
इसलिए पड़ी जरुरत
विश्वविद्यालयों के अधिकारियों के मुताबिक पीएचडी की थीसिस में कई बार ऐसे मामले आए हैं जब चोरी या नकल के आरोप लगे हैं। बाद में इसकी जांच भी हुई है। कुछ समय पूर्व तकनीकी शिक्षा विभाग के एक अधिकारी पर भी इस तरह के आरोप लगाए गए थे।
कई बार शोधार्थी किसी दूसरे की थीसिस का कुछ हिस्सा अपने शोध कार्य में जोड़ लेते हैं। वे इसे स्वयं किया गया शोध बताते हैं। खास बात यह है कि इसके संदर्भ का उल्लेख भी संबंधित के शोध कार्य में नहीं होता है। इस कारण चोरी या नकल के मामले को पकड़ने के लिए प्लेगोरिज्म साफ्टवेयर मददगार साबित होगा। इससे पीएचडी और स्नातकोत्तर पाठ्यक्रमों की थीसिस में फर्जीवाड़े से रोक लग सकेगी।
चेकर की तरह काम करता है
प्लेगोरिज्म सॉफ्टवेयर ऑनलाइन चेकर की तरह काम करता है। यानि थीसिस को जब प्लेगोरिज्म सॉफ्टवेयर में डाला जाएगा तो इस बात की जांच होगी कि थीसिस का कुछ हिस्सा दूसरे के शोध कार्य से लिया तो नहीं गया है। यह एक-एक लाइन को चैक करता है और नकल का चोरी करने की स्थिति में सर्च कर बताता है कि संबंधित लाइन या पैराग्राफ का उपयोग कहां किया गया है।
आरजीपीवी के अधिकारियों के मुताबिक इस साफ्टवेयर में पहले से हजारों-लाखों प्रकार की जानकारी लोड होती है। जहां भी नकल की जाती है वहीं यह उसे पकड़ लेता है। विवि में जिन विषयों में पीएचडी होती है उससे जुड़े विभिन्न् शोध भी इसमें पहले से लोड किए गए हैं।
इसके अलावा कहां-कहां से चोरी की संभावना होती है इस प्रकार के तथ्य भी इसमें शामिल किए गए हैं। यह विभिन्न् प्रकार की सामग्री की तुलना भी करता है और प्रत्येक वाक्य को डिटेक्ट करता है।
इनका कहना है
प्लेगोरिज्म सॉफ्टवेयर इस महीने से काम शुरू कर देगा। इससे शोध कार्य की मौलिकता बढ़ेगी। अगर थीसिस आदि में कहीं भी नकल की गई है या चोरी की सामग्री है तो यह तुरंत पकड़ लेगा। इस दिशा में सारी तैयारी पूरी कर ली गई है।
कल्पना श्रीवास्तव, प्रभारी कुलसचिव, आरजीपीवी