भोपाल। केंद्र सरकार से आरटीई की धारा-30 में संशोधन की अपील कर चुकी राज्य सरकार ने वर्तमान शैक्षणिक सत्र से 5वीं और 8वीं कक्षा की परीक्षा बोर्ड पैटर्न पर कराने की तैयारी शुरू कर दी है। राज्य शिक्षा केंद्र ने नए आदेशों के तहत काम शुरू कर दिया है। इस प्रक्रिया का पालन धारा में संशोधन होने तक किया जाएगा। दोनों परीक्षाएं अप्रैल में शुरू होंगी।
राज्य के सरकारी स्कूलों की शैक्षिक गुणवत्ता राष्ट्रीय स्तर से नीचे चली गई है। राज्य शिक्षा केंद्र की आयुक्त रश्मि अरुण शमी ने कलेक्टरों को लिखे पत्र में खुद यह स्वीकार किया है। इसकी जानकारी मुख्यमंत्री और विभागीय मंत्री को पहले से थी, इसलिए दोनों ने विभिन्न् मंचों से पांचवीं-आठवीं को फिर से बोर्ड कराने की वकालत की थी। राज्य सरकार केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्रालय को इस संबंध में प्रस्ताव भी भेज चुकी है। तीन माह के इंतजार के बाद भी केंद्र से प्रतिक्रिया नहीं आई, तो अधिकारियों ने बोर्ड पैटर्न पर परीक्षा कराने का रास्ता सुझा दिया। इस प्रस्ताव से मंत्री भी सहमत हो गए।
अधिकारी उम्मीद कर रहे हैं कि परीक्षा का समय आने तक केंद्र आरटीई की धारा-30 में संशोधन कर परीक्षा का रास्ता निकाल देगा। यदि अनुमति नहीं भी मिलती है, तो नई व्यवस्था को तकनीकी रूप से चुनौती नहीं दी जा सकती है, क्योंकि इसे परीक्षा का नाम ही नहीं दिया जा रहा है। इसे मूल्यांकन के नाम से ही आयोजित किया जाएगा।
आरटीई की धारा-30 में क्या
'नि:शुल्क एवं अनिवार्य शिक्षा का अधिकार अधिनियम 2009(आरटीई)' की धारा-30 में पहली से आठवीं तक बोर्ड परीक्षा कराने की मनाही है। ऐसा विद्यार्थियों को बोर्ड परीक्षा के डर से मुक्त रखने के लिए किया गया है।
कब लिया गया निर्णय
आरटीई एक्ट एक अप्रैल 2010 से देशभर में लागू हुआ है। इसके तहत पहली से आठवीं कक्षाओं की परीक्षा नहीं कराई जा सकती है। इनमें सिर्फ मूल्यांकन कराने की अनुमति है। उधर, मप्र ने आरटीई लागू होने से पहले ही 5वीं और 8वीं को बोर्ड परीक्षा से मुक्त कर दिया था। वर्ष 2008 में तत्कालीन स्कूल शिक्षामंत्री स्व. लक्ष्मण सिंह गौड़ के अनुशंसा से राज्य सरकार ने यह निर्णय लिया था।
यह प्रकिया अपनाएंगे
बोर्ड पैटर्न पर परीक्षा कराने के लिए राज्य स्तर पर प्रश्न पत्र तैयार कराए जाएंगे। ये प्रश्न पत्र जिलों में भेजे जाएंगे। दूसरे स्कूलों के शिक्षक बतौर पर्यवेक्षक परीक्षा कराएंगे और संकुल स्तर पर मूल्यांकन कराया जाएगा। वर्तमान में राज्य शिक्षा केंद्र जिलों को मॉडल प्रश्न बैंक उपलब्ध कराता है। जिसके आधार पर स्कूलों में पेपर तैयार किए जाते हैं और विद्यार्थी की उसी के स्कूल में परीक्षा कराई जाती है। कॉपियां भी स्कूल में ही चेक होती हैं।
राष्ट्रीय संस्था कर सकती है मूल्यांकन
स्कूल शिक्षा विभाग के अधिकारी राष्ट्रस्तरीय स्वयंसेवी संस्था से मूल्यांकन कराने पर भी विचार कर रहे हैं। उनका तर्क है कि ऐसा करने से सरकारी स्कूलों की शैक्षिक गुणवत्ता का सही अंदाजा लग सकेगा। यह व्यवस्था हमेशा के लिए नहीं रहेगी।
बोर्ड परीक्षा तो नहीं कर रहे हैं। इंटरनल एग्जाम की तैयारी कर रहे हैं। वर्तमान व्यवस्था में बच्चों के साथ शिक्षकों की गुणवत्ता का भी परीक्षण नहीं हो पा रहा है। इसलिए ऐसा करना पड़ रहा है।
दीपक जोशी
राज्यमंत्री, स्कूल शिक्षा विभाग
परीक्षा खत्म होने का दुष्परिणाम सामने आया है। शिक्षकों ने पढ़ाना ही बंद कर दिया था। फिर भी मुख्यमंत्री या शिक्षामंत्री के निर्णय से परीक्षा नहीं होनी चाहिए। इसके लिए वैद्यानिक प्रक्रिया अपनाई जानी चाहिए। वार्षिक परीक्षा लेने से अच्छा है सतत और समग्र मूल्यांकन करें।
प्रो. रमेश दवे, शिक्षाविद्
प्रदेश में स्कूल और विद्यार्थी
83,885 प्राइमरी स्कूल
30,376 मिडिल स्कूल
1.25 करोड़ बच्चे इनमें पढ़ते हैं
35 लाख विद्यार्थी पांचवी और आठवीं में