छग के जंगलों से डंपर में भरकर लाए और कर डाली नसबंदी

भोपाल। नसबंदी के टारगेट के प्रेशर में मप्र स्वास्थ्य कार्यकर्ता छत्तीसगढ़ के सीमावर्ती आदिवासी गावों में गए और लोरमी की बैगा महिलाओं तक की नसबंदी करवा डाली। याद दिला दें कि बैगा एक संरक्षित जाति है, इस जाति की संख्या बढ़ाने के लिए सरकार प्रयास कर रही है एवं इनकी नसबंदी करना अपराध की श्रेणी में आता है।


लोरमी क्षेत्र के ग्राम मजुरहा की रहने वाली चार पीड़ित बैगा महिलाएं सीमो बाई, दसरी बाई, किसानीन बाई और श्यामा बाई बैगा महापंचायत की संयाजक रेशमी द्विवेदी के साथ शुक्रवार को एसडीएम कार्यालय लोरमी/छत्तीसगढ़ पहुंची। उन्होंने एसडीएम राजेंद्र गुप्ता को बताया कि वर्ष 2012-13 में वनाचंल क्षेत्र लोरमी के ग्राम मजुरहा, बाबू टोला, मौहामाचा, बिजरा कछार की 13 बैगा महिलाओं को क्षेत्र के मितानिनों और स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं ने पैसे का प्रलोभन और ऊपर से आदेश होने का हवाला देकर नसबंदी कराने के लिए दबाव बनाया था। पैसे की लालच और अधिकारियों के डर में बैगा महिलाओं ने नसबंदी के लिए हामी भर दी।

इसके बाद डंफर में भरकर इन्हें मध्यप्रदेश के ग्राम मनकी, बहरपुर, गोपलपुर ले जाया गया और वहां इनकी नसबंदी करा दी। नसबंदी के बाद उन्हें वापस घर भी नहीं छोड़ा। वे पैदल चलकर ही अपनी घर पहुंची। यही नहीं मुआवजे के रूप में मिले 6 सौ रुपए को भी मितानीन और स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं ने ले लिए। उन्होंने बताया कि एक सप्ताह बाद पुराने ब्लेड से खुद अपना टांका खोलना पड़ा था। पीड़ित बैगा महिलाओं ने एसडीएम को ज्ञापन सौंपकर दोषियों के खिलाफ कार्रवाई और मुआवजे की मांग की है।

पूर्व में भी की गई थी शिकायत
बैगा महापंचायत की संयोजिका रेश्मी द्विवेदी ने कहा कि 13 बैगा महिलाओं की नसबंदी को लेकर पूर्व में भी शिकायत की गई थी, जिसकी जांच आज तक नहीं की गई है। उन्होंने कहा कि आज भी इन बैगा महिलाओं के देखभाल की जरूरत है, क्योंकि नसबंदी के बाद ये महिलाएं शारीरिक रूप से कमजोर हो गई हैें और शरीर में खून की कमी है।

लोरमी क्षेत्र के बैगा महिलाओं ने शिकायत की है। मामला वर्ष 2012-13 का है और नसबंदी मध्यप्रदेश में हुई है। यह जांच का विषय तो है।
राजेंद्र गुप्ता
एसडीएम,लोरमी

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