
ना यशोधरा आईं, ना उद्योग मंत्री
प्रदेश के उद्योग एवं वाणिज्य मंत्रालय के अधीन आने वाले इस मेले के उ्दघाटन में उसी महकमे की मुखिया और शिवराज सरकार की वरिष्ठ मंत्री श्रीमती यशोधरा राजे सिंधिया की गैरहाजिरी ने इस पूरे मामले को नए सिरे से तूल दे दिया है। भले ही सियासी तौर तरीके से इसके अपनी तमाम वजहें बतार्इं, गिनार्इं जा सकती हैं लेकिन आम जनता भी सयानी है हुजूर। वैसे भी यह कोई एक बार का मामला नहीं। भाजपा के बड़े-बड़े नेताओं के बीच किस स्तर पर गुटबाजी के लकीरें खिंची हुई हैं ये अब किसी से छिपा नहीं हैं। ऐसे में मेले के उद्घाटन के साथ ही इस मामले को एक बार फिर से हवा लगने से सियासी माहौल गरमा हुआ है।
अब कोई बड़ा ब्रांच नहीं बचा
मेले में कारोबार के गिरते ग्राफ के बेशक कुछ दीगर कारण भी हो सकते हैं लेकिन बहुत सी वजहें ऐसी भी हैं जिनको लेकर हमारे शहर समेत समूचे अंचल के तमाम व्यापारी संगठनों ने कभी सीधे तौर पर तो कभी चेम्बर आॅफ कॉमर्स के मार्फत शासन-प्रशासन को आगाह किया। इस सबके बावजूद मेले की बेकद्री का दौर लगातार जारी है। यही कारण है कि मेले से सबसे पहले आॅटोमोबाइल सेक्टर ने नाता तोड़ा। इसके बाद इलेक्ट्रॉनिक सेक्टर से भी कई बड़ी कंपनियां विदाई ले चुकी हैं। वहीं झूला, मनोरंजन और खानपान सेक्टर्स से भी बहुत से बड़े नाम मेले का रुख छोड़ चुके हैं।
पूरी पार्टी में कोई मेले के काबिल ही नहीं?
दरअसल मेले के स्वरुप और उसकी चमक-दमक के मामले में सबसे ज्यादा गिरावट बीजेपी की सरकार के दौरान ही आई है। सबसे पहले तो मेला प्राधिकरण को ही ले लीजिए। यह एक ऐसा मुद्दा है जो अपने कार्यकतार्ओं को देवदुर्लभ बताने वाली भाजपा के गाल पर किसी करारे तमाचे से कम नहीं है। दरअसल कार्यकतार्ओं के दम पर नगर सरकार से लेकर केन्द्र तक सत्ता पर काबिज दुनिया की सबसे बड़ी पार्टी होने का दावा ठोकने वाली बीजेपी लगातार कई सालों से मेला प्राधिकरण का गठन नहीं कर पाई है। ऐसे में सवाल ये उठता है कि क्या पूरी की पूरी भाजपा में मेला को संभालने लायक कोई नेता-कार्यकर्ता नहीं है?
मेले की बारी आई तो मंत्री पवैया भी कर गए किनारा
इस दफा दो बार मेले के उद्घाटन की तारीखें आगे बढ़ाए जाने के बाद भी हाल ये रहा कि शहर में होते हुए भी प्रदेश सरकार के वरिष्ठ मंत्री जयभान सिंह पवैया इसके शुभारंभ समारोह में शामिल नहीं हुए। बात इसलिए भी खास है कि श्री पवैया दिन भर शहर में आयोजित विभिन्न कार्यक्रमों में शामिल हुए लेकिन शाम को शहर से बाहर निकल गए। ग्वालियर को सिंधिया के कब्जे से मुक्त कराने वाले पवैया आज तक एक भी ऐसा काम नहीं कर पाए हैं जो उन्हे माधवराव सिंधिया के समकक्ष बताने के लायक हो।