
मगर, जापान की सुप्रीम कोर्ट ने उसकी मांग को यह कहते हुए खारिज कर दिया। अपने फैसले में कोर्ट ने कहा कि ऐसा करना अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का उल्लंघन होगा। मीडिया खबरों के अनुसार, इंटरनेट से संबंधित सर्च में 'राइट टू फॉरगेटन' से जुड़ा हुआ यह पहला मामला है, जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने फैसला दिया है।
अपनी वेबसाइट पर प्रकाशित किए गए बयान में कोर्ट ने कहा कि ऐसी किसी जानकारी को तभी हटाया जा सकता है, जब यह लगे कि दी गई जानकारी किसी की निजता का बुरी तरह से हनन करती है।
उत्तरी टोक्यो के साईतामा जिला कोर्ट ने दिसंबर 2015 में गूगल के खिलाफ अस्थाई निषेधाज्ञा बरकरार रखा था। साथ ही उसे आदेश दिया था कि वह चाइल्ड प्रॉस्टीट्यूशन और पॉर्नोग्राफी के मामले में दोषी ठहराए गए एक व्यक्ति की सर्च रिजल्ट को डिलीट कर दे।
इसके बाद मामला हाईकोर्ट में पहुंचा। टोक्यो हाईकोर्ट ने पिछली जुलाई में निचली अदालत के फैसले को बदल दिया था। हाईकोर्ट ने कहा था कि इस मामले में कोई कानूनी बचाव का कोई अधिकार नहीं था। हाईकोर्ट के फैसले को आरोपी ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी।
गौरतलब है कि साल 2016 में इंटरनेट डाटा प्रोटेक्शन पर नियम बनाते हुए यूरोपियन यूनियन ने 'राइट टू फॉरगेटन' के मामले को अच्छी तरह से उठाया था।