Low Floor Bus: लंबी नहीं चल पायी भरोसे की भैंस

Bhopal Samachar
Bhopal Local News। शहर मे पहली बार ऐसा हुआ है जब नगर निगम को उसके आपरेटर कंपनी ने ही धमकाना शुरू कर दिया है ओर उसका कहना है कि अगर उसकी मदद नहीं की गयी तो वह जल्दी ही लो फ्लोर बसों को बंद कर देगी। गोरतलब है कि शहर में 225 बसें चलाीय गयी थी लेकिन अब इनकी जगह दो दिन से सिर्फ 70 लो फ्लोर बसें ही आॅनरोड नजर आ रही हैं। आपरेटरों ने शुरू में जम कर मुनाफा कमाया और बसों का सही तरीके से रखरखाव नहीं किया। अब घाटा आया तो वह परेशान हो रहे हैं। 

नगर निगम के लिए लो फ्लोर बसों का प्रयोग शुरू से ही मुश्किल भरा रहा। गारंटी पीरियड मे मेंटनेंस की बेपरवाही और मॉनीटरिंग की कमी के कारण लगातार समस्याएं बढ़ती गईं। विशेषज्ञों का कहना है कि नए-नए प्रयोगों में पड़ी रही लो-फ्लोर बसों का कभी सख्त रिव्यू ही नहीं हुआ। यही वजह है कि करोड़ों रुपए खर्च होने के बाद यह नौबत आई। नवंबर 2010 में 105 बसों के साथ शुरू हुआ लो फ्लोर बसों का बेड़ा तीन साल में 225 बसों तक जा पहुंचा। यह बसों का गारंटी पीरियड था, जब कंपनी ने जमकर कमाई की। मगर मेंटनेंस पर ध्यान नहीं दिया। फिर एक नए आॅपरेटर केपिटल को 20 एसी और 20 नॉन एसी बसें सौंप दीं। एक साल में एसी बसें बंद हो गईं। बाकी बसें बदले रूट पर चलीं। एसी बसें फिर एक साल खड़ी रहीं। तीन महीने पहले दूसरे आॅपरेटर को 20 और बसों के साथ थमा दीं। इस तरह तीन आॅपरेटर हो गए। प्रसन्ना की दलील है कि यह अनुबंध का उल्लंघन था मगर निगम अपनी मनमानी करता रहा। कंपनी का कहना है कि निगम प्रशासन को हमने प्रस्ताव दिया है कि वे कोई दूसरा आॅपरेटर तय कर लें। हम सारा सेट अप देने को तैयार हैं। अब हम बसें नहीं चला सकते।

कंपनी का कहना है कि 3500 रु. प्रतिदिन प्रतिबस डीजल खर्च है जो हम नहीं निकाल पा रहे हैं।  बदहाली के लिए निगम जिम्मेदार है। कंपनी भारी घाटे में चल रहे हैं। कर्मचारियों को वेतन नहीं दे पा रहे। हमने निगम को कह दिया है कि 11 जुलाई से हम नहीं चला पाएंगे। वित्तीय बदहाली को लेकर कई बार पत्र लिखने के बावजूद निगम ने कभी ध्यान नहीं दिया। बीमा की रकम निगम के खाते में जाती है। प्रीमियम हम चुकाते हैं। विज्ञापन का पैसा भी निगम लेता है। महापौर पास से भी हमें नुकसान। डीजल के दाम बढ़े। किराया नहीं। और क्या गिनाएं? अनुबंध में क्या तय हुआ था?

खर्च दोगुना हो गया
इस बीच बसें पुरानी होने से संचालन की कॉस्ट भी लगभग दुगनी हो गई है। 2010 से 2013 के बीच आॅपरेटर को बस आॅपरेशन की कॉस्ट 20 से 25 रुपए प्रति किलोमीटर पड़ती थी। यह अब बढ़कर 40 से 45 रुपए प्रति किलो मीटर पहुंच गई है। बसों से कमाई का 70 प्रतिशत हिस्सा डीजल पर खर्च। प्रसन्ना पर्पल पिछले 2 दिनों से आधी बसों का ही संचालन कर रहा है। डेढ़ सौ बसें हैं। सिर्फ 70 बसें चल रही हैं। पहले कंपनी 105 बसों का रोजाना संचालन करती थी। 
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