भाजपा: सम्वाद और सहमति की जरूरत

राकेश दुबे@प्रतिदिन। भाजपा के बुजुर्गों की बगावत ने उस नरेंद्र मोदी के पार्टी पर एकाधिकार को बड़ी चुनौती दी है। जो 2014 के लोकसभा चुनावों के साथ ही भाजपा के सर्वोच्च नेता बन गए थे, जिसके बाद उन्होंने कई पुराने राजनेताओं को किनारे कर दिया। अपने सबसे करीबी गुजरात के नेता अमित शाह को भाजपा अध्यक्ष बनवा दिया और पार्टी के पहले से प्रभावशाली नेताओं में से सिर्फ अरुण जेटली को नए सत्ता समीकरण में महत्वपूर्ण जिम्मेदारी मिली, बाकी सब अपेक्षाकृत अप्रभावी हो गए। 

वरिष्ठ नेताओं लालकृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी, शांता कुमार, यशवंत सिन्हा वगैरह को लगभग रिटायरमेंट की हालत में ला दिया गया। जब तक मोदी लहर थी, सब ठीक था, पर दिल्ली के विधानसभा चुनावों ने इस लहर के उतार का संकेत दे दिया था। बिहार के नतीजों ने अंतिम रूप से साबित कर दिया कि भले ही मोदी अब भी देश के सबसे लोकप्रिय नेता हैं, लेकिन वह सर्वशक्तिमान नहीं हैं और अकेले सारी लड़ाइयां नहीं जीत सकते।

ऐसे में, पार्टी में किनारे कर दिए गए लोगों का मुखर होना स्वाभाविक ही था। पार्टी के बुजुर्गों की बगावत ने नरेंद्र मोदी के पार्टी पर एकाधिकार को बड़ी चुनौती दी है। इस असंतोष से मोदी-शाह के नेतृत्व को सीधे-सीधे कोई खतरा नहीं है, लेकिन उनकी स्थिति कमजोर हुई है। कामयाबी विरोधियों को चुप करवा देती है, नाकामी के बाद गलत आलोचना भी विश्वसनीय लगने लगती है। मोदी की एक बड़ी समस्या यह है कि पार्टी के जिन वाचाल कट्टरपंथियों की वजह से उन्हें देश-विदेश में आलोचना झेलनी पड़ रही है, वे कट्टरपंथी भी मोदी के पक्के समर्थक नहीं हैं। उनमें से कई तो इसलिए ज्यादा उग्र बने रहते हैं, ताकि मोदी अपनी मध्यमार्गी या उदार छवि न बना लें। ये सभी संघ परिवार के तमाम संगठनों से जुड़े हैं, जिनका नियंत्रण भाजपा नहीं, आरएसएस के हाथ में है। इस असंतोष से बड़ी मुश्किल मोदी के लिए यह है कि दो साल खराब मानसून की वजह से अर्थव्यवस्था पर बुरा असर पड़ा है, उद्योग-व्यापार में अपेक्षित प्रगति नहीं हुई है, इसलिए आम जनता भी उस तरह मोदी समर्थक और प्रशंसक नहीं रही है, जैसी डेढ़ साल पहले थी। अरुण जेटली को कल मुरली मनोहर जोशी के घर से निराश लौटना पड़ा है। संकेत हैं कि विदेश दौरे से लौटने के बाद मोदी मंत्रीमंडल और राज्यों में कुछ फेरफार करेंगे। पर यह साफ है कि उनकी और से पैरवी करने वाले कमजोर है और विरोधी मार्च निकालने की ख्वाहिश रखने वाले बौने हैं। इस सारी रार से निपटने का एक ही तरीका है सम्वाद और सहमत। 

श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।
संपर्क  9425022703
rakeshdubeyrsa@gmail.com 
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