राकेश दुबे@प्रतिदिन। हम आजादी के बाद से लगातार पंचवर्षीय योजनाएं देखते आ रहे हैं। सार्वजनिक क्षेत्र में उद्योग लगे। इंदिरा गांधी ने सत्ता में आने के बाद गरीबी हटाओ का नारा दिया। बैंक और कोयला उद्योग का राष्ट्रीयकरण हुआ। आदिवासी, दलित जनता के विकास के लिए अनेक योजनाएं चलीं। ग्रामीण इलाकों के विकास पर पानी की तरह पैसा बहाया गया। बावजूद इसके हालात क्यों नहीं बदल रहे? आज भी ग्रामीण भारत की तस्वीर वैसी ही है, इसका खुलासा अभी-अभी आए सामाजिक-आर्थिक जाति गणना से होता है।
करीब २५.७ ग्रामीण आबादी गरीबी रेखा के नीचे है, उनकी आमदनी प्रतिमाह ८१६ रुपए से कम है। तीस प्रतिशत ग्रामीण आबादी भूमिहीन है। यह आबादी दिहाड़ी कर अपना और अपने परिवार का पेट पालती है। जो गरीबी रेखा के ऊपर हैं, उनकी हालत भी बहुत अच्छी नहीं। महज दस प्रतिशत ग्रामीण आयकर देने की हैसियत में हैं। वित्तमंत्री की चिंता है कि महज ४.६ प्रतिशत ग्रामीण परिवार आयकर देते हैं, शेष से आयकर कैसे वसूला जाए। हमारी चिंता यह है कि आजादी के सड़सठ वर्षों बाद भी दस फीसद ग्रामीण ही क्यों आयकर की श्रेणी में पहुंच पाए!
इस बीच एक दूसरा आंकड़ा भी आया है, जो गरीबी के कारणों का खुलासा करने के अलावा देश की विकास नीतियों पर सवालिया निशान लगाता है। यह आकड़ा ग्लोबल वेल्थ डाटाबुक का है। अपने देश में इस तरह के सर्वेक्षण होने से रहे, इसलिए हमारे पास इन पर भरोसा करने के अलावा कोई विकल्प नहीं। डाटाबुक के आंकड़ों के अनुसार देश की कुल चल-अचल संपत्ति के उनचास प्रतिशत पर एक प्रतिशत भारतीयों का कब्जा है और चौहत्तर प्रतिशत परिसंपत्ति पर दस प्रतिशत लोगों का। यही आंकड़ा यह भी जानकारी देता है कि दुनिया के कुल गरीबों का बीस प्रतिशत भारत में है, यानी दुनिया का हर चौथा गरीब भारतीय है।
चीन से हमारी बड़ी प्रतिस्पर्धा रहती है और बताया जाता है कि चीन के बाद दुनिया की उभरती हुई अर्थव्यवस्था भारत है, लेकिन चीन में दुनिया के कुल गरीबों की महज तीन प्रतिशत आबादी रहती है। अमीर बनने की यह रफ्तार या यों कहें कि गरीबी-अमीरी की यह खाई पिछले कुछ वर्षों में तेजी से बढ़ी है। ग्लोबल डाटाबुक के आंकड़ों के अनुसार सन 2000 में एक प्रतिशत अमीर भारतीयों के पास सैंतीस प्रतिशत संपत्ति थी और दस प्रतिशत भारतीय देश की 66 प्रतिशत व्यक्तिगत संपत्ति के मालिक थे। भारतीयों के अमीर बनने की यह रफ्तार जारी रही, तो आने वाले कुछ वर्षों में अमीरों के पास संपत्ति का और ज्यादा केंद्रीकरण और गरीबों की संख्या में और इजाफा होगा।
श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।
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