भोपाल। हाल ही में पत्रिका ने IRS 2013 का हवाला देते हुए खुद को मध्यप्रदेश का नंबर 1 अखबार बताया था और दैनिक भास्कर को उसी के घर में पटखनी देने का दावा किया था परंतु एक दिन बाद ही इस दावे की हवा निकल गई। देशभर के मीडिया समूहों ने IRS 2013 के नतीजों को फर्जी और बोगस करार दे दिया है। इसे आप IRS 2013 घोटाला भी कह सकते हैं।
देश के प्रमुख मीडिया समूहों ने इंडियन रीडरशिप सर्वे (आईआरएस-2013) की ताजा रिपोर्ट की अत्यंत कड़े शब्दों में भर्त्सना की है। मीडिया समूहों का कहना है कि इस रिपोर्ट में चौंकाने वाली खामियां हैं। आईआरएस की रिपोर्ट को पूरी तरह खारिज करते हुए टाइम्स ऑफ इंडिया समूह, दैनिक जागरण समूह, दैनिक भास्कर समूह, द हिंदू समूह, आनंद बाजार पत्रिका समूह, इंडिया टुडे समूह, ट्रिब्यून, लोकमत समूह, अमर उजाला, मलयालम मनोरमा, आउट लुक समूह और मिड डे ने चिट्ठी लिखी है।
इसमें कहा है कोई भी सहजता से रिपोर्ट की गलतियों को पकड़ सकता है। आईआरएस का यह सर्वे सर्कुलेशन को ही नहीं मान रहा जो रीडरशिप का आधार होता है। यहां तक कि ऑडिट ब्यूरो ऑफ सर्कुलेशन (एबीसी) के आकड़ों में भी विरोधाभास पैदा कर रहा है। रिपोर्ट में तो सैकड़ों खामियां हैं लेकिन उनमें कुछ ये हैं...
1. रिपोर्ट में सभी राज्यों में रीडरशिप में जबरदस्त बदलाव दिखाए गए हैं। पंजाब की पूरी रीडरशिप एक तिहाई कम बताई गई है। वहीं पड़ोसी राज्य हरियाणा में 17 फीसदी रीडरशिप बढ़ी हुई बताई गई है।
2. आंध्रप्रदेश के सभी भाषाओं के सभी प्रमुख समाचार पत्र की रीडरशिप में 30 से 65 प्रतिशत की गिरावट दिखाई गई है। अर्थ यह कि आंध्र में लोगों ने अखबार ही पढ़ना बंद कर दिया जो फिलहाल तो संभव नहीं है।
3. शहरों के स्तर पर भी यही हालात बताए गए हैं। सर्वे में मुंबई में इंग्लिश रीडरशिप में 20.3 प्रतिशत का इजाफा दिखाया गया है। वहीं दिल्ली (जो सभी मानकों पर अधिक तेजी से विकसित होता शहर है) में रीडरशिप 19.5 फीसदी कम दिखाई गई है।
4. नागपुर के प्रमुख अंग्रेजी अखबार 'दहितवाद' का सर्टिफाइड सर्कुलेशन 60,000 है लेकिन आईआरएस की रिपोर्ट में उसका एक भी पाठक नहीं हैं।
5. हिंदू बिजनेस लाइन के चेन्नई में जितने पाठक हैं उससे तीन गुना ज्यादा मणिपुर में बताए गए हैं।
6. पिछले आईआरएस सर्वे में मध्यप्रदेश में पत्रिका के 20 लाख पाठक थे। नए सर्वे में रीडरशिप में 138 फीसदी बढ़ोत्तरी दिखा दी गई। दूसरे शब्दों में एक साल में एक भी नया एडिशन खोले बिना पत्रिका के 25 लाख पाठक और बढ़े हुए दिखा दिए गए। यह अजूबा कैसे हो गया इससे मध्यप्रदेश के मीडिया घराने ही चकित हैं।
7. उत्तराखंड में हिंदुस्तान को एक प्रिंटिंग सेंटर के दम पर नंबर वन बता दिया गया जबकि दो-दो प्रिंटिंग सेंटर वाले अखबार जिसका सर्कुलेशन भी अधिक है, उससे पीछे दिखाए गए।
8. कानपुर में हिंदुस्तान की हर कॉपी की रीडरशिप 10 से अधिक बताई गई है जबकि एबीसी के मुताबिक वहां जो लीडर है उसके हर कॉपी की रीडरशिप 2.6 है।
9. हिंदुस्तान का क्लेम्ड सर्कुलेशन 20 लाख है जबकि उसकी रीडरशिप 1 करोड़ 42 लाख बताई गई है। यानी आरपीसी (रीडर पर कॉपी) 7 से भी अधिक हो गई। जो पूरी तरह गलत है।
इन सब खामियों का जिक्र करते हुए मीडिया समूहों ने सर्वे करने वाली संस्था आरएससीआई और एमआरयूसी से अपील की है कि वह 2013 की आखिरी तिमाही (क्यू-4) की रिपोर्ट वापस ले। साथ ही रिपोर्ट पर पूरी तरह रोक लगाने की मांग की है।
क्या है IRS 2013
IRS का फुलफार्म होता है इंडियन रीडरशिप सर्वे। यह कोई सरकारी ऐजेंसी नहीं है, बस एक अनुमान के आधार पर अपने आंकड़े पेश करने वाली प्राईवेट फर्म है। लोगों को बेवकूफ बनाने के लिए मीडिया घराने लम्बे समय से इसका दुरुपयोग करते आ रहे हैं। यदि IRS की शुरूआत से लेकर आज तक की आडिट हो जाए तो दूध का दूध पानी का पानी हो जाएगा परंतु अब तक ऐसा कभी नहीं किया गया क्योंकि IRS हमेशा पॉवरफुल मीडिया घरानों को ही नंबर 1 बताती आई है। IRS कई स्तरों पर अखबार को रैंकिंग देती है और ऐसा इसलिए भी किया जाता है ताकि भी मीडिया घरानों को बैलेंस करते हुए टॉप पोजीशन दी जा सके। इस रिपोर्ट के आते ही देश भर में अखबारों के नंबर 1 वाले होर्डिंग्स लग जाया करते थे परंत इस बार ऐसा नहीं हुआ।
IRS ने पॉवरफुल मीडिया घरानों के बैलेंस करने के बजाए अंडरटेबल गैम बजा डाला। मध्यप्रदेश में पत्रिका और यूपी में हिन्दुस्तान को नंबर 1 करार दे दिया। किसी अखबार की एक प्रति के पाठकों की संख्या 2.6 व्यक्ति बताई गई तो किसी अखबार की एक कॉपी की रीडरशिप 10 व्यक्ति बता दी गई। कोई पैमाना नहीं था, पहले भी नहीं होता था इस बार भी नहीं है, लेकिन IRS 2013 ने ज्यादातर पॉवरफुल मीडिया घरानों को मैनेज नहीं किया। नतीजा मीडिया घरानों ने IRS पर ही सवाल उठा दिए। यदि जल्द ही IRS अपनी रिपोर्ट नहीं बदलता तो IRS के अस्तित्व पर भी संकट आ सकता है। इसमें गलती IRS की नहीं है, कुऐं में भांग मीडिया घरानों ने ही डाली है और अब कह रहे हैं कि कुआं गंदा हो गया।
देखना रोचक होगा कि जुगाड़ की जुगत से नंबर 1 बनने वाले अखबार जनता की मदद के वक्त कैसे ईमानदार रह पाएंगे।