की स्थिति द्रोपदी की तरह है। एसपी-डीएसपी में दम नहीं, हटो-बचो सिद्धांत में लगे रहते हैं। कोर्ट, राजनेता, अफसर और पुलिस प्रोसीक्यूटर के बीच थानेदार फंसा रहता है।

केवल पुलिस दोषी नहीं
कुछ तो कमियां रही होंगी तभी तो हम आजादी के 70 साल बाद भी इस मुद्दे पर बात कर रहे हैं। निचले स्तर पर संवेदनशीलता नहीं आई पाई। केवल पुलिस दोषी नहीं, कई कमियां हैं। पुलिस के कर्तव्य बदल रहे हैं, पर उनके काम के घंटे वीकली ऑफ हमें नहीं मालुम।- मनोहर ममतानी, सदस्य मप्र मानव अधिकार आयोग

निजता पर हो रहा हमला
डिजीटल टेक्नोलॉजी में मानवाधिकारों की आत्मा प्राइवेसी भंग हो रही है। ज्यादा जानकारी जुटाने पुलिस को और प्रयास करने होंगे। हमें 360डिग्री पर काम करना होगा। सच तक पहुंचने के लिए साइंटिफिक तरीकों पर जोर देना होगा। पुलिस कर्मियों का सही भोजन क्या हो इस पर भी ध्यान दें।
डॉ बी मारिया कुमार, विशेष पुलिस महानिदेशक

तलवार की धार पर...
तलवार की धार पर चलने जैसा है। पुलिस मानवाधिकार हनन रोकती भी है, इस दौरान हम किसी के मानवाधिकार हनन न करने लग जाएं। आत्मावलोकन भी जरूरी है। पुलिस के अधिकारों पर भी ध्यान देना होगा।
वीके सिंह डीजी होमगार्ड

राज्य की जिम्मेदारी
प्रजातांत्रिक व्यवस्था में राज्य की जिम्मेदारी है कि वह अपने नागरिकों के मानव अधिकारों की रक्षा करे और इस कार्य में पुलिस की महत्वपूर्ण भूमिका होती है।
आलोक पटेरिया विशेष पुलिस महानिदेशक

अपने मानवाधिकार की बात उठाई...
अध्यक्ष डॉ कंवर ने आयोग में स्टाफ की कमी गिनाते हुए अपने मानवाधिकार हनन की बात भी उठादी। वह बोले कि आयोग को 3 डीएसपी नहीं मिले, जिन इंस्पेक्टर के ट्रांसफर हुए हैं उन्हें हम अभी रिलीव नहीं करेंगे। उन्होंने सभागार में बैठी एडीजी अनुराधा शंकर का नाम लेकर निवेदन भी कर दिया कि अफसर जल्दी भेजें, अधिकारों का हनन न होने दें।

बाहर कर दें ऐसे अफसरों को
आयोग अध्यक्ष ने नए अधिकारियों की ट्रेनिंग पर सवाल उठाए। कहा- जो यह कहते हैं कि मुजरिम बिना मारपीट के नहीं बोलेगा ऐसे अफसरों को बाहर कर देना चाहिए। पूछताछ का तरीका साइंटिफिक की हो। उन्होंने बताया कि 90 फीसदी शिकायतें झूठी निकलती हैं।

छूट गए थानेदार के हत्यारे...
आयोग अध्यक्ष ने एक थानेदार की हत्या का मामला भी सुनाया। उसकी हत्या दूसरे थाना क्षेत्र में हुई, देखने वाले कई पुलिस अफसर भी थे। कोर्ट में अफसरों ने बयान बदल दिए, हत्यारे छूट गए। यह चिंता का विषय है। यह 'केस स्टडी' इससे सीखें और काम सुधारें। बालाघाट के आरक्षक का उदाहरण भी दिया जिसमें उसके मानवाधिकारों की रक्षा स्वयं विभाग ने नहीं की।

गृहमंत्री भूपेन्द्र सिंह कार्यशाला में नहीं पहुंच पाए उनके संदेश का वाचन किया गया। एडीजी प्रशिक्षण अशोक अवस्थी,एसएल थाउसेन और डीसी सागर ने कार्यद्यााला में मौजूद प्रतिभागियों की शंकाओं का समाधान किया। आयोग के सचिव केके खरे ने अतिथियों का स्वागत किया। स्वागत उद्बोधन आयोग की एडीजी सुषमा सिंह ने एवं आभार आयोग के रजिस्ट्रार(लॉ) जेपी राव ने व्यक्त किया।

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