राकेश दुबे@प्रतिदिन। छत्तीसगढ में नसबंदी कैंप में हुई मौतों के लिए प्रथम दृष्टया यदि कोई दोषी है तो वह छत्तीसगढ़ सरकार खुद हैं |सरकार के संज्ञान में था की दवा बेचने वाली कम्पनी ब्लैक लिस्ट में रही है | सरकार ने इस बार जो एंटीबायोटिक दवा खरीदी उसमे चूहा मारने का रसायन मिला हुआ था |बिलासपुर में नसबंदी कैंप में हुई महिलाओं की मौत के मामले में ऐंटिबायॉटिक दवा की शुरुआती जांच में चूहे मारने में इस्तेमाल होने वाले केमिकल पाया गया है। नसबंदी कैंप में ऑपरेशन के बाद महिलाओं को यही दवा दी गई थी। यही नहीं, दवा बनाने वाली कंपनी को 2 साल पहले ब्लैकलिस्ट किया जा चुका था, मगर सरकार इससे अभी भी दवाएं खरीद रही थी।
ऐंटिबायॉटिक टैबलट सिप्रोफ्लॉक्सैसिन 500 की जांच में साफ हुआ है कि इसमें जिंक फॉस्फाइड मिला हुआ है। यह केमिकल चूहे मारने के जहर में इस्तेमाल होता है। डॉक्टर्स का मानना है कि नसबंदी कैंप में पीड़ित महिलाओं में जो लक्षण पाए गए हैं, जिंक फॉस्फाइड के असर से वैसे ही लक्षण देखने को मिलते हैं। सर्जरी के बाद महिलाओं ने सिर घूमने, उल्टियां आने और पेट में दर्द की शिकायत की थी। १३ महिलाओं की हृदय गति रुकने, किडनी फेल होने और सांस न लेने पाने की वजह से मौत हो गई थी।
अधिकारियों के मुताबिक अभी तक छापा मारकर इसी तरह की ४३ लाख से ज्यादा टैबलट्स बरामद की गई हैं। कंपनी के परिसर में बड़ी मात्रा में जली हुई दवाइयां भी बरामद की गई हैं। इसरे साथ ही महावर फार्मा के डायरेक्टर रमेश महावर और उनके बेटे सुमित को रायपुर पुलिस ने शुक्रवार को अरेस्ट कर लिया है।इस कंपनी को २ साल पहले ही ब्लैकलिस्ट किया जा चुका था। छत्तीसगढ़ के स्वास्थ्य मंत्री अमर अग्रवाल ने २०१२ में विधानसभा में कहा था कि इस कंपनी को नकली जेनरिक दवाएं बनाते पकड़ा गया है और इसके खिलाफ केस रजिस्टर किया गया है। मगर बावजूद इसके सरकारी हॉस्पिटलों में इस कंपनी की दवाइयां सप्लाई की जा रही थीं।
लेखक श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।
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rakeshdubeyrsa@gmail.com
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