नक्सलवाद: पुलिस जवानों पर वायरस का हमला, बीमार होकर लौटे

बालाघाट। नक्सल प्रभावित पुलिस थानों एवं चौकियों में तैनात हाकफोर्स, सीआरपीएफ, एसएफ, कोबरा एवं पुलिस फोर्स के जवान अत्याधुनिक हथियारों से तो लैस हैं परंतु बिना मुठभेड़ के ही वो गंभीर रूप से बीमार हो रहे हैं। फिलहाल आधा दर्जन जवान अस्पताल में भर्ती हैं। गंभीर बीमारों को नागपुर ले जाया जा रहा है।

मप्र शासन ने इन जवानों को नक्सलियों से लड़ने के लिए अत्याधुनिक हथियार तो दे दिए परंतु नक्सली इलाकों में मौजूद मच्छरों और वायरस से लड़ने के लिए इनके पास कुछ भी नहीं है। गश्त पर जाने वाले जवानों को इस बात की कोई फिक्र नहीं होती कि नक्सली मिल जाएंगे तो क्या होगा लेकिन वो इस बात से भयभीत जरूर रहते हैं कि मलेरिया या डायरिया हो गया तो क्या होगा, क्योंकि गश्त से लौटते जवान अक्सर बीमारी की हालत में ही लौट रहे हैं। गंभीर स्थिति में उन्हे जिला चिकित्सालय भेज दिया जाता है परंतु सरकारी दवाईयां कहां उन्हे वापस जवान बना पातीं हैं। पगार में से बड़ा हिस्सा दवाओं पर खर्च करना पड़ता है। कई बार मौत के दरवाजे तक भी पहुंच जाते हैं। सरकार बालाघाट से नागपुर रिफर कर देती है और कब नागपुर से परलोक रिफर हो जाएं कहा नहीं जा सकता।

लांजी क्षेत्र के देवरबेली और छत्तीसगढ़ सीमा से लगें सीतापाला, मछुरदा, पितकोना पुलिस चौकी में हालत और भी बद से बदत्तर हो चली हैं। इस चौकियों में तो जवानों को समुचित स्वास्थ सुविधा भी उपलब्ध नही हो पाती। पिछले दिनों छत्तीसगढ़ में हुये बड़ी नक्सली वारदात के बाद छुपने के लिये नक्सलियों के बालाघाट जिले में प्रवेश करने की सूचना मिली थी। जिसको गंभीरता से लेते हुये इन क्षेत्रों में पुलिस सर्चिग बढ़ा दी गई है। जिसके चलते इन जवानों को कई राते जंगलों में बितानी पड़तीं है। जो बीमारी का एक बड़ा कारण माना जा सकता है।

बालाघाट मंडला रेंज के आईजी डी.सी.सागर ने बताया कि बालाघाट जिले के नक्सल प्रभावित पुलिस चौकियों और थानों में पदस्थ हाकफोर्स, सीआरपीएफ एवं पुलिस फोर्स के जवान की हालत बेहद नाजुक है। इसका कारण यह है कि इन क्षेत्रों में पुलिसकर्मियों के लिए जिन सुविधाओं के लिए करोड़ों रूपए शासन द्वारा अब तक भेजे गए है। उसका खास फायदा यहां के कर्मियों को नही मिल पाया है।

एसपी का गैरजिम्मेदाराना बयान
इस संबंध में जिले के पुलिस अधीक्षक गौरव तिवारी का कहना है जवानों को कई बार सर्चिग के लिये 3-4 दिन चौकी से बाहर जंगल में रहना पड़ता है इस दौरान साथ में रखे गये रसद और साफ पीने का पानी खत्म हो जाता है। जिसके चलते जवानों को जब हैंडपंप का पानी भी नसीब नही होता तब वे नालों और झरने के पानी पर निर्भर होना पड़ता है। जिसकी वजह से वे बीमार होते है। पंरन्तु ये उनकी डियूटी है। जिसे उन्हें निभाना है।

  • हमारे सवाल
  1. सवाल यह है कि यदि जवान स्वस्थ ही नहीं रहेंगे तो फिर वो आम नागरिकों की नक्सलियों से रक्षा कैसे कर पाएंगे।
  2. नक्सलियों से मुठभेड़ में शहीद का दर्जा मिलेगा परंतु नक्सलियों की तलाश के दौरान हुईं बीमारियों से मौत के बाद क्या कोई सम्मान नसीब हो पाएगा इन जवानों को।
  3. आखिर क्यों इन इलाकों में सर्च पर जाने से पहले जवान ऐसे घबरा जाते हैं, मानो युद्ध पर जा रहे हों।
  4. सरकार यदि अत्याधुनिक हथियारों के लिए करोड़ों खर्च कर सकती है तो जवानों को होने वाली बीमारियों से बचाने के लिए प्रबंध क्यों नहीं करती।
  5. सरकार यदि नक्सलियों से लड़ने के लिए बेहिसाब गोलियां खर्च कर सकती है तो जवानों को बीमारियों से बचाने के लिए दवाएं क्यों नहीं दी जातीं।
  6. ऐसा कौन सा नियम है जो सरकार को जवानों के स्वास्थ्य की रक्षा करने से रोकता है।
  7. या फिर कहीं ऐसा तो नहीं कि दवाओं का पैसा कहीं और जा रहा है।


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