राकेश दुबे@प्रतिदिन। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की ‘गेम चेंजिंग’ विमुद्रीकरण के आज चार सप्ताह यानी एक महीना हो गया। इस अवधि में काले धन के मामले में आयकर विभाग ने खुलासा किया है कि अब तक 2000 करोड़ रुपये का काला धन पकड़ा गया है और 130 करोड़ की नकदी और आभूषण जब्त की गई है। राजकोषीय घाटा और मुद्रास्फीति पर प्रभावी रोक से संबंधित दावे दीर्घकालिक परिणाम देने वाले हैं और इसके लिए देश के नागरिकों को अभी इंतजार करना पड़ेगा लेकिन सबसे गंभीर और अहम सवाल यह है कि आम नागरिकों को अपनी नकदी प्राप्त करने के लिए बैंकों और एटीएम से जल्द छुटकारा दिलाने की वित्त मंत्री की घोषणा कोरी साबित हुई।
जिनको महीने की पहली और सात तारीख को वेतन मिला उनमें से ज्यादातर को अब तक नकदी हासिल नहीं हुआ। कई सरकारी-गैर सरकारी बैंक नकदी की समस्या से जूझ रहे हैं। इसके चलते आरबीआई द्वारा मंजूर 24000 रुपये प्रति सप्ताह की सीमा से कम राशि अपने ग्राहकों को निकालने की अनुमति दे रहे हैं। इतनी कम राशि में लोगों की जरूरतें पूरी नहीं हो पा रही हैं। अर्थात इस मोर्चे पर सरकार के सभी दावे थोथे साबित हुए। नकदी की भारी किल्लत ने दिल्ली स्थित दूतावासों के कर्मचारियों को भी प्रभावित करना शुरू कर दिया है। पाकिस्तान के बाद अब रूस ने भी राजनयिक स्तर पर विमुद्रीकरण के खिलाफ सख्त विरोध जताते हुए बदले की कार्रवाई करने की चेतावनी दी है। घरेलू स्तर पर उद्योग और व्यापार बुरी तरह प्रभावित हो रहे हैं।
लघु और कुटीर उद्योगों में काम करने वाले मजदूर नकदी के अभाव में अपने गांव पलायन कर रहे हैं, दूसरी ओर कुछ कथित बड़े राजनीतिक रसूख वाले लोग भारी मात्रा में नये नोटों के साथ गिरफ्तार हो रहे हैं। इनमें भाजपा के नेता भी शामिल हैं। यह सवाल है कि जब नये नोटों की ऐसी हदबंदी है, वहां इन नेताओं को बेशुमार नोट कहां से मिल रहे हैं? तो क्या मान लेना चाहिए कि मौद्रिक बैंकिंग व्यवस्थाएं सरकार के नियंत्रण से बाहर हो रही हैं। अगर इसमें सचाई है तो आगे इसके गंभीर परिणाम देखने को मिल सकते हैं।
भाजपा ने चुनाव घोषणा पत्र में विमुद्रीकरण का उल्लेख तक नहीं किया है। इसलिए लगता है कि प्रधानमंत्री मोदी और उनकी सरकार ने नोटबंदी के नकारात्मक परिणामों के बारे में विचार किए बिना ही इतना बड़ा फैसला ले लिया। अगर सरकार फौरन बैंकों और एटीएम में पर्याप्त नकदी उपलब्ध कराने में असमर्थ रही तो केंद्र सरकार की विसनीयता पर खरोंचें आ सकती हैं।
श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।
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