इस तरह की खबरें 'राइट टू फॉरगेटन' के तहत नहीं हटा सकते: सुप्रीम कोर्ट

नईदिल्ली। इंटरनेट एक इतिहास है, इसमें किसी व्यक्ति की अच्छी और बुरी गतिविधियां हमेशा के लिए दर्ज हो जातीं हैं। इस दौरान कुछ ऐसी जानकारियां भी दर्ज हो जातीं हैं जो किसी व्यक्ति की निजता को प्रभावित करती हों। ऐसी जानकारियों को इंटरनेट से हटाने के लिए 'राइट टू फॉरगेटन' बनाया गया। जापान में एक व्यक्ति ने इसी के तहत मांग की थी कि गूगल न्यूज सर्च रिजल्ट में दिखने वाली उसकी गिरफ्तारी की खबर को गूगल से हटा दिया जाए। सेक्स चार्ज के आरोप में उसे गिरफ्तार किया गया था। 

मगर, जापान की सुप्रीम कोर्ट ने उसकी मांग को यह कहते हुए खारिज कर दिया। अपने फैसले में कोर्ट ने कहा कि ऐसा करना अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का उल्लंघन होगा। मीडिया खबरों के अनुसार, इंटरनेट से संबंधित सर्च में 'राइट टू फॉरगेटन' से जुड़ा हुआ यह पहला मामला है, जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने फैसला दिया है।

अपनी वेबसाइट पर प्रकाशित किए गए बयान में कोर्ट ने कहा कि ऐसी किसी जानकारी को तभी हटाया जा सकता है, जब यह लगे कि दी गई जानकारी किसी की निजता का बुरी तरह से हनन करती है। 

उत्तरी टोक्यो के साईतामा जिला कोर्ट ने दिसंबर 2015 में गूगल के खिलाफ अस्थाई निषेधाज्ञा बरकरार रखा था। साथ ही उसे आदेश दिया था कि वह चाइल्ड प्रॉस्टीट्यूशन और पॉर्नोग्राफी के मामले में दोषी ठहराए गए एक व्यक्ति की सर्च रिजल्ट को डिलीट कर दे। 

इसके बाद मामला हाईकोर्ट में पहुंचा। टोक्यो हाईकोर्ट ने पिछली जुलाई में निचली अदालत के फैसले को बदल दिया था। हाईकोर्ट ने कहा था कि इस मामले में कोई कानूनी बचाव का कोई अधिकार नहीं था। हाईकोर्ट के फैसले को आरोपी ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी। 

गौरतलब है कि साल 2016 में इंटरनेट डाटा प्रोटेक्शन पर नियम बनाते हुए यूरोपियन यूनियन ने 'राइट टू फॉरगेटन' के मामले को अच्छी तरह से उठाया था।

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