किसान नहीं कैलाश के डर से शुरू हुआ है शिवराज सिंह का उपवास

उपदेश अवस्थी/भोपाल। किसानों को असामाजिक तत्व कहने वाली सरकार अचानक उपवास पर बैठ गई। लोग अपने अपने तरीके से इसकी समीक्षा कर रहे हैं। सीएम का कहना है कि वो हिंसा के खिलाफ उपवास पर हैं, लेकिन पहली बार हो रहा है कि ज्यादातर लोग सीएम की बात पर भरोसा नहीं कर रहे हैं। शिवराज सिंह के उपवास के कारण तलाशे जा रहे हैं। इनमें से एक पकड़ में आ गया है। कहा जा रहा है कि भोपाल में सीएम शिवराज सिंह चौहान का उपवास, किसानों के डर या प्रेम के कारण नहीं बल्कि कैलाश विजयवर्गीय के डर के कारण शुरू हुआ है। मंगलवार को पुलिस फायरिंग में 6 किसानों की मौत के बाद शिवराज सिंह के इमेज पर जहां बड़ा धब्बा लगा था वहीं शुक्रवार को कैलाश विजयवर्गीय इंदौर में एक 'नायक' की तरह उभरकर आए। दिल्ली में मोदी और अमित शाह सबकुछ देख रहे हैं। इससे पहले कि कैलाश का ग्राफ शिवराज से ज्यादा बड़ा हो पाता, शिवराज सिंह ने उपवास शुरू कर दिया। 

बेतुकी बयानबाजी करके आंदोलन को भड़काया
दरअसल, किसान आंदोलन के पहले ही दिन से शिवराज सिंह सरकार लगातार कई गलतियां करती गई। सबसे पहले तो उसने किसान आंदोलन को हल्के में लिया। फिर वित्तमंत्री जयंत मलैया और प्रदेश अध्यक्ष नंदकुमार सिंह चौहान ने भडकाऊ बयान दिए। इधर आरएसएस के नियंत्रण में काम करने वाले किसान संघ से पहले आंदोलन को समर्थन दिलवाया फिर बातचीत के लिए बुलाकर आंदोलन समाप्ति की घोषणा करवा दी। इस चाल ने किसान नेताओं को सबसे ज्यादा आक्रोशित किया। इधर सीएम शिवराज सिंह ने खुद आंदोलनकारी किसानों को असामाजिक तत्व कह डाला। 

गृहमंत्री ने आग में घी डाला, सीएम ने कांग्रेस को मौका दिया
जब गोलीकांड में 6 किसान मर गए और जिस दिन उनकी मौत हुई, तब भी शिवराज सिंह और उनके मंत्री दंभ से भरे नजर आए। किसानों की मौत पर सबसे पहला असंवेदनशील बयान गृहमंत्री भूपेन्द्र सिंह का आया, जिन्होंने मृतकों को किसान मानने से ही इंकार कर दिया। इतना ही नहीं उन्होंने दावा किया कि मौत पुलिस की गोली से नहीं हुई है। उनके बाद शिवराज सिंह ने भी ऐसा ही बयान दिया और आंदोलन को हिंसक बनाने का सारा क्रेडिट कांग्रेस को दे दिया। इन दोनों बयानों से साफ था कि 6 मौतों के बाद भी शिवराज सरकार आंदोलन को किसान आंदोलन मानने के लिए तैयार नहीं थी। इतना ही नहीं इस आंदोलन का सारा क्रेडिट बार बार कांग्रेस को दिया जा रहा था। यही कारण रहा कि राहुल गांधी ने मौके का लाभ उठाया और मध्यप्रदेश के 6 जिलों में चल रहा आंदोलन देशव्यापी मुद्दा बन गया। 

मजबूरी में बाबूलाल गौर को बयान देना पड़ा
जब सरकार किसान आंदोलन का पूरा क्रेडिट बार बार कांग्रेस को देने लगी तो मजबूरी में पूर्व मुख्यमंत्री बाबूलाल गौर को बयान देना पड़ा कि इस आंदोलन से कांग्रेस को कोई लेनादेना नहीं है। नंदकुमार सिंह चौहान तब भी इशारा नहीं समझ पाए। बयान दे बैठे कि श्री गौर से इस बारे में बात करेंगे। दरअसल, बाबूलाल गौर जैसा मंझा हुआ खिलाड़ी नहीं चाहता कि कांग्रेस को बेवजह नया जीवन दिया जाए। नई सरकार के अति उत्साही नेता इस बात को समझ ही नहीं पाए। यदि वो बाबूलाल गौर जैसे नेताओं को इतना अवसर देते कि वो सीएम हाउस में घुसकर अपनी बात रखपाते तो शायद उन्हे मीडिया में बयान ना देना पड़ता। 

कैलाश विजयवर्गीय का 'आॅपरेशन शांतिवार्ता' सफल हुआ
ऐसे हालातों में जब मालवा में आंदोलन हर रोज हिंसक होता जा रहा था, कैलाश विजयवर्गीय इंदौर पहुंचे और किसानों के बीच जाकर बातचीत शुरू की। यह वह समय था जब सीएम समेत सरकार के तमाम मंत्री आंदोलनकारी किसानों से बात करने को तैयार नहीं थे। किसानों को असामाजिक तत्व कहा जा रहा था। उनसे सख्ती से निपटने के आदेश दिए जा रहे थे। कैलाश विजयर्गीय का यह प्रयास सफल हुआ। किसान कुछ शांत हुए। बातचीत के लिए सामने आए। इधर कैलाश विजयवर्गीय ने अपना कार्यक्रम जारी कर दिया कि वो हर रोज इंदौर स्थित रेसीडेंस कोठी परिसर में किसानों से भेंट करेंगे।

इसीलिए हड़बड़ी मेें घोषित किया गया उपवास
जैसे ही सीएम शिवराज सिंह को इसकी भनक लगी वो समझ गए कि इस बार दिल्ली में उनके नंबर कम और कैलाश विजयर्गीय के नंबर बहुुत ज्यादा बढ़ने वाले हैं। उन्हे सबकुछ हाथ से जाता हुआ दिखाई दिया। आनन फानन उन्होंने उपवास का ऐलान कर दिया। यदि नहीं करते तो कैलाश विजयवर्गीय का 'आॅपरेशन शांतिवार्ता' अखबारों की सुर्खियां बन जाता। 

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