मोदी नहीं शिवराज के सहारे चुनाव जीतना चाहतीं हैं सुषमा स्वराज

विदिशा। लोकसभा चुनाव मैदान में उतरीं भाजपा की दिग्गज नेता सुषमा स्वराज भले ही यहां से सांसद हैं, विदिशा से उनका रिश्ता 5 साल पुराना हो गया है परंतु इस बार भी वो शिवराज सिंह चौहान के सहारे ही चुनाव जीतने की रणनीति पर काम कर रहीं हैं, शायद उन्हें खुद पर भरोसा नहीं है और मोदी के नाम पर वो वोट मांगना नहीं चाहतीं।

सुषमा स्वराज के चुनाव प्रचार में मोदी की जगह शिवराज सिंह चौहान का फोटो चिपका हुआ मिल रहा है। पिछले 5 साल में विदिशा लोकसभा में हुए विकास कार्यों को सूचीबद्ध करते हुए सुषमा स्वराज ने एक किताब प्रकाशित करवाई है। इसके कवर फोटो पर भी सुषमा और शिवराज के ही फोटो लगाए गए हैं। उस पर लिखा है, "विकास के दो स्तम्भ- सुषमा स्वराज और शिवराज सिंह चौहान।" यानी फ्रंट से नरेंद्र मोदी गायब। कद की इस लड़ाई में नामांकन के दिन सुषमा स्वराज ने अपने भाषण में मोदी का जिक्र तक नहीं किया।

इधर सुषमा स्वराज पीएम पद की दावेदार हैं, मोदी से परहेज करतीं हैं और खुद को दिग्गज नेता प्रमाणित करने का प्रयास भी करतीं हैं, उधर उनकी अपनी लोकसभा में उनकी हालत पतली बनी हुई है। पूरे 5 साल के जीवंत संपर्क के बाद भी उन्हें चुनाव जीतने के लिए शिवराज के सहारे की जरूरत पड़ रही है। जबकि होना यह चाहिए था कि सुषमा स्वराज के सहारे शिवराज मध्यप्रदेश की 29 सीटों को जीतने की प्लानिंग करते।

मतदाताओं के मुताबिक, सुषमा स्वराज का जितना बड़ा कद है, उतना यहां का विकास नहीं हुआ। रायसेन में लोग पहाड़ी पर बने किले की तरफ देख कर स्थानीय जुमला सुनाते हैं, ऊपर किला, नीचे जिला, इसके सिवा कुछ ना मिला। इस जुमले को स्पष्ट करते हुए मोहम्मद सफर कहते हैं, दो बार को छोड़कर यहां भाजपा का ही कब्जा रहा है। अटल बिहारी वाजपेयी जीते, फिर पांच बार शिवराज और अब सुषमा स्वराज, लेकिन शहर का भाग्य नहीं बदला।

मुकेश शर्मा कहते हैं, सुषमा ने रायसेन शहर को रेल से जोड़ने का वादा किया, लेकिन यह पूरा नहीं हुआ। विदिशा में सुरेन्द्र का कहना है कि पिछली बार रेल इंजन कारखाना खोलने की बात कही थी, इसका पता नहीं है। सुषमा ने प्रत्येक विधानसभा क्षेत्र में दो गांवों में 60 लाख के अतिरिक्त काम और एक बड़ा उद्योग लगाने का वादा किया था, लेकिन मतदाताओं की नजर में यह बातों में ही सिमट गया।

विदिशा में गणेश राम कहते हैं, चुनाव से पहले सुषमा दिल्ली से तीन महीने में एक बार यहां आती रही हैं। वे सर्किट हाउस में बड़े नेताओं और अफसरों से मिलकर चली जाती हैं, उन्हें जनता के सुख-दुख से ज्यादा वास्ता ही नहीं है।

ओबेदुल्लागंज-रायसेन मार्ग पर बिजोंअर गांव में किराने की एक दुकान पर बैठे विकास शर्मा कहते हैं, हमारे वोट तो शिवराज भैया के कमल पर जाएगा। सुषमा बड़ी नेता हैं तो फिर शिवराज के नाम पर ही वोट क्यों? इस पर पलट जवाब आया, आप बताओ, सुषमा को कौन जानता है, काम तो शिवराज ही करते हैं। उनकी बात को काटते हुए भानूप्रताप राजपूत सवाल करते हैं, भाजपा जनता को गुमराह कर रही है। ये कांग्रेस पर तो 60 साल में विकास नहीं होने का आरोप जड़ते हैं, पर खुद तो बताएं कि 1984 से विदिशा में भाजपा का कब्जा है, कितना काम किया।

लव्वोलुआब केवल इतना कि जो सुषमा स्वराज अपनी दम पर अपनी ही लोकसभा का चुनाव नहीं जीत सकतीं, उन्हें क्यों दिग्गज माना जाए और कैसे वो पीएम पोस्ट की दावेदारी कर सकतीं हैं। यहां याद दिला दें कि ये वही सुषमा स्वराज हैं, जो अपने गृहराज्य हरियाणा में एक भी चुनाव नहीं जीत पाईं। 

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