
गौरतलब है कि जस्टिस एसके गंगेले की अध्यक्षता वाली युगलपीठ और जस्टिस संजय के सेठ की अध्यक्षता वाली युगलपीठ द्वारा यह विरोधाभासी फैसले दिए हैं। संवैधानिक पीठ दोनों में से किसी एक पीठ के निर्णय के प्रति अपनी सहमति देगी।
जस्टिस गंगेले की युगलपीठ ने जून 2016 में ऐतिहासिक निर्णय में यह निर्धारित किया था कि लोकायुक्त कार्यालय के अधीन कार्य करने वाली विशेष पुलिस स्थापना ही भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम 1988 के तहत दर्ज होने वाले अपराधों की जांच और विवेचना कर सकती है, सामान्य पुलिस को इस अधिनियम के तहत अपराधों की जांच का अधिकार नहीं हैं। दूसरी ओर जस्टिस एसके सेठ की युगलपीठ ने एक अन्य केस में यह अभिमत दिया कि सामान्य पुलिस को जांच करने के संपूर्ण अधिकार प्राप्त हैं, किसी भी अन्य कानून से सामान्य पुलिस के विवेचना एवं अनुसंधान के अधिकारों पर अंकुश नहीं लगता है।
गौरतलब है कि विशेष पुलिस स्थापना अधिनियम 1947 के तहत लोकायुक्त पुलिस का गठन किया गया है। राज्य शासन ने 1989 की अपनी एक अधिसूचना के जरिए भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम 1988 के अपराधों की जांच के लिए अधिकृत किया था। जबकि दूसरी ओर सामान्य पुलिस सीआरपीसी 1973 और मप्र पुलिस एक्ट के तहत अपराधों की जांच करती है। याचिकाकर्ता की ओर से अधिवक्ता सिद्धार्थ राधेलाल गुप्ता का तर्क है कि विशेष पुलिस स्थापना अधिनियम एक विशिष्ट अधिनियम है, जो सीआरपीसी के सामान्य प्रावधानों के ऊपर प्राथमिकता के सिद्धांत के तहत लागू होता है। इसलिए केवल विशेष पुलिस स्थापना को ही भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम 1988 के अपराधों की जांच का अधिकार है।