
इसके लिए चार सप्ताह का समय दिया गया है। मंगलवार को मामले की सुनवाई के दौरान जनहित याचिकाकतर्ता अधिवक्ता मदन मोहन शकरगाय ने अपना पक्ष स्वयं रखा। उन्होंने दलील दी कि सेट की स्थापना से मध्यप्रदेश शासन के कर्मचारियों के केस अपेक्षाकृत कम समयावधि में निराकृत हो जाते थे। साथ ही हाईकोर्ट में मुकदमों के अंबार से भी काफी हक तक राहत मिली थी।
दिग्विजय कार्यकाल में बंद हुआ
बहस के दौरान कहा गया कि तत्कालीन मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह के कार्यकाल में सेट को बंद करने 2001 में तालाबंदी की गई, अंतत: 2003 से सेट पूरी तरह बंद कर दिया गया। इस वजह से कर्मचारियों के केस हाईकोर्ट आ गए। प्रमोशन व ट्रांसफर सहित अन्य विवादों को लेकर हाईकोर्ट में नई-नई याचिकाएं दायर होने लगीं। इससे सर्विस मैटर्स का अंबार हाईकोर्ट के हिस्से आ गया।
सवाल उठता है कि जब केन्द्रीय प्रशासनिक अधिकरण यानी कैट विधिवत कामकाज करके केन्द्रीय कर्मियों को राहत दे रहा है, तो सेट आखिर क्यों बंद किया गया? जाहिर सी बात है कि तत्कालीन कांग्रेस सरकार को ऐसा महसूस हुआ था कि सेट की वजह से उसके खिलाफ आदेश हो रहे हैं, इसलिए उसने सेट को बंद करवाने जैसा अनुचित कदम उठाया।