नईदिल्ली। देश में अब ऐसी नर्सें तैयार होंगी जो काफी हद तक डॉंक्टरों की तरह कार्य कर सकेंगी। वे दवा लिख सकेंगी, बीमारी की जांच के लिए टेस्ट करा सकेंगी और छोटे-मोटे आपरेशनों को भी अंजाम दे सकेंगी।
केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने नर्स प्रैक्टिशनर के इस नए कोर्स को मंजूरी दे दी है। अमेरिका और यूरोप में इस किस्म का कोर्स प्रचलन में है और नर्स प्रैक्टिशनर काफी हद तक प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल में डॉंक्टरों का विकल्प साबित हुए हैं। लेकिन देश में पहली बार इस विकल्प पर विचार हुआ है। नर्सिंग काउंसिल के चैयरमैन टी दिलीप कुमार ने हिन्दुस्तान को बताया कि कोर्स को अगले सत्र से शुरू करने के लिए कॉलेजों को तैयारियां करने को कहा गया है।
यह दो वर्षीय पोस्ट ग्रेजुएट कोर्स होगा। नर्सिंग का बैचलर कोर्स करने वाली नर्से इस कोर्स को करके नर्स प्रैक्टिशनर बन सकेंगी। काउंसिल भी कोर्स को स्वीकृत कर चुकी है। उन्हें कई मामलों में डॉक्टरों की भांति कार्य करने का कानूनी अधिकार हासिल हो जाएगा।
अभी तक देश में एएनएम, जीएनएम, बीएससी नर्स, एमएससी नर्स जैसी जितनी भी तरह की नर्स हैं वे फिजिशयन की देखरेख में ही कार्य कर सकती हैं। लेकिन नर्स प्रैक्टिशनर को फिजिशियन के दिशानिर्देशन की जरूरत नहीं होगी। नर्स प्रैक्टिशनर मरीज की शारीरिक एवं मानसिक जांच कर सकेंगी। वे मरीज की बीमारी का पता लगाने के लिए टेस्ट कराने को कह सकती हैं। दवा लिख सकती हैं। मरीज को रेफर करने का अधिकार होगा। छोटे ऑपरेशन कर सकती हैं।
स्वास्थ्य मंत्रालय के एक अधिकारी के अनुसार ये नर्स प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल और आंतरिक चिकित्सा में डॉंक्टरों का विकल्प साबित हो सकती हैं। राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन नर्स और पैरामेडिकल स्टाफ के भरोसे चल रहा है। नर्स प्रैक्टिशनर के आने से लोगों को डॉक्टर का विकल्प मिल सकेगा।
नर्स प्रैक्टिशनर
विदेश की स्थिति
1960 के दशक में अमेरिका में डॉंक्टरों की कमी के चलते नर्स प्रैक्टिशनर का कोर्स शुरू हुआ। मशहूर फिजिशियन हेनरी सिल्वर ने इस कोर्स को डिजाइन किया। अमेरिका में 2008 में 86 हजार नर्स प्रैक्टिशनर थे जिनके 2025 तक 1.98 लाख होने की संभावना है। कई अन्य देशों आस्ट्रेलिया, यूरोप में भी नर्स प्रैक्टिशनर प्राइमरी स्वास्थ्य देखभाल में एक सफल व्यवस्था मानी जाती है।
देश में क्या है हाल
केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने दो वर्षीय पोस्ट ग्रेजुएट नर्स प्रैक्टिशनर कोर्स को दी मंजूरी
अमेरिका और यूरोप में ऐसे कोर्स प्रचलन में, प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल में कारगर विकल्प
भारत में डॉंक्टरों की भारी कमी
देश में छह लाख डॉंक्टरों की कमी है। छोटे शहरों एवं ग्रामीण क्षेत्रों में डॉंक्टरों की भारी कमी चिंता का विषय है। देश में हर साल दो लाख नर्स तैयार होती हैं लेकिन बड़े पैमाने पर नसरे के विदेश चले जाने से इनकी कमी बनी हुई है।