कमलनाथ को खुद से ज्यादा शिवराज सिंह पर भरोसा | MP POLITICS

भोपाल। मप्र में कांग्रेस की कमान बदलने की तैयारियां पूरी हो चुकीं हैं। रेस में 2 ही नाम हैं। कमलनाथ और ज्योतिरादित्य सिंधिया। इसमें सिंधिया अपने पुरान प्रदर्शन और नई उम्र के आधार पर मजबूत दावेदार हैं तो कमलनाथ के दावे में कुछ और ही तथ्य शामिल हैं। कमलनाथ का दावा है कि इस बार मप्र में कांग्रेस ही जीतेगी। उन्हे खुद की लोकप्रियता से ज्यादा शिवराज सिंह के विरोध पर भरोसा है। उनका मानना है कि शिवराज सिंह के भारी विरोध के कारण जनता भाजपा के खिलाफ वोट करेगी और कांग्रेस के अलावा मप्र में जनता के पास कोई विकल्प ही नहीं है। 

कमलनाथ के समर्थन में कई तर्क दिए जा रहे हैं परंतु ज्यादातर तर्क कुछ इस तरह के हैं। इनमें से कुछ ऐसे भी हैं जो कमलनाथ को कमजोर या मौकापरस्त होने का इशारा करते हैं। कमलनाथ के समर्थन में जो तर्क दिए जा रहे हैं वो इस प्रकार है: 

कमलनाथ सीनियर लीडर हैं। मप्र के किसी भी गुट को उनके नाम से आपत्ति नहीं होगी। 
सवाल यह है कि यदि गुटबाजी खत्म भी हो जाएगी तो क्या कमलनाथ, शिवराज सिंह से मुकाबला कर पाएंगे। यहां बात अनुमान की नहीं रिकॉर्ड की है। मप्र में जितने भी उपचुनाव कमलनाथ के नेतृत्व में लड़े गए। सबमें कांग्रेस को करारी हार मिली। शहडोल में तो जीती हुई बाजी कांग्रेस के हाथ से निकल गई। बांधवगढ़ में कमलनाथ के पास अच्छा मौका था। भाजपा को परिवारवाद के नाम पर घेर सकते थे, लेकिन कुछ नहीं हुआ। उधर सिंधिया के नेतृत्व वाली अटेर विधानसभा का उपचुनाव जीता परंतु बांधवगढ़ हार गए। भाजपा की ओर से कमलनाथ और सिंधिया के सामने शिवराज सिंह ही थे। यदि विरोध होता तो कांग्रेस को फायदा होना चाहिए था। दोनों चुनावों में कोई गुटबाजी नहीं थी। पूरी कांग्रेस एकजुट थी। बस लीडरशिप अलग अलग थी। 

कमलनाथ अच्छे प्रबंधक हैं। उन्हे मैनेजमेंट का पुराना अनुभव है। 
किसी प्रदेश के सीएम का मैनेजर होना कितना जरूरी है कितना नहीं यह तो समीक्षा का विषय है क्योंकि दुनिया के तमाम मैनेजर्स, लीडर्स के पीछे काम करते हैं। नेतृत्व लीडर को दिया जाता है मैनेजर को नहीं। यहां मांग मैनेजर को लीडर बनाने की हो रही है। 

पिछली बार सिंधिया को मौका मिला था, इस बार कमलनाथ को मिलना चाहिए
​2013 के विधानसभा चुनाव में सिंधिया को कैम्पेन कमेटी का चेयरमैन बनाया गया था। सिंधिया के तूफानी दौरों ने शिवराज सिंह के नींद हराम कर दी थी परंतु जब माहौल कांग्रेस के पक्ष में बनना शुरू हुआ तो कांग्रेस की गुटबाजी उभरकर सामने आ गई और सिंधिया को पीछे धकेल दिया गया। कमलनाथ समर्थकों का तर्क है कि अब कमलनाथ को मौका दिया जाना चाहिए। सवाल यह है कि जब सिंधिया TESTED OK हैं तो फिर कमलनाथ कांग्रेस के लिए काम करते हुए गुटबाजी खत्म क्यों नहीं करवा देते। इस तरह से मप्र में कांग्रेस की सरकार बन जाएगी और कमलनाथ संगठन के लिए काम करने वाले नेता कहलाएंगे। 

उम्र के हिसाब से कमलनाथ के पास आखिरी मौका है
तो क्या कमलनाथ पेंशन प्लान पर काम कर रहे हैं। आखरी मौका है इसलिए हथियाना चाहते हैं फिर चाहे मप्र में कांग्रेस का कुछ भी हो जाए। यह दलील कमलनाथ को कमजोर करती है लेकिन हाईकमान तक मजबूती के साथ पहुंचाई गई है। उम्र भर के त्याग की कीमत मांगी जा रही है। कांग्रेसी पंडितों को इस मामले में यह याद नहीं आ पा रहा है कि कमलनाथ ने अपनी शुरूआत से लेकर आज तक त्याग क्या किया। वो हमेशा ही पॉवरफुल मं​त्री रहे। उन्होंने जो चाहा, कांग्रेस में उन्हे मिला है। फिर इतना उतावलापन क्यों। यदि यह उनकी राजनीति का लास्ट हाफ चल रहा है तो फिर उन्हे अब संगठन के लिए काम करना चाहिए। 

असली सवाल क्या है
असली सवाल यह है कि क्या कमलनाथ, भाजपा के शिवराज सिंह का मुकाबला कर पाएंगे। इन दिनों बार बार यह प्रमाणित हो रहा है कि तमाम विरोधी आंधियों के बावजूद भाजपा जब चुनावी मैदान में उतरती है तो अच्छे अच्छे वटवृक्ष उखाड़ फैंकती है। पंजाब एक उम्मीद की किरण हो सकता है परंतु उत्तरप्रदेश समेत तमाम दूसरे राज्यों के परिणाम यह संकेत देते हैं कि सावधान रहो और कोई गलती मत करो। कम से कम भ्रम में तो बिल्कुल ​मत रहो कि मतदाता भाजपा के खिलाफ वोट करेंगे ही। हवाओं को बदलने का फन इन दिनों भाजपा को ही आता है। शिवराज सिंह के सामने कांग्रेस की ओर से कोई ऐसा नेता चाहिए जिसमें आम जनता उम्मीद की किरण देखे। शिवराज से बेहतर और शालीन। जनता से जुड़ा हुआ और सरल। कमलनाथ जैसे प्राइवेट प्लेन वाले कार्पोरेट कारोबारी से जनता कितना जुड़ सकेगी यह विचार अनिवार्य है। कमलनाथ समर्थकों के पास एक भी दमदार तर्क नहीं है कि वो कैसे शिवराज सिंह चौहान को पछाड़ सकते हैं। पिछले 15 सालों में कमलनाथ ने शिवराज सिंह सरकार के खिलाफ कोई ऐसा आंदोलन खड़ा नहीं किया, जिसने उन्हे जनता के बीच उम्मीद की किरण बनाया हो। बल्कि असलियत तो यह है कि आम आदमी क्या मप्र के ग्रामीण इलाकों में सक्रिय कांग्रेसी कार्यकर्ताओं तक को कमलनाथ के बारे में कोई जानकारी नहीं है। 

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