कृषि: 1960 जैसे आसार नजर आ रहे हैं

राकेश दुबे@प्रतिदिन। बिगडैल मानसून के परिणाम सामने आने लगे हैं। उत्तर और पश्चिमी भारत के किसान ज्यादा संकट में हैं। उन्हें इस वर्ष के प्रारंभ में तब भारी संकट का सामना करना पड़ा था, जब बेमौसम बरसात के कारण उनकी रबी की पकी फसलें खेतों में बर्बाद हो गई थीं। उनके  भयावह अनुभव के बाद अन्य क्षेत्रों पर निगाह डालें तो उत्तर प्रदेश, बिहार के कुछ हिस्से, महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश, कर्नाटक समेत देश के ज्यादातर हिस्सों में भारी सूखे का सामना कर रहे हैं। कुल मिलाकर देश में औसत से १६ प्रतिशत कम वर्षा हुई है। लेकिन पूर्वी उत्तर प्रदेश में दीर्घकालीन औसत से ४५ प्रतिशत कम वर्षा हुई। उत्तर प्रदेश, बिहार, मध्य प्रदेश, पंजाब, महाराष्ट्र, कर्नाटक और आंध्र प्रदेश में औसत से२५ से ५५ प्रतिशत तक कम वर्षा हुई। विशेषज्ञों में इस बात पर आम सहमति है कि देश में वर्ष २०१५ -१६ में खाद्यान्नों के उत्पादन में नकारात्मक विकास देखने को मिलेगा।

भारत में जब दूसरे सूखे वर्ष की स्पष्ट झलक दिख रही है, कृषि अर्थशास्त्री डॉ अशोक गुलाटी के अनुसार सौ वर्षों में यह पहली बार है, जब भारत लगातार चौथे सूखे वर्ष का सामना कर रहा है। इसका कृषि अर्थव्यवस्था के साथ-साथ ग्रामीण मांग पर गहरा असर पड़ेगा, जो आर्थिक विकास को गंभीर रूप से प्रभावित करता है। बिहार के चुनाव में किसानों की बदहाली भी एक मुद्दा बन गई है।

नीति आयोग को कृषि मामलों में सलाहकार कह रहे  हैं कि राजग सरकार स्थिति की गंभीरता को पूरी तरह से पकड़ नहीं पा रही है। सूखा प्रभावित इलाकों में स्थिति इतनी भयावह है कि कई राज्यों में खाद्यान्नों के उत्पादन में २० प्रतिशत से ज्यादा गिरावट हो सकती है। देश के ज्यादातर हिस्से में किसानों को कृषि उत्पाद से उनकी लागत भी नहीं मिल पाएगी।' अगर सरकार किसानों के लिए लगातार प्रोत्साहन की व्यवस्था नहीं करती है, तो भारत १९६०  के दशक के खाद्यान्न संकट की स्थिति में पहुंच सकता है।

श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।
संपर्क  9425022703
rakeshdubeyrsa@gmail.com
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