इंदौर में तेजी से फैल रहा है गुलियन बेरी सिंड्रोम, मौत का नया नाम

इंदौर। आप इसे कुदरत का नया हमला कहें या मेडिकल माफिया का नया जाल, लेकिन लोग इसमें फंस रहे हैं। हर महीने करीब 20 मरीज सामने आ रहे हैं जो गुलियन बेरी सिंड्रोम (जीबीएस) के शिकार हैं। इस बीमारी में वायरस मरीज की नसों पर हमला करता है, इसलिए इसे नसों का लकवा भी कहा जाता है। साल भर पहले तक ऐसी किसी बीमारी का अता पता नहीं था लेकिन अब यह तेजी से फैल रहा है। इसमें मरीज को तत्काल 2 लाख रुपए के 20 इंजेक्शन लगाने होते हैं, यदि नहीं लगाए तो 15 दिन में उसकी मौत हो जाती है। 

एमवाय अस्पताल में अभी जीबीएस यानी नसों का लकवा के चार मरीज भर्ती हैं। इसका शिकार ज्यादातर युवा हो रहे हैं। डॉक्टरों के मुताबिक इस बीमारी का उपचार एकमात्र इम्युनोग्लोबिन इंजेक्शन है। गरीब मरीजों के लिए इसकी कीमत चुकाना बहुत मुश्किल है। लगातार पांच दिन तक 20 इंजेक्शन नहीं लगने से मरीज में संक्रमण बढ़ता जाता है।

तेजी से बढ़ रहे मरीज
इस बीमारी के बीते साल तक महीनेभर में तीन-चार केस आते थे, जबकि अब इनकी संख्या 15-20 है। पिछले वर्ष से अभी तक इस बीमारी से 10-12 लोगों की मौत हो चुकी है।

बिना पूर्व लक्षणों के निढाल हो जाता है मरीज
डॉक्टर अभी तक इस बीमारी के लक्षण नहीं समझ सके हैं। मरीज अचानक काम करते-करते या सोते हुए भी निढाल होकर गिर जाता है। सबसे पहले पैर लकवाग्रस्त होते हैं। इसका असर धीरे-धीरे शरीर के ऊपरी हिस्सों में पहुंचता है।

डॉक्टर बस अनुमान लगा रहे हैं
डॉक्टरों के अनुसार जीबीएस के पुरानी बीमारी से फैलने की भी आशंका रहती है। कभी पहले बुखार, उल्टी-दस्त या पेट में संक्रमण की समस्या हुई हो तो उसके कई महीने बाद कोई वायरस अचानक सक्रिय हो जाता है। यह नसों पर हमला करता है।

सरकारी मदद भी नहीं मिलती
जानकारों के मुताबिक दिल, कैंसर जैसी बीमारी की तरह इसे भी सरकारी सहायता की सूची में शामिल करना चाहिए। ऐसा हुआ तो कई मरीजों की जिंदगी बच सकती है।

ये होता है बीमारी का असर
पैर से शुरू होने वाला लकवा धीरे-धीरे शरीर के सभी अंगों को प्रभावित करने लगता है। धीरे-धीरे इसका असर हाथ, कमर से होते हुए श्वसन तंत्र तक पहुंच जाता है इससे मरीज का सांस लेना मुश्किल हो जाता है। श्वसन तंत्र तक पहुंचने के बाद मरीज का बचना मुश्किल रहता है।

ये है इलाज और कीमत
इसके लिए लगातार पांच दिन तक 20 इम्यूनोग्लोबिन इंजेक्शन लगना अनिवार्य है। एक इंजेक्शन की कीमत 10 हजार रुपए है। अर्थात 2 लाख रुपए के इंजेक्शन और बाकी खर्चा अलग से। 

माफिया की साजिश क्यों
महंगी दवाएं बनाने और बेचने के लिए मेडिकल माफिया नए नए वायरस पैदा करते हैं और फिर उसे आम जनता के बीच फैला देते हैं। ऐसे वायरस अक्सर मौत बनकर आते हैं। हालात ऐसे बनते हैं कि व्यक्ति अपनी जान बचाने के लिए कुछ भी कीमत देने को तैयार हो जाता है। दरअसल, यह खौफ का धंधा है। इंदौर मेडिकल माफिया का गढ़ है। संभव है माफिया ने इस वायरस को फैलाया हो। जब तक वैज्ञानिक इसका सस्ता इलाज या टीका इजाद कर पाएंगे, माफिया हजारों करोड़ रुपए कमा चुका होगा। सरकारी मिली भगत होने के कारण, ऐसी बीमारियों को सरकारी मदद की सूची में भी तत्काल शामिल नहीं किया जाता। इस मामले में भी ऐसा ही हो रहा है। 
इनपुट: सुमेधा पुराणिक चौरसिया, पत्रकार, नईदुनिया, इंदौर, मप्र की ओर से भी। 

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