उपदेश अवस्थी/लावारिस शहर। यह ऐलान शिवराज सरकार ने किसी माइक से नहीं किया, कोई कागजी आदेश भी जारी नहीं हुए परंतु मप्र पुलिस के एक एक जवान तक यह संदेश पहुंच गया कि यदि आरएसएस का कार्यकर्ता आपके सामने कितना भी जघन्य अपराध करे, आप उसे हाथ मत लगाना। लगाया तो वही हश्र होगा जो बालाघाट में एसपी से लेकर सिपाही तक का हो गया है।
बालाघाट में राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के प्रचारक सुरेश यादव के साथ हुई मारपीट निश्चित रूप से निंदा के योग्य है परंतु जेब काटने की सजा मौत तो नहीं हो सकती। सरकार ने पुलिस अधिकारियों के खिलाफ जिस तरह की कार्रवाई की है उसे न्यायसंगत कतई नहीं कहा जा सकता। यह कार्रवाई बिल्कुल वैसी ही है, जैसी इंदिरा गांधी के समय में हुआ करतीं थीं।
सब जानते हैं सुरेश यादव ने कानूनी अपराध किया था। वाट्सएप ग्रुप पर जो पोस्ट डाली गई है उसमें औवेसी का तो मात्र एक बार जिक्र किया गया है, उसके बाद जितने भी शब्द हैं, सारे के सारे उन्मादी शब्द हैं। पुलिस ने वही किया जो कानूनी रूप से उचित था। यदि सुरेश यादव पुलिस हिरासत से भागने का प्रयास ना करते तो मारपीट भी ना होती। फिर भी इस तरह की मारपीट का लाइसेंस पुलिस को नहीं दिया जा सकता। कार्रवाई जरूरी थी। सस्पेंड किया जाना था और यह उचित था।
परंतु धारा 307 के तहत एफआईआर, निरीह होमगार्डों की बर्खास्तगी, एसपी को तत्काल हटा दिया जाना। यह कार्रवाईयां कुछ और संकेत दे रहीं हैं। शिवराज सरकार ने स्पष्ट कर दिया है कि यदि आरएसएस के कार्यकर्ताओं को हाथ लगाया तो अंजाम क्या होगा। पूरे मप्र की पुलिस सहमी हुई है। भगवा झंडा देखकर डरने लगी है। मैदानी पुलिस अधिकारी आपस में तय कर रहे हैं, चाहे कुछ भी हो जाए आरएसएस वालों के खिलाफ कार्रवाई नहीं करेंगे। सद्भाव बिगड़ भी गया तो क्या होगा, ज्यादा से ज्यादा सस्पेंड कर दिए जाएंगे परंतु बालाघाट जैसा हश्र तो नहीं होगा।
मेरे स्वयंसेवक साथियों को बधाई, इंदिरा गांधी के आपातकाल का विरोध करते करते अपन भी वैसे ही हो गए जैसी इंदिरा गांधी थी। तानाशाह और बेलगाम।