चीन भारत को कचराघर समझता है

राकेश दुबे@प्रतिदिन। चीन के बारे में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का आकलन सही था| तभी दीपावली पर उन्होंने चीनी आतिशबाजीन खरीदने का आग्रह किया था| सच में चीन के मंसूबे ठीक नहीं हैं, चीन अपनी कालबाह्य हो चुकी प्रदूषणकारी औध्ध्योगिक इकाइयों को भारत भेजने के मंसूबे बांध रहा है| चीन चाहता है कि भारत उन इकाइयों को अपना ले जिन्हें चीन मजबूरी में छोड़ रहा है। और इसे भी वह अपनी मजबूरी नहीं बल्कि भारत के लिए संभावना बता रहा है।

चीनी कम्युनिस्ट पार्टी के मुखपत्र ग्लोबल टाइम्स का दावा है कि मोदी का 'मेक इन इंडिया' तभी सफल होगा अगर भारत चीन में चल रही कम तकनीकी वाली औद्ध्योगिक इकाइयों (सनसेट इंडस्ट्रीज) को अपने यहां जगह दे। अखबार के अनुसार, अगर चीन इन इंडस्ट्रीज को छोड़ते हुए बाहर कर रहा है और भारत के लिए यही एकमात्र उम्मीद है। अखबार के इस संपादकीय में दावा किया गया है, चीन में खत्म हो रही इन इंडस्ट्रीज में ही भारतीय उम्मीदें हैं।' यह लेख कम्युनिस्ट पार्टी के अखबार पीपल्स डेली के एक वरिष्ठ संपादक ने लिखा है।

चीन लंबे समय से इन इकाइयों को दूसरे पड़ोसी देशों में भेजना चाहता है। चीन में इन कालबाह्य और प्रदूषण करने वाली तकनीकी पर आधारित इन इकाइयों को हटाने की प्रकिया चल रही है। वह इन्हें वियतनाम, बांग्लादेश और लाओस जैसे देशों में भेज चुका है। अब चीन की नज़र भारत पर है।हालांकि चीनी कंपनियों के इन प्रयासों का विरोध भी शुरू हो गया है और वियतनाम में उन्हें कई –चीन विरोधी  दंगों का सामना करना पड़ा।

लेख में भारत को चीन से सीखने के लिए कहा गया है। लेख  के मुताबिक, भारत को उन उत्पादों पर काम करना चाहिए जो चीन बनाता रहा है और उन्हें बनाना भारत में अधिक आसान है। दूसरे शब्दों में चीन की सनसेट इंडस्ट्रीज में ही भारत की उम्मीद है।हालांकि इस लेख में चीन में उद्द्योग के सामने आने वाली समस्याओं का जिक्र नहीं किया गया है। इनमें श्रम, जमीन और कच्चे माल की बढ़ती कीमत के अलावा प्रदुषण के खिलाफ चीन का कड़ा रुख शामिल है।

लेखक श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।
संपर्क  9425022703
rakeshdubeyrsa@gmail.com


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