जबलपुर। एमपी स्टेट बार कौंसिल की रविवार को आयोजित प्रेस कांफ्रेंस के जवाब में सोमवार को हाईकोर्ट प्रशासन का पक्ष रखते हुए रजिस्ट्रार जनरल ने साफ किया कि हायर ज्यूडीशियल सर्विस अंतर्गत सीधी भर्ती के लिए योग्य उम्मीदवारों के उपलब्ध न होने के कारण नियम संशोधित किया गया है। इसके जरिए त्वरित व गुणवत्तायुक्त न्याय तक पहुंच की ओर एक सकारात्मक कदम बढ़ाया गया है। लिहाजा, इसका कोई और अर्थ लगाकर विरोध करना उचित नहीं।
रजिस्ट्रार जनरल वेदप्रकाश ने लिखित वक्तव्य के जरिए स्पष्ट किया कि वर्ष 2010, 2012 और 2014 में क्रमशः 33, 42 और 77 रिक्त पदों के विरुद्ध सीधी भर्ती द्वारा एक भी रिक्त पद नहीं भरा जा सका। 2015 में संचालित चयन प्रक्रिया में 84 रिक्तियों के विरुद्ध केवल 9 उम्मीदवार ही चयनित किए जा सके। इस तरह पिछले 10 सालों के दौरान 2006 से 2015 के बीच उच्चतर न्यायिक सेवा संवर्ग के कुल 394 पदों के विरुद्ध महज 37 उम्मीदवार ही बार से चयनित किए जा सके।
उन्होंने बताया कि आज की स्थिति में 505 पदों की कुल स्वीकृत संख्या में से अतिरिक्त जिला न्यायाधीशों के 90 से अधिक न्यायालय रिक्त पड़े हैं। इसके कारण प्रति न्यायाधीश औसत लंबित प्रकरणों की संख्या बढ़कर 1100 हो गई है, जिसने न्यायदान में विलंब को बढ़ाया है। 2014 के दौरान उच्चतर न्यायिक सेवा के स्तर पर एक न्यायाधीश द्वारा औसतन 732 प्रकरणों का निराकरण किया गया है, अतः 75 और अतिरिक्त न्यायाधीशों की उपलब्धता से 55,000 अतिरिक्त प्रकरणों का निराकरण सुगमता से हो सकता था।
संशोधित नियम ऐसे करेगा कार्य
रजिस्ट्रार जनरल ने बताया कि संशोधित नियम के अंतर्गत बार से सीधी भर्ती द्वारा भरे जाने वाले पदों का कोई भी न्यूनीकरण नहीं होगा। बार द्वारा सीधी भर्ती से पदों को भरने के लिए केवल एक समय-सीमा निर्धारित की गई है। यदि निरंतर दो चयन प्रक्रियाओं के बावजूद ऐसे पद रिक्त रहते हैं तो उन्हें मैरिट के आधार पर वास्तव में उन व्यवहार न्यायाधीशों को वरिष्ठ वर्ग से भरा जाएगा जिन्होंने कुल मिलाकर 7 वर्षों की न्यायिक सेवा व 35 साल की आयु पूर्ण कर ली हो।