
जस्टिस गीता मित्तल और जस्टिस आरके गौब की बेंच ने कहा, रेप के बाद बालिग या नाबालिग की कोख से जन्मा बच्चा भी केस में पीड़ित है और मां के अलावा वह भी अलग से मुआवजे का हकदार है। इस केस में ट्रायल कोर्ट ने विक्टिम को 15 लाख का मुआवजा देने का ऑर्डर दिया था। सरकारी वकील ने कहा कि मुआवजे की इतनी रकम दिल्ली सरकार की स्कीम में शामिल नहीं है। पहले 3 लाख का प्रावधान था, जिसे 2015 की नई स्कीम में बढ़ाकर 7.50 लाख किया गया। कोर्ट ने कहा कि इस केस में राज्य सरकार को स्कीम के तहत ज्यादा से ज्यादा साढ़े सात लाख रुपए का मुआवजा विक्टिम को देना चाहिए।
कोर्ट के सामने आई कानून की खामी
हालांकि हाईकोर्ट ने पाया कि पोक्सो एक्ट और दिल्ली मुआवजा स्कीम 2011 में रेप विक्टिम से जन्मे बच्चे के लिए आर्थिक मदद का प्रावधान नहीं है। कानून की यह खामी कोर्ट की नजर में उस वक्त आई, जब कोर्ट ने 14 साल की नाबालिग बेटी का रेप करने वाले पिता की अर्जी पर सुनवाई की। कोर्ट ने कहा, दोषी ने मां और बेटी का भरोसा तोड़ा और उन्हें प्रताड़ित किया। इसका असर बच्चे पर भी पड़ेगा। ऐसे मामले में नरमी की गुंजाइश नहीं।
पोस्को एक्ट के मामलों में पहचान छिपाई जाए
हाईकोर्ट ने विक्टिम की पहचान छिपाने के लिए ट्रायल कोर्ट के गाइडलाइन में भी कमियां पाईं। इस पर नाराजगी भी जाहिर की। निचली अदालतों को सख्त ऑर्डर दिया है कि ऐसे मामलों में नाबालिग विक्टिम की पहचान पूरी तरह से छिपाई जाए।