.....भाषा की तो लगी पड़ी है

नम्रता विपुल भार्गव,इंदौर। आज मुझे मेरी कलम बेहद दुख के साथ उठानी पड़ी, लेकिन जब विषय हमारे देश की आधारशिला "हमारी संस्कृति" का हो तो निश्चित तौर पर हर कलम का सिपाही अपनी लेखनी की धार तेज़ करने को अपना धर्म समझेगा, आज की अधिकांश पीढ़ी अपने पूर्वजों के द्वारा दिखाए रास्ते का उपहास तो उड़ा ही रही है,साथ ही विश्व में सर्वोपरि हमारी संस्कृति को धूमिल करने से भी बाज़ नही आ रही है,
मन उदास है, अपनी ही संस्कृति के महान होने का भ्रूम टूटने पर,
ह्रदय बार-बार पूछ रहा है, कि कैसी हो गई है ये संस्कृति, जिसपर हम गर्व करते है?,
कितना खोखला हो गया है हमारा विश्वास जिसपर हमें घमंड है?
कितनी दूषित हो गई हमारी संस्कृति जिसपर हमें नाज़ है,
और जिसे हम नाम देते है“संस्कार" महज एक“मृग मरीचिका” के सिवाय और कुछ नही रह गए है 

सर्वविदित है कि किसी भी देश की संस्कृति उसकी भाषा से प्रदर्पित होती है उसी तारतम्य में हमारी संस्कृति भी हमारी भाषा से छलकती हे। लेकिन क्या हम अपनी भाषा या अपनी संस्कृति को खुद ही धीरे धीरे कुचलते नहीं जा रहे हें। आज की पीडी को हमने क्या वाक़ई वो ही संस्कार वही भाषा विरासत में दी हे जो हमे अपनी पिछली पीडी से मिली थी? 

एक समय था जब व्यक्ति के व्यक्तित्व का आँकलन उसके द्वारा बोले जाने वाले शब्दों, उसकी मृदुभाषिता से लगाया जाता था, और एक आज हे जब हमारी आज की पीड़ी की बातें सुनकर लगता हे की आदर,सम्मान, जैसे शब्द केवल मजाक बनानेे के लिए बोले जाते हें।

कुछ बच्चों की बातें जो गलती से कानो मेँ पड़ गई सुनकर कई सवाल मन में उठे पर....
..मेरी तो टेस्ट का नाम सुनकर ही फट गई।
.. प्रिंसी ने (प्रिंसिपल) ने तो उसकी ले ली।

और भी कई अपशब्दों और द्विअर्थी शब्दों से भरी बड़ी लंबी गपशप थी जो याद दिला रही थी की हम कितने लापरवाह हो गए हें और बहुत ही सहजता से हम भी इसे सुनने के आदी हो गए हें।

आज हाई टेक स्कूलों में पड़ने वाले बच्चों की हिंदी भाषा या सिर्फ भाषा पर ज़रा ग़ौर करें.. आज की सभ्य भाषा जो ना आदर जानती हे ना सम्मान और ना ही लिहाज़। 

एक दिन हिंदी डे या हिंदी सप्ताह मनाकर केवल निबंध प्रतियोगिता रख कर उस भाषा को सम्मान देना बहुत है? 

भाषा कोई भी हो उसका अपभ्रंश है पर उसके पीछे के शिष्टाचार को संस्कारों के लिए बचाना जरुरी है। या आज की भाषा में कहें तो....भाषा की तो लगी पड़ी है।
"हिन्दी है सम्मान की भाषा यह अहसास कराना है ।
तमिल तेलगु और मराठी सबको यह समझना है ।।
राह कठिन है फिर भी हमको आगे बढते जाना है ।
सयुक्त राष्ट्र को महत्व बताकर यह बिंदी भी लगाना है ।।
करो प्रतिज्ञा आज सभी यह बस हिन्दी ही अपनाना है ।।
देश कभी खुद से नही बढ़ता,हमको उसे बढ़ाना है।।
जो पाया अपनों से हमने,अपनों पे वही लुटाना है।।"

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